पण्डित जी ने कृष्णकांत जी को उनकी बेटी के लिए जो रिश्ता सुझाया था। वह उन्हें ठीक लगा इसलिए उन्होंने हामी भर दी। शुभ मुहूर्त में बातें तय हुईं। वर पक्ष की एक ही माँग थी। वो यह कि “उन्होंने अपनी बेटी के विवाह के लिए जो धन राशि सोची है। वह तिलक में दे दें। उसके बाद वह कुछ नहीं लेंगे। सादगी से फेरे करवा लेंगे । “
इस माँग का कारण वर की बहन का विवाह था। जो बहू के आने के बाद होने वाला था। लेकिन फिर स्थिति बदल गई। बहन के ससुराल वालों ने विचार बदल दिया और पहले ही शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। तो समस्या पैदा हुई खर्चे की। क्योंकि बेटी का विवाह वर पक्ष वाले बेटे के विवाह से प्राप्त सामग्री और नगदी से करने वाले थे।
कृष्णकांत जी सुलझे विचारों वाले शिक्षा जगत से जुड़े इंसान थे। उन्हें इसमें कोई बुराई नजर नहीं आई। क्यों वे लोग बेटी की नौकरी लगवा रहे थे। और दामाद सर्विस वाला मिल रहा था। उन्हें बेटी के भविष्य की कोई चिंता नहीं थी। दहेज का पैसा घर में रहे या खर्च हो जाये। कोई फर्क नहीं पड़ता था। बल्कि शुभ काम में जा रहा था उनका पैसा। उन्हें क्यों ऐतराज होता, उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। और यथा योग्य अतिरिक्त पैसा खर्च कर के विवाह कर दिया। एक सप्ताह बाद जब वे बेटी की विदाई करवाने गये। तो उनकी मुलाकात दामाद से नहीं हुई। परिवार के लोग भी रुचि नहीं लिए उनके पास बैठने में। लौटते वक्त रास्ते में बेटी ने जो बताया उसको सुनकर उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया। “उनका दामाद घर छोड़ कर भाग गया था क्योंकि वह यह शादी नहीं करना चाहता। परिवार के दबाव में बहन के लिए मंडप में बैठ गया था।” बेटी ने ऐसे घर में दुबारा जाने से इन्कार कर दिया। कृष्णकांत जी कानूनी लड़ाई लड़ते भी तो किस के लिए ? उन्होंने इस धोखे को एक सीख बना कर उपयोग किया। यह सलाह देकर परिचितों और रिश्तेदारों को ” कि अगर आपको कुछ देना है। तो बेटी के नाम से एफ डी बनवा कर दो उसकी शादी में। और अतिरिक्त पैसा खर्च मत करो। मंदिर में या कोर्ट में विवाह सम्पन्न करो।और इसके अतिरिक्त बेटी को आत्मनिर्भर बनाकर ही शादी करो।” कृष्णकांत जी की सलाह बहुत से लोग मान रहे हैं आजकल । उन्होंने अपनी बेटी का दूसरी जगह विवाह कर दिया है।वह वहाँ पर सुखी वैवाहिक जीवन जी रही है। और जिसकी शादी के लिए कृष्णकांत जी को धोखा मिला था। वह विधवा का जीवन मायके में जी रही है।
#धोखा
स्वरचित — मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .