ज़िंदगी का दूसरा नाम समझौता है बिटिया, मां ने हमेशा यही समझाया था. औरत को पग पग पर परिस्थितियों से तालमेल बैठाना ही पड़ता है. हवा के रुख को पहचान कर बहाव के साथ चलने में ही समझदारी है. नारी चाहे पिता के घर हो या ससुराल में, गृहणी हो या किसी ऊंचे पद पर किसी कार्यालय में, कदम कदम पर समझौता करने वाला ही सफल माना जाता है. लेकिन पापा ने हमेशा अपने आदर्शों पर कायम रहना, विपरीत परिस्थितियों में भी घबराए बिना राह खोजना ही सिखाया. हार मान कर समझौता कर लेना मन की कमज़ोरी है. उस पर विजय पाना ही सफलता की पहली सीढ़ी है. जीवन के उतार चढ़ाव हर किसी को झेलने पड़ते हैं लेकिन टूट कर समझौता…कभी नहीं.
सविता आज इसी दुविधा में थी. करीब तीन माह पूर्व उसका विवाह बड़ी धूमधाम से राजेश के साथ हुआ था. उसके माता पिता ने उसे परिवार के ही किसी कार्यक्रम में देखा था और अपने बेटे के लिए पिताजी से सविता का हाथ मांगा था. राजेश अमेरिका में किसी कम्पनी में उच्च पद पर था. घर भी भरा पुरा था. राजेश के माता पिता दोनों ही डाक्टर थे. एक छोटा भाई था जो बैंगलोर में प्रतिष्ठित कम्पनी में लगा था. दहेज की भी कोई मांग न थी.
मां पापा व भाई को भी रिश्ता जंच गया. राजेश एक महीना अवकाश लेकर भारत आ रहा था. विवाह के बाद वापिस जाकर वीज़ा आदि की फार्मैलिटी करके जल्द बुलाने की बात थी. सविता भी एम बी ए के फाइनल में थी.
राजेश सुदर्शन नैन नक्श व प्रभावशाली व्यक्तित्व का लगा. विवाह के बाद एक सप्ताह हनीमून में निकल गया. राजेश अमेरिका वापस चला गया. हर रोज़ कॉल करता. दिन ऐसे ही गुज़रे जा रहे थे.सविता सपनों की उड़ान पर काबू नहीं कर पा रही थी.मां पापा भी निश्चिंत थे.
अचानक एक दिन अमेरिका से फोन कॉल आया. रूसी मूल की युवती ज़िल बोल रही थी. उसे उसी दिन उसकी किसी भारतीय सहेली के माध्यम से हमारे विवाह का पता लगा. राजेश तीन वर्ष से उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. उसे इस तरह के धोखे की उम्मीद न थी. अब वह स्वयं उससे रिश्ता तोड़ रही थी. सविता को इसलिए बताया कि वह भी धोखा न खाए.
धोखा तो सविता खा ही चुकी थी. मां पापा और भाई भी परेशान हो गए. राजेश के पापा ने कहा कि वो उसे समझाएंगे. राजेश को जल्द भारत आने को कहा. राजेश भी सब छोड़ छाड़ कर भारत आकर रहने को तैयार हो गया. सब ठीक हो जाएगा.
लेकिन फैसला सविता को ही लेना था. मां तो परिस्थिति से समझौता करने का ही कह रही थीं. विदेश में तो यह आम बात है. फिर लिव इन रिलेशनशिप ही तो थी. अच्छा हुआ लड़की ने खुद ही पीछा छोड़ दिया. भाई असमंजस में था, फिर भी उसने कहा कि वह हर हालत में सविता के साथ है. लेकिन पापा नहीं माने. अपनी ज़िंदगी को यूं परिस्थितियों के हवाले नहीं किया जा सकता. सविता ने भी कुछ ऐसा ही सोचा. वकील से तलाक के काग़ज़ात तैयार करवा कर भिजवा दिए. कालेज से ही उसे किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट की उम्मीद थी. भविष्य के धुंधलके छंट रहे थे. उसे आगे की राह स्पष्ट दिखाई दे रही थी.
#समझौता
– डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा