भगवान का दूसरा रूप – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज रागिनी के बेटी खुशी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंगलोर हॉस्टल में रहने जा रही थी। आज पहली बार वो घर से बाहर की दुनिया में कदम रख रही थी।आजकल वैसे भी सबके एक या दो बच्चें होते हैं जिनको बहुत ही नाज़ो से पाला जाता है। रागिनी खुश थी,कि बेटी का दाखिला बैंगलोर के बहुत अच्छे कॉलेज में हो गया है पर दूसरी तरफ उससे बिछड़ने का गम और कैसे वो पराए लोगों को बीच रहेगी इसकी चिंता उसकी रातों की नींद उड़ा रही थी।

उसके दिमाग में यही सब उथल-पुथल मची थी कि इतने में ही उसकी पुरानी कॉलेज दोस्त का फोन उसको बेटी के एडमिशन की बधाई देने के लिए आ गया। वो उसकी बहुत अच्छी दोस्त थी,जब रागिनी ने उसको अपनी चिंता और परेशानी बताई तब उसने समझाया कि आजकल के बच्चे बहुत समझदार होते हैं, सब आसानी से संभाल लेते है। फिर उसने रागिनी को ये कहकर समझाया कि तूने भी तो बाहर रहकर ही अपनी सारी पढ़ाई की है।

जब तू पहली बार घर से बाहर गई थी तब तेरी उम्र तो खुशी से भी कम थी। अब अपनी दोस्त की बातों से रागिनी का तनाव थोड़ा कम हुआ। अब रागिनी को अपने पढ़ाई के दिन याद आ गए। उसे याद आया कैसे वो हापुड़ जैसे छोटे शहर से निकल कर दिल्ली पढ़ाई करने गई थी।यहां वो गर्ल्स पीजी में रहकर कंप्यूटर में पढ़ाई कर रही थी।

 जब शुरू में आई थी तो बिल्कुल मन नहीं लगता था, लोग भी अपने से नहीं लगते थे। हालांकि कई दोस्त बने थे पर वो सब मस्ती-मजाक,गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड इन सब में ही उलझे रहते थे। रागिनी इन सब में नहीं पड़ना चाहती थी इसलिए थोड़ा बहुत मस्ती-मज़ाक तो करती थी पर अधिकतर अपनी पढ़ाई में ही व्यस्त रहती थी। ऐसे ही दिन बीत रहे थे, दिल्ली देश की राजधानी और इतना बड़ा शहर तो यहां रात को भी सड़कों पर काफी चहल-पहल रहती है।

 रागिनी की भी कई कक्षाओं का समय रात को 8 से 10 बजे तक का होता था। गर्मियों में तो इतनी दिक्कत नहीं थी पर अब सर्दियां आ रही थी, लोगों की आवाजाही थोड़ी कम होने लगी थी। ऐसे ही नवम्बर महीने के एक दिन उसकी महत्वपूर्ण कक्षा थी जिसे वो छोड़ नहीं सकती थी।

इत्तेफाक की बात थी कि उस दिन उसके जो भी दोस्त बने थे उनकी भी ये कक्षा नहीं थी क्योंकि उनके विषय रागिनी से अलग थे। रागिनी ने कक्षा ली और खत्म होते ही वो बस स्टॉप की तरफ दौड़ी क्योंकि घड़ी में रात के 10 बज रहे थे। स्टॉप तक पहुंचने में 15 मिनट और लग गए। पर पता नहीं क्यों आज उसके पीजी जो की मालवीय नगर में था उसकी कोई बस ही नहीं आ रही थी। चिंता और घबराहट से इस मौसम में भी उसके पसीने छूट रहे थे।



 उसको अकेला देखकर 4 बिगड़ैल लडकों का एक ग्रुप दो बाइक पर सवार होकर उसके आस- पास ही चक्कर काटने लगा। वो उस पर तरह-तरह की अश्लील फब्तियां कस रहे थे। उस समय मोबाइल भी नहीं होते थे जो वो अपने किसी जानकर को फोन कर पाती। वो मन ही मन अपने भगवान को याद कर ही रही थी कि इतने में ऑटो ड्राइवर के रूप में एक सरदार जी उसकी जिंदगी में भगवान का दूसरा रूप लेकर आए थे।

असल में, सरदार जी थोड़ी दूरी पर आज की अपनी आखिरी सवारी को छोड़ते हुए घर की तरफ मुड़ ही रही थे पर उनको जब रागिनी कुछ मुसीबत में लगी तो उन्होंने अपना ऑटो उसकी तरफ ले लिया। उन्होंने रागिनी को देखते हुए बोला बैठ पुत्तर कहां जाना है? मै तेरे को छोड़ देता हूं।

 रागिनी को भी लगा कि इस समय ऑटो लेने में ही भलाई है। रागिनी ऑटो में बैठ गई पर वो बदतमीज लड़के नहीं माने, वो रागिनी के ऑटो के पीछे लग लिए। वो जोर-जोर से बोल रहे थे कि अरे एक बार हम से बोला होता तो हम छोड़ आते और भी बहुत कुछ बक रहे थे। अब तक सरदार जी सारी बात समझ चुके थे।सरदार जी उम्र में बड़े,पर लंबी चौड़ी कद काठी के थे। 

उन्होंने ऑटो को रोका, उन लड़कों के सामने आए, उनको डराने के लिए अपनी कमर में लगा कृपाण निकाला। जोर से चिल्लाते हुए बोले, बताओ कहां जाना चाहते हो? मैं पहुंचाता हूं, तुम चारों को।एक बार अपनी पर आ गया तो तुम लोगों को पुलिस स्टेशन ले जाकर ही मानूंगा।सरदार जी की इतनी तेज़ तर्रार आवाज़ सुनकर 2 -4 लोग और भी आ गए। अब तो वो लड़के भागते नज़र आए। रागिनी ने उन सरदार जी का बहुत धन्यवाद किया, आज उसको सरदार जी में अपने पिता की झलक दिख रही थी। इस बात से रागिनी बहुत घबरा गई थी। सरदार जी उसकी हालत समझ रहे थे। उसको ऑटो चलाते-चलाते वो अपनी बातों से हिम्मत बंधा रहे थे। थोड़ी देर में उसका पीजी का गेट आ गया।



 जैसे ही वो ऑटो से उतर कर सरदार जी को किराया देने लगी तो देखती क्या है, कि उसके बैग की जिस पॉकेट में पैसे थे, वहां किसी ने ब्लेड चला कर पूरे रूपए पैसे निकाल लिए थे। सरदार जी सब देख रहे थे, उन्होंने एक दम बोला पुत्तर तेरे को क्या लगता है कि मैं किराए की वजह से तेरे को यहां तक छोड़ने आया हूं? मै तो तेरे को अपनी बच्ची समझ कर हिफाज़त से यहां तक लाया हूं। 

फिर उन्होंने कहा कि बेटा ये दिल्ली शहर हैं, यहां जगह-जगह पॉकेट कट जाती हैं, आगे से ध्यान रखना। एक बात और आज जो भी हुआ ये आगे भी हो सकता है,ऐसे में हिम्मत बनाई रखनी है और मनचले बिगड़े लडकों की वजह से पढ़ाई-लिखाई नहीं छोड़नी है। रागिनी की आंखो में आंसू आ गए, वो उनका धन्यवाद करती हुई पीजी में पहुंची। अगले दिन जब वो कक्षा के लिए पीजी से बाहर आई तो उसने देखा वो ही ऑटो वाले सरदार जी उसका इंतजार कर रहे थे क्योंकि कल ही उन्होंने रागिनी से उसकी कक्षा का समय पता कर लिया था। 

वो रागिनी को देखते हुए बोले पुत्तर आज से जब तक तेरे को दिल्ली की थोड़ी समझ नहीं हो जायेगी मैं तेरे को छोड़ दिया करूंगा। रागिनी ने उनको कुछ कहना चाहा, तो सरदार जी ने ये कहकर कि वो उसके पिता की तरह हैं और अगर खुद उनकी भी बेटी होती तो वो उसके लिए भी ऐसा ही करते। आज रागिनी को ऐसा लगा कि पराए शहर में उसको कोई अपना मिल गया। जब तक वो दिल्ली रही सरदार जी ने एक पिता की तरह रागिनी का ख्याल रखा।

 पर शादी के बाद जब वो पति के साथ दूसरे शहर में आ गई तब उसका उनसे संपर्क टूट गया। आज भी उसको पिता समान वो सरदार जी बहुत याद आते हैं। शायद उस दिन वो रागिनी को न मिलते तो वो दिल्ली से वापिस अपने घर चली जाती। उसके भविष्य को बनाने में उसके मां-बाप के साथ-साथ सरदार जी का बहुत बड़ा योगदान था। वास्तव में कई बार कुछ पराए लोग अपनों से भी बढ़कर होते हैं। वो अभी अपने ख्यालों में ही गुम थी कि बेटी ने उसको आवाज़ लगाई। अब वो थोड़ा निश्चित थी क्योंकि उसको लग रहा था कि उसकी बेटी को भी पराए लोगों में कोई न कोई अपना अपना जरूर मिलेगा।

दोस्तों मेरे को भी लगता है कि कई बार हमारी जिंदगी में कुछ लोग भगवान का दूसरा रूप लेकर आते हैं। उनसे हमारी कोई रिश्तेदारी या रक्त संबंध नहीं होता पर फिर भी वो हमारे लिए अपनों से भी बढ़कर हो जाते हैं। आशा करती हूं आपको मेरी कहानी पसंद आई होगी। मेरी कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया देना ना भूलें।

#पराए_रिश्ते_अपना_सा_लगे

 

डॉ. पारुल अग्रवाल

नोएडा

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