एक समझौता ऐसा भी … रश्मि प्रकाश

“अरे सुरेखा बहन आप दोनों सुबह सुबह कहाँ चल दिए… हम तो आज आपके घर बिटिया के ब्याह का न्योता देने आने वाले थे।” कलाने सुरेखा को दरवाज़े पर ताला लगाते देख पूछ लिया 

“ हम बिटिया के घर जा रहे हैं कला बहन…बिटिया दोनों बच्चों को सँभाल नहीं पा रही आप तो जानती ही है दो साल के अंतर पर बच्चेहो गए उसको मुश्किल हो रहा है… कभी सास चली जाती कभी हम..।” कह सुरेखा और उसके पति उमेश जी अपना बैग उठा स्टेशन कीओर चल दिए 

सुरेखा और उमेश जी को गए अभी तीन चार घंटा भी ना हुआ होगा कि कला ने देखा उनके घर का ताला खुला है और दरवाज़ा बंद है… “लगता है ट्रेन नहीं पकड़ पाए इसलिए वापस आ गए होंगे ” सोचती हुई कला सुरेखा के घर की कुण्डी खटका दी

“ अरे कला चाची आप..! माँ तो नहीं है… कुछ काम था क्या?” अंदर से सुरेखा जी के बेटे की आवाज़ आई 

“ अरे तू यहाँ आया और तेरे मम्मी पापा कुछ देर पहले तेरी छोटी बहन के पास चल दिए..उन्हें पता नहीं था क्या तुम दोनों आने वाले हो?”कला ने पूछा 

“ हाँ पता था उनका जाना ज़रूरी था इसलिए चले गए… घर की एक चाभी हमारे पास रहती है तो हम जब तब आ जाते हैं ।“ सुरेखा केबेटे ने कहा 

कला फिर ज़्यादा ना पूछ कर अपने घर आ गई ।

वो बहुत दिनों बाद अपने गाँव बेटी का ब्याह करने आई थी तो लोगों से मिल रही थी… उसी दिन शाम में दूसरे पड़ोसी के घर गई तोसुरेखा की बात निकल गई… पड़ोसन ने जो कहा सुन कला सोचने लगी,“ क्या जमाना आ गया है अपने बेटे बहू सास ससुर का मुँहदेखना नहीं चाहते…साथ रहना पसंद नहीं उन्हें…..।”



“ पर ये तो बताओ हुआ क्या था जो ऐसी नौबत आ गई…?” कला ने पूछा 

“ क्या कहूँ तुम तो जानती ही हो सुरेखा भी तेज़ जबान की है और जो बड़ी बहू है वो भी वैसी ही है…जब सुरेखा के छोटे बेटे का ब्याह होनेवाला था तो बड़ी बहू छोटी बहू के जितने गहने देखे सब खुद के लिए भी माँग रही थी… कुछ तो सुरेखा ने बहू को दिला भी दिए परआख़िर वो कितनी ही दे सकते थे… जब सुरेखा ने कहा,“ बहू कुछ नई बहू के लिए भी रहने दो… तुम्हारे पास तो पहले से भी है… पर वोतो लगी सुनाने… हाँ उस बेटे को ज़्यादा मानती है इसलिए मुझसे ज़्यादा गहने उसको दे रही… सुरेखा के बड़े बेटे के कान भी बड़ी बहू नेइतने भर दिए कि वो भी पत्नी की बातों में आ माँ-बाप ,भाई सब को खरी खोटी सुनाने लगा…वैसे भी छोटे भाई उससे ज़्यादा कमाता थातो तिलक भी अच्छा मिल रहा था बस ये बात ही बड़ी बहू को कहीं ना कही अखर रही थी… शादी में भी बड़ी बहू ने जम कर हंगामाकिया …फिर नई बहू के आने के बाद भी वो चुप ना रही… खैर छोटा बेटा गाँव से बहुत दूर शहर में रहता तो सप्ताह भर में अपनी पत्नी केसाथ चला गया… पर यहाँ बड़ी बहू के साथ सुरेखा की ना बन रही थी वो तो सबसे यहाँ तक कहने लगी सास ससुर उसपर हाथ उठाते परये गलत बात थी… सुरेखा ने कह दिया कही और जाकर रहो… यहाँ झगड़ा करने के लिए नहीं रहने दूँगी फिर तो बेटा बहू आ गए अपनेतेवर में…. सुरेखा भी कम नहीं थी उमेश जी तो ज़्यादा बोलते ही नहीं सीधे स्वभाव के आदमी पर सुरेखा बहु के तेवर बर्दाश्त ना करनाचाहती थी और बड़ी बहु को सास ना सुहा रही थी…. फिर गाँव के बड़े बुजुर्गों को बुलाकर फ़ैसला करवाया गया…. सबने यही कहा किजब साथ रहना नहीं पसंद है तो आप दोनों छह छह महीने के लिए आपसी रज़ामंदी से यहाँ एक दूसरे के बिना रहना तय कर लीजिए….. छोटी सी ज़मीन पर बना ये घर  चूँकि उमेश जी और बड़े बेटे ने मिल कर बनवाया है तो या तो बँटवारा कर लीजिए या फिर अपने अपनेहिसाब से कुछ महीने रहिए…दोनों बँटवारा करते भी तो क्या दो कोठरी के घर में इस लिए छह महीने का समझौता तय हो गया…बेटापास ही क़स्बे में नौकरी करता था उधर एक कमरा लेकर रहता जब सुरेखा और उमेश जी यहाँ रहते…. वो जब चले जाते यहाँ आ कररहता ….वो भी बड़ा अजीब बेटा निकला क्या कहूँ…..यहाँ आना जाना करता रहता है…लगता है सुरेखा को छह महीने हो गए होंगे तभीवो गई और ये दोनों आ गए।” पड़ोसन ने कहा 

कल सुन कर दंग रह गए ऐसे भी बच्चे और माता-पिता हो सकते….उसने अपने घर आ सुरेखा को फोन लगाया…

“ सुरेखा बहन तुमने मुझे कभी बताया नहीं … मैं ना थी तो सखी भी ना रही तेरी….मेरे  पीछे ये सब क्या हुआ सब पता चल गया पर तूऐसे कब तक अपने ही घर से बाहर रहेगी… अरे कुछ सोच कर निर्णय लेते ये क्या अपने ही घर से बाहर रहने लगी… कभी इस बेटी केपास

#समझौता 

रश्मि प्रकाश 

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