यह सत्य कहानी उन गाढ़े दिनों की है। जब प्रकृति प्रदत्त भयंकर आपदा से त्रस्त मानवता जा़र-जा़र रो रही थी।
हां आपने बिल्कुल सही समझा है। भयंकर एपीडेमिक ‘कोरोना काल’ की जिसने एक ओर मां को बेटे से तो बेटा को पिता से जु़दा कर भावनाओं को तार -तार कर रही थी ।
वहीं दूसरी ओर आपसी भाईचारा और प्रेम की अनोखी गंगा भी बहा दी थी।
इस कहानी की नायिका एक चौदह-पंद्रह साल की बालिका ‘अलबेली ‘ है। जो नयी दिल्ली की ‘डिफेंस काॅलोनी’ के बाजू में छोटे से किराये के घर में अपनी अम्मा और बाबा के साथ रहती है।
बाबा किसी गराज में मोटर मेकैनिक है।
और अम्मा आस-पास के घरों में बर्तन का काम कर घर का गुजर -बसर किया करती है।
जबकि अलबेली उन्हीं दो घरों में से एक में हाउसकीपर है।
यों तो वो सरकारी स्कूल में पढ़ती है। एवं क्लास नाइन की स्टूडेंट है। पर सीनियर क्लास में पढ़ाई थोड़ी हार्ड हो जाने के कारण उसे जब तब थोड़े असिस्टेंस की जरूरत आन पड़ती है।
आजकल लाॅकडाउन के कारण सारे स्कूल बंद हैं। अलबेली की पढ़ाई भी थोड़ी मद्धम गति से ही चल रही है।
तो अम्मा ने उसे पीली कोठी में रखवा दिया है। जहां बीबीजी के बच्चे बड़े हो कर बाहर के शहरों में रहते हैं।
बीबीजी बिल्कुल अकेली रह गई हैं। एक ओर उनका अकेलापन और दूसरी तरफ कोरोना का भयावह डर।
वे बेबस हो कर भी अलबेली की मां से कुछ कह नहीं पा रही थीं।
उन्हें इस कश्मकश से दूर करते हुए उस दिन अलबेली की मां ने ही यह फैसला कर लिया,
‘बीबीजी , मुझे दूसरे घरों में काम मिल रहा है आपके घर में अलबेली काम कर दिया करेगी।
अभी तो सारे स्कूल बंद हैं। यह घर में बैठी-बैठी खाली मोबाइल चलाया करती है। इससे आपका भी मन लगा रहेगा और आप बदले में मेरी अलबेली को थोड़ा पढ़ा दिया करना
अपने माता -पिता के इस निर्णय पर अलबेली बहुत खुश हैं।
वे उसे बहुत मानती हैं बिल्कुल बिटिया जैसी।
अभी सुबह के आठ बज रहे थे। जब अलबेली मजे में अपने बिस्तरे में सोई हुई सपनों की दुनिया में घूम रही थी।
तभी अचानक अम्मा की आवाज से चौंक पड़ी,
‘ उठ जा री अलबेली, सुबह के सात बज रहे हैं। अब क्या सारा दिन सोती ही रहेगी ? ‘
‘अभी घर के भी सारे काम पड़े हुए हैं। और तुझे बीबीजी के यहां भी जाना है ‘
‘उफ्फ ये अम्मा भी ना ठीक से नींद भी नहीं लेने देती है। ‘
‘ कभी-कभी तो लगता है मेरा जन्म ही काम वाली बनने के लिए हुआ है ‘
आलस से हाथ पैर सीधा करती हुई लंबी अंगड़ाई ली है ‘ अलबेली’ ने ,
‘ अब उठने में ही भलाई है मेरी नहीं तो अभी अम्मा आ जाएगी फिर मोबाइल से शुरु हो कर मेरे सुबह न उठने, पढ़ाई बंद कराने और फिर धीरे-धीरे मोबाइल जलाने पर जा कर खत्म होगीं “
यह सोच अलबेली हाथ- पैर झटक कर खड़ी हो गई।
ब्रश कर नहा धो कर झटपट वहीं नीली सूट पहन कर तैयार हो गई जिसे बीबीजी ने दर्जी को घर बुलवा कर सिलवा दिया था।
तब तक अम्मा ने गरम चाय बना कर रख दी है साथ में बिस्कुट भी।
अलबेली जल्दी-जल्दी चाय की चुस्की ले बिस्कुट खा कर आंटी जी के यहाँ काम पर निकल गई।
‘ वो सुमन बीबीजी मुझे कितना मानती हैं।
कितने मीठे स्वर में बाते भी करती हैं।’
‘वो खुद भी तो दिखने में कितनी अच्छी लगती हैं। हल्के रंग के कपड़ों में जैसे साक्षात अन्नपूर्णा अपने वरद हस्त फैला कर आशीर्वाद देती हुई।
‘ मुझे गरम-गरम नाश्ते के साथ थोड़ा दूध भी जरूर देती हैं ‘
‘ और हाँ साथ में पढ़ने को अखबार भी देती हैं जिसमें दुनिया भर की बातें और खबर रहती है।
उनका कहना है,
‘ देख अलबेली किसी भी हाल में तुम्हें पढ़ना-लिखना नहीं छोड़ना है।
तुम जितना आगे पढ़ना चाहोगी मैं तुम्हें उतना आगे पढ़ाऊंगी, तुम्हारा साथ दूंगी तुम्हें पढ़ कर मास्टरनी बनना है ‘
‘ बनोगी ना ?
मैं बीबी जी की बातें सुनकर कितने हौसले से भर जाती हूं।
अम्मा और बाबा भी तो यही चाहते हैं कि मैं आगे पढ़-लिख कर उनके नाम रोशन करूं ,
हे भगवान् मेरी बीबी जी को बनाए रखना मैं खूब मन से उनकी सेवा करूंगी ‘
मन ही मन यह सब सोचती, उछलती-कूदती हुई अलबेली उनके घर के दरवाजे तक पहुंच गई है।
‘ ओह ये क्या, उनका तो घर सील हो गया है ?
अंदर जाना मना है ? ‘
वह जा कर गेट पर मिन्नतें करती है,
‘भैय्या मुझे जाने दें अन्दर यहां मेरे सिवा बीबी जी के पास और कोई नहीं रहता है। वे तो घबड़ा जाएंगी ‘
पर गार्ड ने उसकी एक नहीं सुनी,
‘ सुन लड़की, अन्दर जाने की सख्त मनाही है। और अगर अन्दर गई तो फिर बाहर आने की इजाजत नहीं मिलेगी समझ गई ना ‘
‘ अरे ऐसे कैसे हो सकता है मेरी बीबी जी जी को कोरोना ‘ ?
‘ उन्हें अकेले किस तरह छोड़ सकती हूँ ?
फिर वह भागती हुई वापस घर गई। अम्मा को सारी बातें बता कर बोली,
‘ जाने किस हाल में होगीं बीबी जी। वो कैसे खाना बनाएगीं अम्मा फिर उन्हें बाहर का खाना सूट भी तो नहीं करता है’
‘ तू मेरे कुछ कपड़े निकाल दे और मैं अपनी काॅपी -किताबें भी रख लेती हूँ। अब वहीं रह लूगीं दो-चार दिन ‘
‘ तब तो मुझको अन्दर आंटी जी के घर में जाने देगें ना ‘
अलबेली की अम्मा परेशान हो गई। उसका मन नहीं हुआ अलबेली को वहाँ फिर से जाने देने का।
लेकिन अलबेली माने तब ना उसे तो बस बीसीजी की चिंता सताए जा रही है।
अलबेली सी बिटिया की सच्ची सेवा और मदद करने की लगन तथा हौसलें को सलाम करती हुई बोली ,
‘ जा मेरी बच्ची तू है ही इतनी अलबेली तभी तो सब तुझे प्यार करते हैं ‘
‘ हाँ माँ पर तू तो सारे दिन डाँटती ही रहती है ना मुझे ‘
कह कर हँसती हुई वो माँ के गले लग गई,
‘तू चिंता मत कर मां मेरी रक्षा खुद भगवान करेंगे ‘
यह कहती हुई वो बैग ले कर वह झटपट निकल गई,
“मोबाइल लेती जा रही हूँ अम्मा फोन करती रहूँगी। “
‘ तू घबरइयो मत ‘
बस बीबी जी की तबीयत की दुआ भगवान से मनाती रहिओ ‘
अम्मा ने उपरवाले ईश्वर की ओर देख अलबेली और उसकी बीबी जी दोनों की सलामती के लिए हाथ जोड़ दिए हैं
सीमा वर्मा / नोएडा