“ कितनी बार कहा है तुमसे इस घर के मामलों से दूर ही रहो… जब देखो तब अपनी नाक हमारे मामलों में घुसेड़ती रहती हो… अपना दिमाग़ मत चलाया करो…. बेकार का झमेला करना कोई तुमसे सीखें..।” ग़ुस्से में नितिन प्रिया पर चिल्ला रहा था
… ऐसे शब्द सुनकर नंदनी का खून खौल गया…जो आज तक अपने भाई को सबसे समझदार समझती आ रही थी उसके इन शब्दों ने उसे एहसास करा दिया कि पति अपनी पत्नी को कभी भी समझ नहीं सकता।
वो चुप न रह सकी और बोल पड़ी,“ ये क्या तरीक़ा है भैया भाभी से बात करने का… मैं तो समझती थीं मेरा भाई सबसे समझदार पति होगा जो अपनी पत्नी को पूरा सम्मान देना जानता है पर आप भी उन्हीं मर्दों में एक निकले जो अपनी पत्नी को बस बंदिनी ही समझते… जो बस पति के इशारों पर चले..वो इस घर की एक प्रतिष्ठित सदस्या है ये आप कैसे भूल गए? आपमें और कार्तिक में फिर क्या अंतर रह गया भैया…? कहते कहते नंदनी रो पड़ी
उसे रोता देख प्रिया भाग कर उसके पास गई और उसे चुप कराते हुए बोली,“ अर्चु प्लीज़ तुम मत रो… ये सब आम बात है… तुम्हारे भैया ने बस थोड़ा ग़ुस्से में मुझे कह दिया… ।” उसे चुप कराते हुए प्रिया की आँखों में भी आँसू आ गए पता नहीं वो आँसू अपनी ननद के दुख के थे या फिर अपने पति की कही बातों से बह पड़े थे ।
भाई का चेहरा शर्म से झुका हुआ था …. गलती तो उसने कर ही दी थी… अपनी बहन के साथ भी और अपनी पत्नी के साथ भी।
नंदनी चुपचाप उठ कर कमरे में चली गई… जब आपके आगे के रास्ते बंद नज़र आते तो अकसर ये ख़्याल आता मायका तो है वो शायद दुख तकलीफ़ समझने की कोशिश करे पर यहाँ तो उसकी वजह से भाई भाभी में तकरार होने लगी थी … अब क्या करें उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था गोद में छह महीने का बेटा चैन से सो रहा था… दूसरी ओर माँ सिर पर हाथ रखें बेटी के भविष्य के लिए सोच रही थी..
नंदनी कमरे में आकर बेटे को सुलाकर ख़ुद एक तरफ़ सो गई… जब मन परेशान हो और दिमाग़ भी शून्य की भूमिका निभाने लगता और आगे का रास्ता स्वतः बंद नजर आने लगता… उसका मन किया सब कुछ छोड़ कर चली जाए… किसके लिए जीना… जब किसी को उसकी परवाह ही नहीं…..
न जाने कब वो तीन साल पीछे चली गई …..“ बहुत बहुत बधाई हो आज से आप मिसेज़ कार्तिक सिंह कहलाएगी… ये ही वो लाइन थी जिससे नंदनी को लग गया था अब अपनी ज़िन्दगी किसी और के हाथों में सौंप कर वो अपना सबकुछ खोने वाली…
शादी के बाद नंदनी ने महसूस किया कार्तिक बस अपने से मतलब रखता था ..उसे नंदनी से कोई मतलब नहीं था वो बस उसके घर में रहे काम करे और उसके माता-पिता का ख़्याल रखें ना उससे ज़्यादा वो कोई ख़्वाहिश रखें… कार्तिक अपने लिए जो चाहे खरीद लें पर जब नंदनी उससे कहती तो कहता बेकार का फ़िज़ूलख़र्ची करने की ज़रूरत नहीं है अभी जो तुम्हारे पास है उसमें ही खुश रहो..माता पिता कार्तिक की हर बात पर सहमत रहते वो जो कह देता वो आँख बंद करके मानते थे…उसके तो दोस्त भी बहुत कम थे…नंदनी बहुत खुले विचारों वाली लड़की .. बहुत दोस्त और सबसे उसकी अच्छी बनती थी.. शादी के बाद अब कार्तिक के हिसाब से चलना पड़ता था.. जो नौकरी वो करती थी कार्तिक ने छुड़वा दिया.. ना किसी से मिलने जा सकती ना ज़्यादा बात कर सकती.. हर बात पर रोक टोक … जो कभी घर में अपनी पसंद का कुछ करना चाहे कार्तिक डाँट देता.. बहुत बार उसने इशारों में माँ और भाई से ये बात कहनी चाही पर वो उसकी बात को हल्के में ले लेते.. ससुराल और मायका एक ही शहर में हो तो मायके जाना भी मुश्किल होता कभी गई भी तो कार्तिक साथ आता साथ ले जाता…. ऐसे में वो कभी कुछ भी कह ना सकी..
कभी जो दोस्तों से मिलने या उनके साथ घुमने जाने का कार्यक्रम बनें कार्तिक एक सपाट लहजे में बस “ना” कहना जानता था..धीरे-धीरे नंदनी के दोस्त उससे दूर होते चले गए।
वक़्त गुज़रता रहा और गोद में कान्हा आ गया..वो उसमें व्यस्त होने लगी…. बच्चा बड़ा हो रहा था उसके लिए जो ज़रूरी हो वो सब करने को कार्तिक तैयार रहता पर जब नंदनी ने एक दिन उससे कहा,“ कार्तिक अब कान्हा छह महीने का हो गया है मैं सोच रही थी इसको अब कुछ ठोस आहार दिया जाए.. बाज़ार में आजकल तरह तरह के बेबी फ़ूड मिलने लगे हैं आप कुछ ले आईयेगा…।”
“ नंदनी हम भी कभी बच्चे थे.. हमें तो कोई बाहर का आहार नहीं मिला तो क्या हम बड़े नहीं हुए.. तुम माँ से पूछकर घर की चीजें ही दो.. बेकार का उनपर पैसे बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं है ।” कार्तिक बोल कर नंदनी को चुप करा दिया
नंदनी को बहुत दुख हुआ और वो रोने लगी.. घर पर जो बनाती वो खाता नहीं है क्या पता वो आहार खा लें पर कार्तिक ने तो लाने से साफ मना कर दिया।
तभी उसके दरवाज़े की घंटी बजी .. सासू माँ ने दरवाज़ा खोला तो सामने उसकी भाभी प्रिया और उसकी दो साल की भतीजी वंशु खड़ी थी…,“अरे आप बिना बताएँ आ गई.. ऐसे आना सही नहीं है आगे से बता कर आइएगा.।” सास ने कहा
तब तक नंदनी अपने कमरे से बाहर आ गई थी ..भाभी को देख चेहरे पर मुस्कान लाते गले मिली और अपने कमरे में ले गई.. .. सास कुछ बोलने को हुई तो नंदनी ने कहा,“ वो वंशु को कान्हा से मिलने का मन था इसलिए भाभी वंशु को कान्हा से मिलाने आई है ..।”
प्रिया नंदनी के झूठ से समझ गई कि यहाँ के हालात ज़्यादा ठीक नहीं है..कमरे में जाकर प्रिया ने पूछा,“ तुमने झूठ क्यों कहा? मैं तो किसी और काम से आई थी.. एक तो तुम घर नहीं आती..फोन पर भी ज़्यादा बात नहीं करती आख़िर बात क्या है अर्चु मुझे बता तो सही..।”
आज नंदनी चुप ना रह सकी.. अपनी भाभी को सारी बात कह सुनाई… रोते रोते उसने कहा,“ भाभी कार्तिक को पत्नी नहीं बंदिनी चाहिए थी जो बस उसके इशारों पर चलें.. उसकी इच्छाएँ.. भावनाएँ उसके लिए कोई मायने नहीं रखती ।”
प्रिया को बहुत ग़ुस्सा आया अपने पति पर क्या देख कर अपनी बहन को यहाँ बाँध दिया वो उसी समय बोली,“ मैं तो हमारी पाँचवीं सालगिरह पर तुम लोगों को न्योता देने आई थी पर अब तो नहीं लगता ये लोग तुम्हें जाने देंगे.. तुम अभी मेरे साथ घर चलो.., देखते कार्तिक क्या बोलते… तुम क्यों चुपचाप सह रही थी….. वो पति है तुम्हारा भगवान नहीं जो वो जो करता रहें हम नसीब समझ स्वीकार करते रहें.. अब उठो.. सामन लो और चलो… मैं यहाँ अब तुम्हें रहने नहीं दूँगी.. तुम क्या से क्या हो गई हो.. हँसना मुस्कुराना तक भूल गई हो..।”
प्रिया नंदनी की एक ना सुनी और अपने साथ घर ले आई।
घर पर माँ तो बस चुप हो गई ये सोचकर कि बेटी का क्या होगा.. बहू उसे क्यों वहाँ से ले आई.. अब कार्तिक को ज़्यादा ग़ुस्सा आया तो नंदनी को रखने से ही ना मना कर दें..
जब नितिन घर आया तो उसे प्रिया ने सारी बात बता दी पर नितिन नंदनी की तकलीफ़ समझने की बजाए प्रिया पर ही ग़ुस्सा करने लगा था जिसे देख कर नंदनी को बहुत दुख हो रहा था।
“ अरे अर्चु कहाँ खो गई हो.. चलो उठो।” प्रिया की आवाज़ से नंदनी वर्तमान में लौट आई
“ भाभी आप मुझे बेकार का घर ले आई.. मेरी वजह से आप को इतना सुनना पड़ा… मुझे माफ कर दो।” नंदनी ने कहा
“ कैसी बात करती हो नंदनी तुम्हारी भाभी हूँ दुश्मन तो नहीं तुम वहाँ रहकर अपने अस्तित्व को खो रही थी.. आज नितिन ने जो भी बोला वो एक बहन के लिए चिंता ही है ना.. उन्हें मैं तब गलत लग रही थी पर अब वो समझ गए हैं कि उसमें उनकी बहन को कितनी तकलीफ़ सहनी पड़ रही थी अब वो कुछ नहीं बोलेंगे.. हमने सोच लिया है अगर कार्तिक के व्यवहार में बदलाव नहीं आया तो हम तुम्हें वहाँ नहीं भेजेंगे । अभी नितिन जाएँगे कार्तिक से मिलने… हमें तुम्हारी फ़िक्र है ।”प्रिया ने कहा
नितिन जब कार्तिक से मिल कर आया तो वो बहुत ग़ुस्से और दुख में था। कार्तिक वो इंसान ही नहीं था जो कभी बदल सकें और अपनी बहन को ऐसे इंसान के साथ बाँध कर रखना जिसमें उसकी बहन ख़ुद को खो दें.. उसने निर्णय लिया कि अब उसकी बहन जो फ़ैसला करेगी उसमें उसका साथ देगा।
“ नंदनी तुम क्या चाहती हो ये बताओ ….मैं कार्तिक से मिल कर आया वो तुम्हारे यूँ चले आने से बहुत ग़ुस्सा हो रहा था और ना जाने कितनी गालियाँ दे दी मुझे बस इतना ही समझ आया वो बदलने वाला इंसान नहीं है.. क्या तुम वापस वहाँ जाना चाहती हो?” नितिन ने कहा
“ भैया क्या मैं वापस से अपनी नौकरी शुरू कर दूँ… मुझे अपने आपको मार कर नहीं जीना.. इतनी बंदिश की अपने बच्चे के लिए मैं कुछ चाह कर भी ख़रीद नहीं सकती… अपने लिए तो बर्दाश्त कर गई पर अपने बच्चे के लिए मुझे उस घर में नहीं जाना.. ।”नंदनी ने ढृढता से कहा
प्रिया ने भी नंदनी का साथ दिया… नितिन अपनी पत्नी की सराहना करते नहीं थकता क्योंकि उसकी बहन कीं ज़िन्दगी को उस नरक से बाहर निकालने वाली वही थी..
आज नंदनी फिर से हँसने लगी..ख़ुश रहने लगी.. और अकसर वो अपनी भाभी से कहती हैं,“ भाभी आप नहीं होती तो मैं शायद उस काल कोठरी में दम तोड़ देती ।”
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रश्मि प्रकाश
Ser