घनश्याम जी कोरबा के एक स्कूल में गणित के शिक्षक थे । पत्नी सुकन्या और तीन बच्चों के साथवहाँ वे सालों से रह रहे थे । उनकी दो बेटियाँ थीं और एक बेटा था ।बड़ी बेटी सरोजा,दूसरी बेटी सरलाऔर बेटा सुबोध । घनश्याम जी गणित बहुत अच्छा पढ़ाते थे । अभिभावकों की सोच यह थी कि उनकेअच्छे से पढ़ाने के कारण ही उनके बच्चों को इतने अच्छे अंक मिलते हैं । इसलिए स्कूल औरअभिभावकों के बीच उनका बहुत नाम था ।
यहाँ तक कि लोगों का यह भी मानना था कि उनके पास ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों को आई. आई . टी मेंएडमिशन ज़रूर मिल जाता है । इसलिए माता-पिता अपने बच्चों को उनके पास ट्यूशन भेजने के लिएउतावले होते थे । मास्टर जी सिर्फ़ दस बच्चों को ही ट्यूशन पढ़ाते थे ।उनकी सोच थी कि घर को भीस्कूल बना देने से क्या फ़ायदा है । थोड़े बच्चे रहेंगे तो उन पर अच्छे से ध्यान दिया जा सकता है । जबवे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे तब उनके बच्चे भी साथ में पढ़ लेते थे । उनकी बड़ी बेटी सरोजा तो उनबच्चों को अच्छा टक्कर देती थी । वह गणित में नंबर वन थी ।दूसरे बच्चे भी उससे गणित सीख लेते थे। साल ख़त्म हुआ मास्टर जी के दस बच्चों में से पाँच बच्चों को आई .आई .टी में एडमिशन मिला ।उनमें से एक सरोजा भी थी ,परंतु आर्थिक तंगी के कारण मास्टर जी ने उसका दाख़िला बी .एस .सी मेंकरा दिया था । सरोजा को घर की परिस्थितियाँ मालूम थी ।इसलिए उसने ज़िद नहीं की औरपरिस्थितियों को समझते हुए बी . एस . सी को ही अच्छे नंबरों से पास किया ।
उसकी पढ़ाई ख़त्म होते- होते दूसरी बेटी सरला ने भी बी .ए में दाख़िला ले लिया था । घर का सबसेछोटा और लड़का होने के कारण मास्टर जी ने सुबोध को लोन लेकर इंजीनियरिंग में दाख़िला दिलायादिया था । मास्टर जी के एक दोस्त ने सरोजा के लिए अंकुश का रिश्ता बताया था वैसे भी मास्टर जीउसे आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे इसीलिए मास्टर जी ने अपने घर को गिरवी रखकर सरोजा की शादीअंकुश के साथ किसी तरह से कर दिया । अंकुश बहुत ही अच्छा होनहार था परंतु लड़कियों के नौकरीकरने के ख़िलाफ़ था । इसलिए उसने सरोजा को नौकरी करने नहीं दिया ।
उसका यह मानना था कि लड़कियाँ अगर नौकरी करेंगी तो बात नहीं मानेंगी और घर को ठीक से नहींसँभाल सकेंगी । यह उसकी सोच थी या फिर उसके परवरिश की ? नहीं मालूम क्योंकि उसने अपनेबचपन से पिता को माँ के साथ दुर्व्यवहार करते हुए ही देखा था । उनकी देखा देखी उसका बड़ा भाईभी अपनी पत्नी के साथ वैसा ही व्यवहार करता था जैसे पिता माँ से करते थे । पिता की सोच के साथ- साथ बच्चों की सोच भी यही थी कि पुरुष घर के काम काज और बच्चों की परवरिश में दख़लंदाज़ीनहीं करते हैं । यह सारे काम महिलाओं के हैं ।
मर्दों का काम तो सिर्फ़ ऑफिस जाना और पैसे कमाना ही है । बाक़ी पूरे काम महिलाओं को ही करनाहै । इसलिए उसने पहले ही दिन सरोजा को बता दिया था कि उसे नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहींहै । पति और अपने घर को सँभाल लिया यही बस है । सरोजा ने अपने पति को जवाब नहीं दिया औरघर पर ही बैठ गई थी । अंकुश और सरोजा की शादी को चार साल हो गए । उनके दो बच्चे भी हो गएथे । आज भी अंकुश के ऑफिस से आते ही सरोजा अपने सारे काम छोड़कर उसके हाथ से उसकेऑफिस का बेग लेती है ,उसके जूते उतारने में उसकी मदद करती है और उसके फ़्रेश होकर आने केपहले चाय और नाश्ता टेबल पर तैयार रखती है । इन चार सालों से यही चलता आ रहा था ।
एक दिन सरोजा बच्चों को पढ़ा रही थी । अंकुश ऑफिस से आते ही कहने लगा सरोजा तुम्हारेपिताजी बच्चों को गणित की ट्यूशन पढ़ाते थे क्या? सरोजा डर गई क्या बात है ,ऑफिस से आते हीयह क्यों पूछ रहे हैं ? उसने डरते हुए कहा -जी पढ़ाते थे । तुम कमलेश को जानती हो ।वह तुम्हारासीनियर था ।तुम्हारे घर ट्यूशन पढ़ने आता था ।
सरोजा ने कहा – जी जानती हूँ क्या हो गया है । अरे !!!सरोजा आज वही कमलेश जी हमारे बॉसबनकर दिल्ली से आए हैं । उन्होंने ने अपने बारे में बताया और हम सबको भी अपना अपना परिचय देनेके लिए कहा था । जब मैंने अपने बारे में बताते हुए तुम्हारे और तुम्हारे पिताजी का नाम बताया तब वेबहुत खुश हो गए थे । उन्होंने यह भी बताया था कि तुम्हारे पिताजी के कारण ही उन्हें आई .आई .टी मेंएडमिशन मिला था । उन्होंने यह भी बताया था कि तुम भी गणित बहुत अच्छा करती थी । हमेशा अपनेक्लास में फ़र्स्ट आती थी । मुझे तो तुमने कभी नहीं बताया इस के बारे में ख़ैर!!और सुनो
उन्होंने तुम्हारे पिताजी का फ़ोन नंबर भी मुझसे लिया है । तुम लोगों की इतनी तारीफ़ कर रहे थे कि मैंक्या बताऊँ !!!ऑफिस में सबके सामने तुम लोगों की तारीफ़ सुनकर मेरा तो सीना ही तन गया था ।उन्होंने यह भी बताया था कि तुम दोनों बहनें उनकी मुँह बोली बहनें हों ।
अंकुश की बातें सुनकर सरोजा को पुराने दिनों की बातें याद आ गई थीं । उसे अपने माता-पिता की भीयाद आई ।
एक बात तो है कि अंकुश भले ही सरोजा को नौकरी नहीं करने देता था पर उससे प्यार बहुत करता था। उसके माता-पिता इसी शहर में रहते हैं उनके पास आने जाने में कभी भी रोक टोक नहीं करता था ।
इसलिए रविवार के दिन सरोजा बच्चों को लेकर मायके चली जाती है । उस दिन भी ऐसे ही बच्चों कोलेकर जब सरोजा माता-पिता को देखने उनके घर पहुँची तो देखा माँ पापा दोनों ही ख़ुश नज़र आ रहेथे । उन्हें खुश देख सरोजा को बहुत अच्छा लगा । सबने मिलकर उस दिन खाना खाया । सरोजा नेपूछा माँ क्या बात है पापा को इतना ख़ुश मैंने बहुत दिनों बाद देखा है । हाँ बेटा आज घर में दो दोख़ुशियाँ आई हैं न इसीलिए तुम्हारे पापा बहुत ही खुश हैं । एक तो सुबोध की नौकरी लग गई है ।दूसरी सरला के लिए एक अच्छा रिश्ता आया है उन्हें सरला पसंद भी आ गई है । वाहह माँ क्या बात है? वह तो ठीक है माँ पर आप उदास दिख रही हो क्या बात है माँ आप खुश नहीं हैं ।
माँ ने कहा — यह बात नहीं है बेटा मैं भी बहुत ख़ुश तो हूँ पर थोडी सी चिंतित भी हूँ । बात यह है सरोजा कि सरला की शादी तो तय हो गई है परंतु शादी के ख़र्चों के लिए पैसे कम पड़ रहे हैं ।तुम्हेंमालूम है न तुम्हारे पिताजी रिटायर हो गए हैं । किससे माँगे समझ में नहीं आ रहा है । एक रिटायरव्यक्ति को कोई पैसे उधार क्यों देगा न । ऐसा क्यों माँ मैं और अंकुश हैं न हम दे देंगे । आप तो कभीभी मुझे आपकी सहायता करने नहीं देती हैं । मैं सरला की बड़ी बहन हूँ तो आपको फ़िक्र करने कीज़रूरत ही नहीं है ठीक है न ?
वह तो ठीक है बेटा पर अंकुश को भी सहायता करने की इच्छा होनी चाहिए न वैसे भी दामाद से मददकैसे ले सकते हैं । । आप ऐसा क्यों सोच रही हैं ,माँ —वे ज़रूर आपकी मदद करेंगे । मैं उनसे बातकरूँगी ।मेरी बात वे कभी नहीं टालेंगे । अभी फ़ोन करके उन्हें बुला लेती हूँ आपने सामने हम बात करलेंगे । देखना कैसे झट से हाँ कहेंगे
माँ ने कहा— रुकजा बेटा । मेरी बात सुन बुरा नहीं मानना । मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ ।
अभी वह कुछ बोलने वाली ही थी कि घनश्याम जी आए और उन्होंने ने कहा सुकन्या यह क्या करने जारही हो ? बस रुको और आगे कुछ नहीं ? कहते हुए जाने लगे सरोजा ने अपने पापा को रोका औरकहा क्या बात है पापा मुझे भी बताइए न ।
मुझे भी तो जानने का हक है । अगर नहीं तो मैं अभी अपने घर चली जाती हूँ । मुझे तो आप लोगों नेशादी के बाद पराया ही कर दिया है ।ठीक है ,शादी के समय निमंत्रण पत्रिका भेज दीजिएगा बाहरवालों के समान ही मैं भी आकर आशीर्वाद देकर थोडी देर रहकर चली जाऊँगी । वैसे भी मैं कौन होतीहूँ ?आपके साथ आपके सुख -दुख की साथी बन सकूँ !!!घनश्याम जी बेटी को इस हालत में न देखसके और उन्होंने सुकन्या से कहा -मैं बाहर जा रहा हूँ ,तू ही बता ।
कहते हुए बाहर बैठक में चले गए और उस दिन को याद करने लगे जब बेटे को इंजीनियरिंग कॉलेज मेंदाख़िला कराना था ।फ़ीस के लिए पैसों का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था किसी तरह लोन के लिएअप्लाई किया । फ़ीस भरने के लिए समय कम था उसी दिन फ़ीस भरनी थी और पैसे दूसरे दिन मिलनेवाले थे । उन्हें समझ में नहीं आया कि किसके पास जाऊँ ? क्या करूँ । सुकन्या ने कहा -बड़े दामादअंकुश से माँग लीजिए ,वैसे भी कल ,परसों में लौटा ही देंगे । घनश्याम को लगा बात सही है ,घर कीबात घर में ही रह जाएगी और किसी को कानों कान ख़बर भी नहीं होगी । इसीलिए घनश्याम अंकुशके ऑफिस गए और सारी परेशानी बता दी और कहा दो ,तीन दिनों में पैसे मिलते ही लौटा दूँगा ।
अंकुश ने कहा दो ,तीन दिनों में पैसे नहीं आए तो आप तो मेरा पैसा नहीं लौटा पाएँगे । मैं ऐसा रिस्कनहीं ले सकता पापा जी सॉरी । घनश्याम जी की तो बोलती ही बंद हो गई । एक मास्टर जिसने सारीज़िंदगी बच्चों को सच्चाई का रास्ता दिखाया है वे कैसे अपने वादे से मुकर सकते हैं । वे सीधे वहाँ सेउठकर आ गए । सुबोध को लेकर कॉलेज पहुँचे ,सोचा कॉलेज के प्रिंसिपल से ही एक दिन कीमोहलत माँग लेता हूँ । कॉलेज की सारी फॉरमालटीस ख़त्म करके जब फ़ीस भरने का समय आया,उन्होंने ने कहा -बेटा मैं कल फ़ीस भर दूँगा क्योंकि मेरे पैसे कल आने वाले हैं ,जैसे ही आएँगे तो मैं भरदूँगा ।
क्लर्क ने कहा —आप एक बार प्रिंसिपल सर से बात कर लीजिए तो घनश्याम जी ने कहा ठीक है मैंयह बात एक बार प्रिंसिपल सर से मिलकर उन्हें भी बताकर उनकी इजाज़त ले लेता हूँ ।ऐसा कहकरपीछे मुडे तो सामने ही प्रिंसिपल सर खड़े थे और उन्होंने घनश्याम जी के पैर छूते हुए कहा !!!सर आपकभी भी फ़ीस भरिए मैं आपसे नहीं माँगूँगा ।मेरा बस चलता तो मैं आपसे फ़ीस भी नहीं लेता । कितनीबार आपने मेरी फ़ीस भरी थी ।मैं तो आभार मानता हूँ कि मुझे भगवान ने आपके लिए कुछ करने काअवसर दिया है । इस तरह सब कुछ सही हो गया था । और सुबोध को इंजीनियरिंग कॉलेज मेंदाख़िला मिल गया था । इतना सब होने के बाद वे अब किस मुँह से फिर से अंकुश से पैसे माँग सकतेहैं । उस दिन से तुम्हारे पापा किसी से भी उधार माँगने के लिए संकोच करने लगे हैं ।
सरोजा पिता के पास जाकर कहती है कि आपने मुझसे यह बात छिपाई है मैं बहुत नाराज़ हूँ आपसे ?
यह बात मैं तुम्हें कैसे बता सकता था बेटा मुझे मालूम है तुम दिल से लगा लोगी और अंकुश से बातकरोगी मैं तुम दोनों के बीच दूरियाँ नहीं पैदा करना चाहता हूँ समझी अब इस बात को यहीं छोड़ दे ठीकहै कहते हुए उठे तभी डोर बेल की आवाज़ सुनाई दी ।उन्होंने जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने एकसुंदर सा युवक खड़ा था । उसने झुककर घनश्याम जी के पैर छुए और कहा मास्टर जी मैं कमलेश हूँ ।
कमलेश !! मैं उसे कभी नहीं भूल सकता क्योंकि वह मेरा सबसे होनहार विद्यार्थी था । मैंने उसे गलेलगाया और भीतर बुलाकर बिठाया और सुकन्या तथा सभी बच्चों को आवाज़ दी कि देखो कौन हमसेमिलने आया है ।
सब भागते आए कि क्या हो गया है ?देखा कि वहाँ कमलेश खड़ा था ।सब लोग बहुत ख़ुश हुए ।सबलोग कमलेश को जानते थे इसलिए बहुत सारी पुरानी बातें करने लगे । सुबोध के बारे में सुनकर वहबहुत ख़ुश हुआ कि उसे नौकरी मिल गई है फिर उसने सरोजा से कहा कि कल मैं तुम्हारे पति देव सेमिल चुका हूँ । सरोजा ने कहा कि हाँ उन्होंने मुझे बताया था कि वे तुमसे मिले हैं ।
सब हैरान होकर उनकी बातें सुनने लगे । कमलेश ने बताया कि अंकुश की कंपनी में ही मैं भी काम कररहा हूँ । कल जब उसने अपने परिचय में सरोजा के बारे बताया तब ही मैं समझ गया था कि आप लोगही हो । सरला की शादी के बारे में सुनकर वह बहुत ख़ुश हो गया और जाते जाते उसने एक चेकघनश्याम जी के हाथ में रखा और कहा कि सरला की शादी के लिए खर्च कीजिए । जब उन्होंने लेने सेमना किया तो उसने कहा बहन की शादी में मेरा भी हक बनता है कि कुछ करूँ इसलिए न मतकहिएगा ।
घनश्याम जी से कुछ कहते नहीं बना और उन्होंने चेक लिया देखा तो तीन लाख रुपयों का चेक था ।कमलेश ने लाख मना करने पर भी जब उन्हें चेक लेने पर मजबूर किया तब उन्हें लगा कि जिन्हें हमअपना समझते हैं वे ही परायों जैसे व्यवहार करते हैं और जिनके बारे में हम कुछ नहीं सोचते हैं वे हीहमारी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं ।
उन्होंने भगवान को लाख लाख शुक्रिया अदा किया क्योंकि उन्हें अभी पैसों की बहुत ही ज़रूरत थी ।बेटे की तो अभी ही नौकरी लगी थी इसलिए उससे मदद की आशा भी नहीं कर सकते थे ।
घनश्याम जी को अपने शिक्षक होने का भी नाज था क्योंकि एक शिक्षक को उनके छात्र वकील,प्रिन्सिपल ,डॉक्टर या किसी अच्छे पदों पर कार्य करते हुए कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं और वे अपनेशिक्षकों को कभी नहीं भूलते हैं ।
#पराए_रिश्ते_अपना_सा_लगे
के कामेश्वरी