हम सबमें है दुर्गा” – उषा गुप्ता

रीमा ,रिया ,अदिति और अर्पिता चारों हँसती-मुस्कुराती मार्शल आर्ट की कक्षा से बाहर निकली अपने-अपने घर की ओर जाने के लिए। एक ही समय में आने से चारों बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं।आज पैदल ही जाने का तय किया और निकल पड़ी उछलती, कूदती,हंसती ,मुस्कुराती …खुली सड़क पर ।

पर यह क्या ?? सड़क पर ,बिजली के खंभों पर ,नोटिस बोर्ड पर , हर जगह अलग-अलग तरह के बहुत सारे पर्चे चिपके हुए थे। हर पर्चे पर अलग-अलग बात…”आइए,नवरात्रि का स्वागत करें “…”मां दुर्गा के नौ रूप हम महिलाओं में परिलक्षित होते हैं “…”महिलाओं का सम्मान करें “…”हर नारी में महाकाली “…”मैं भी दुर्गा -तू भी दुर्गा”..”रे नारी लड़ ,मुकाबला कर ,मत हार मान “….”राक्षस तेरे कदमों तले होगा “..आदि आदि ।

चारों ये सब पढ़ कर बहुत चकित थी। क्या इस बार नये तरीके से नवरात्रि मनाने जा रहे हैं ? जो भी हो पर अच्छा है।

” चलो ,अच्छा ,बाय, कल मिलते हैं ।” कहते हुए अर्पिता अपने घर की ओर जाने वाली सड़क पर मुड़ गई ।

“बाय अर्पिता ..” कहते हुए वे तीनों हाथों में हाथ डाले आगे की ओर बढ़ गईं।थोड़ा ही आगे चली थी कि अचानक रिया को याद आया -” अरे , अर्पिता का फोन तो मेरे पास ही रह गया ।ऐसा करो ,तुम दोनों जाओ ,मैं उसे फोन दे कर चली जाऊँगी।”

“ओके ,बाय ..” कहते हुए रीमा और अदिति दोनों आगे बढ़ गई।

इधर रिया अर्पिता वाली रोड पर मुड़ गई परंतु दूर -दूर तक अर्पिता कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।इतनी जल्दी तो वह घर नहीं पहुँच सकती !!फिर कहाँ रह गई ??

रिया इधर-उधर उसे ढूँढते हुए आगे बढ़ने लगी।तभी एक जगह उसे अर्पिता की एक चप्पल दिखाई दी। अनहोनी की आशंका से रिया उसी ओर मुड़ गई।आगे एक सुनसान रास्ते पर एक लड़का अर्पिता से जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था।अर्पिता को उसकी गिरफ्त से छूटने का मौका ही नहीं मिल रहा था।

रिया एक पल के लिए जड़ हो गई।तभी यकायक रास्ते में लगे सारे पर्चे मानो साकार होकर उसके आगे लहराने लगे।वह जोर से चिल्लाई -” अर्पिता , मैं भी दुर्गा ,तू भी दुर्गा ।मार्शल आर्ट का पैंतरा लगा और हो गिरफ्त से बाहर ।तू कर सकती है।” कहते हुए वह खुद भी पोजीशन बनाकर खड़ी हो गई।

मानो कोई अदृश्य शक्ति ने अर्पिता पर जादू सा कर दिया। तभी अर्पिता ने उसकी नाक पर मुक्का मारते हुए अपने पैरों से उसके गुप्तांग पर वार किया। वह तिलमिला कर एक ओर गिर पड़ा।

उसके बाद क्या हुआ होगा ? आप अंदाजा लगा सकते हैं…!

स्वरचित

उषा गुप्ता,इंदौर

 

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