केशव एक धनाढ्य, संयुक्त परिवार का सबसे छोटा बेटा है। जिसकी शादी अभी तीन महीने पहले हुई है,पत्नी पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की है। मोहिनी को बड़ों का सम्मान करना, रिश्तों को मान देना,काम जिम्मेदारी से करना,सभी से प्रेम करना आता है।सही ग़लत का अर्थ समझती है,गलत बात उसके बर्दाश्त के बाहर है, वह प्रगतिशील विचारों वाली नारी है, पर धर्म में उसकी आस्था कम नहीं है। पूरा परिवार देवी की उपासना करता है, घर की स्त्रियों पर कड़े प्रतिबंध है,काम से काम रखो, ज्यादा हँसना बोलना प्रतिबंधित। किसी के सामने अपनी बात कहने का अधिकार नहीं,चाहे पुरुष कुछ ग़लत ही क्यों न कहै या करें।अगर कुछ कहने के लिए मुंह खोला तो वह मुंहजोरी कहलाता है,और उसके लिए दंड भुगतना पड़ता।ऊंची हवेली,ऊंचे लोग, जो थोथी इज्जत का ढोल पीटते रहते।
मोहिनी की सास और तीन जेठानियां,दो ननन्द है।सभी के मन में आक्रोष है, दिन भर काम में खटने के बाद भी, हर पल डरे सहमे रहना, उनकी नियती बन गया था। मोहिनी ने उन्हें समझाने की कोशिश की कहा कि ‘वे क्यों डरती है,हमें भी जीने का अधिकार है।’ मगर उनके ऊपर पुरुषों का डर इस तरह छाया हुआ था, कि वे कुछ सुनना ही नहीं चाहती थी,उल्टे हर समय मोहिनी को समझाती, कि वह भी चुपचाप सब सुन ले,मगर मोहिनी को जहां गलत लगता वह अपनी बात जरुर कहती,यही कारण था कि केशव और उसमें खट-पट चलती रहती। मोहिनी के बेबाक व्यक्तित्व का प्रभाव उसकी दो छोटी जेठानी जया और माधवी पर हो रहा था।वे भी बंधनों से तंग आ गई थी, कभी-कभी उनकी भी आवाजें निकलने लगी थी।
घर के मुखिया रामलालजी ने कहा -‘आजकल घर में बहुत आवाजें आ रही है, देवी की पूजा और गृह शांति करवानी पड़ेगी।’ सासु जी भुवनेश्वरी के कहने पर सभी बहुओं ने नैवेद्य बनाए,सारी तैयारी उत्साह से की। पूजा सम्पन्न हुई। बड़ी जेठानी सरोज भोग लगाने के लिए नैवेद्य की थाली लेकर आ रही थी,इतनी देर में नन्हा दीपक दौड़ता हुआ आया और उनसे टकरा गया। नैवेद्य की थाली गिर गई और साथ ही सरोज भी गिर गई, उनके पैरों पर चोट आई। सबका पारा गर्म हो गया,उल्टा सीधा बोलने लगे, कहने लगे इतना बड़ा अपशकुन हो गया, देख कर नहीं चल सकती थी और पता नहीं क्या – क्या बोलते रहै वे सब।यहां तक कि सरोज के पति देवेश ने तो मारने के लिए हाथ उठा दिया। मोहिनी के सब्र का बांध टूट गया उसने बड़े भैया का हाथ पकड़ लिया और कहा-‘ अपशकुन भाभी के हाथ से नहीं हुआ,अनजाने में नैवेद्य की थाली गिर गई, नैवेद्य दूसरी थाली में फिर आ जाएगा।मगर आप देवी की पूजा करने के बाद, घर की देवी का अपमान कर रहे हैं, अपशकुन आपने किया है,देवी के ऊपर हाथ उठाया है आपने, देखिये उनकी आँख से झरते आँसू , क्या अब भी आप सोचते हैं,कि आपको इस पूजा से आशीर्वाद मिलेगा? आपने अब तक इस घर में, देवी के करूणा, दया, प्रेम, ममता, मधुरिमा, श्रद्धा के रूप को ही देखा है, ऐसा न हो कि आपके व्यवहार से देवी अपने प्रचण्ड रुप के दर्शन आपको कराए।दैवी शक्ति स्वरूपा हैं, उसकी शक्ति अभी आपने नहीं देखी है।हर नारी में दैवी का वास है उसका सम्मान करो।’ केशव मोहिनी को कुछ कहना चाह रहा था कि भुवनेश्वरी जी ने कहा-‘केशव कुछ कहने की जरूरत नहीं है, मोहिनी सही कह रही है।’ फिर सबको सम्बोधित करते हुए बोली -‘आप सब लोग ध्यान से सुन ले,आज मोहिनी ने मेरी आँखे खोल दी, आप लोग भी दैवी के स्वरूपों का फिर से अध्ययन करें,दैवी का एक रूप शक्ति है,जो हर अन्याय के विरुद्ध खड़ी रहती है। यदि नारायणी की पूजा करना चाहते हो, तो घर की देवी का सम्मान करो।’ सब चुपचाप सुन रहै थे जैसे पूजा के बाद दैवी ने अपने शक्ति स्वरुप के दर्शन कराए हो।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक