यह कहानी एक 50 वर्षीय व्यक्ति की कहानी है। जो अपने उग्र स्वभाव के कारण हमेशा लोगों को पराया लगा, लेकिन दिल से सबको अपना बना गया।
महेश्वर का आज 50 वा जन्मदिन है। महेश्वर और उसके दोस्त रामेश्वर ने आज खूब मस्ती की।
रामेश्वर बहुत ही शांत और मृदु स्वभाव का व्यक्ति है। जबकि महेश्वर दिल से बहुत अच्छा परंतु उसे बहुत ही जल्दी छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता । जिसके कारण वह हमेशा लोगों को पराया लगता। गांव वाले उनकी दोस्ती देखकर हमेशा बातें बनाया करते।
, देखो दोनों कितने विपरीत है, फिर भी हमेशा एक साथ’ रहते हैं।
महेश्वर गांव का जमीदार है ,और रामेश्वर राजनीतिक पार्टी का नेता परंतु दोनों की दोस्ती के बीच कभी भी ना तो राजनीतिक पार्टी आई और ना ही कोई और मुद्दा। अबकी बार के चुनावों में पार्टी में रामेश्वरम के खिलाफ भीतर ही भीतर बहुत सारे लोग हो गए। खुद रामेश्वरम का भाई उसका साथ छोड़ कर, दूसरी पार्टी में चला गया।
अबकी बार फिर चुनाव होने वाले हैं। और विधायक की टिकट अबकी बार रामेश्वरम को मिली। यह सुनकर उसके बड़ा भाई ने उससे बात करनी बंद कर दी।
रामेश्वरम को समझ ही नहीं आ रहा था की पार्टी और रिश्तो में भाई इतना क्यों उलझ रहे हैं।
वे अपने मन की बात हमेशा महेश्वरम को बताता,
‘देख भाई महेश्वर कैसा कलयुग आ गया है ?एक तरफ भगवान राम थे, जिन्होंने अपने छोटे भाई के लिए पूरा राज्य त्याग दिया।’
एक तरफ मेरा भाई’ है जो मुझसे बिना बात ही नाराज है
रावण में भी अनेक दोष थे ,तब जाकर विभीषण उसके खिलाफ गया।’
बस मेरा तो पार्टी की विचारधारा को लेकर मतभेद है उनसे व्यक्तिगत मतभेद कुछ भी नहीं है फिर भी वह ना जाने क्यों मुझसे इतना नाराज रहते हैं।’
महेश्वर -भाई !कलयुग का असर है ,अहंकार में अंधा व्यक्ति अपना पराया नहीं देखता’
जिस दिन उनका अहंकार मिट जाएगा, उस दिन उनकी नाराजगी भी मिट जाएगी परेशान मत हो।’
परंतु महेश्वर सदा रामेश्वरम के कंधे से कंधा मिलाकर उसका साथ देता। वह हमेशा रामेश्वरम को एक उभरते नेता के रूप में देखना चाहता । कोई भी विपक्षी दल कभी भी जब रामेश्वरम की पार्टी की आलोचना करता वह सबसे पहले उस के पक्ष में बोलता।
कोरोना की चपेट में आते ही महेश्वरम के फेफड़े खराब हो गए। उसे अब धीरे-धीरे सांस आने लगी।
रामेश्वरम पूरा समय महेश्वरम के साथ रहा। और उसके स्वास्थ्य की कामना करता रहा। अंतिम समय में भी महेश्वर रामेश्वरम के भविष्य की चिंता करता रहा।
और कहने लगा, देख
भाई मैं रहूं या ना रहूं परंतु तुझे हमारी पार्टी का नेता जरूर बनना है।’
रामेश्वर- ‘तू ऐसी बातें क्यूं रहा है , मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा।’
परंतु परमात्मा को कुछ और ही मंजूर था महेश्वर ने रामेश्वरम की गोद में दम तोड़ दिया। और पराया हो कर भी सदा सदा के लिए अपना बना गया। और जो अपना भाई था वह पार्टी के लालच में अपना होकर भी पराया हो गया।
अब रामेश्वरम मन ही मन सोच रहा था । ‘कोई रिश्ता ना होते हुए भी महेश्वर बिछड़ कर भी अपना बना गया और भाई साथ रहते हुए भी पराया हो गया ‘।
इस जग में,
कौन अपना ,कौन पराया ?
अनीता चेची