” भेड़ियों का आतंक ” – डॉ. सुनील शर्मा

रिया को कुछ जुगाड़ के बाद गंगा के किनारे प्राकृतिक वातावरण में शहर से अलग बने इस सुन्दर रिसॉर्ट में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली थी. हालांकि उसने होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा हासिल किया था. अरमान तो था कि किसी अच्छे होटल में नौकरी मिले, फिर कुछ दिन कमाकर अपना एक रेस्तरां खोले. लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण अभी सपने देखना बंद किया. पिता गांव में थोड़ी सी ज़मीन पर बस घर चलाने जितना कर पाते थे. तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी होने की वजह। से वह अपनी ज़िम्मेदारी समझती थी, इसीलिए यह नौकरी कबूल की. तनख्वाह अधिक न थी, लेकिन रहने की व्यवस्था व भोजन फ्री था. इसलिए पूरा वेतन बचाकर घर भेज सकती थी. यही सोचकर कार्य कर रही थी.

रिसॉर्ट में ग्राहकों का आना जाना लगा ही रहता था. रिया अपना कार्य मुस्तैदी से करती थी. मालिक किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते थे. मैनेजर भी काफी व्यस्त रहते थे लेकिन कभी कभी अपने कक्ष में बुलाकर काम के बारे में हिदायतें देते थे. रिसॉर्ट में दस और कर्मचारी थे, लड़कियां भी थीं, लेकिन रिया अपने काम से काम रखती थी. ऐसे ही बातों बातों में किसी ने बताया कि उससे पहले जो रिसैप्शनिस्ट थी, वह एक दिन लापता हो गई थी. पुलिस में रिपोर्ट भी की गई, लेकिन कुछ पता न चला. उसके मां बाप भी आए थे, रोते कलपते चले गए. अफवाह उड़ी थी कि वह किसी दोस्त के साथ भाग कर दिल्ली चली गई.

एक दिन, मैनेजर ने रिया को कक्ष में बुलाया. मालिक भी बैठे थे. उन्होंने बताया कि ‘ इस वीकेंड एक वी आई पी आ रहे हैं. उनका विशेष ख्याल रखना होगा. सब काम छोड़कर तुम उन्हें ही अटैंड करोगी .  बड़े रसूख वाले आदमी हैं, दिल्ली तक उनकी पहुंच है. खुश हो गए तो हमारे रिसॉर्ट में भी पैसा लगाएंगे. ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हें भी असिस्टेंट मैनेजर बना दूंगा. ख्याल रहे वह किसी बात से नाराज़ न हों. तुम्हें स्पेशल सर्विस देनी होगी. सब समय उनके साथ ही रहना होगा, रात को भी.’

रिया का सर चकराने लगा. किसी तरह बात खत्म कर अपने कमरे में आई. रोकते रोकते भी उसकी रुलाई निकल गई. स्पेशल सर्विस का अर्थ वह भी समझती थी. वह यहां कार्य कर अपने परिवार की मदद करना चाहती थी, इस दलदल में फंसना नहीं. उसने फोन पर हाउसकीपिंग में लगी एक लड़की से बात की. रोते रोते सब बताया. उस लड़की ने उसे किसी बहाने से छुट्टी लेकर घर जाने को कहा.

वह अभी बात कर ही रही थी कि मालिक, मैनेजर और एक अन्य आ गए. किसी से फोन पर बात करते देख उन्हें गुस्सा आ गया. फिर मनाने लगे, दस हज़ार का लालच भी दिया. लेकिन रिया नहीं मान रही थी. बात खुलने के डर से तीनों ने उसे क्लोरोफॉर्म सुंघा कर बेहोश कर दिया और रात के अंधेरे में गंगा में फेंक दिया.

अगले दिन मैनेजर ने पुलिस में रिया की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई. गांव में उसके पिता को भी खबर को. किसी के साथ भाग जाने की अफवाह भी उड़ाई. पुलिस भी मालिक के रुसूख के दबाव में हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. जब इलाके के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शोर मचाया और लोकल समाचार पत्रों ने मुद्दा उठाया तो पुलिस हरकत में आई. मुख्यमंत्री के दखल पर तीनों को गिरफ्तार कर पूछताछ शुरु हुई. थोड़ी सी सख्ती में ही तीनों ने सब उगल दिया. गंगा में तलाश हुई तो एक नहीं दो शव निकले. दूसरा शव पहली लापता लड़की का था. दोनों को पत्थर से बांधकर नदी में फेंका गया था. पुलिस पर सवाल उठने लाज़मी थे. स्पेशल एजेंसी को केस सौंपा गया. लोगों ने रिसॉर्ट को आग लगा दी.

– डॉ. सुनील शर्मा

गुरुग्राम, हरियाणा

 

 

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