सौतेली माॅ॑ – माता प्रसाद दुबे

रमादेवी गुमसुम उदास बैठी कमरे की दीवार पर लगी तस्वीर को एकटक देख रही थी। एक साल पहले का,आज वही दिन था..जिस दिन रवि के पापा एक दुर्घटना में परलोक सिधार गए थे।

पैंतीस वर्ष तक रेलवे में गार्ड के पद पर ईमानदारी से कार्य करते हुए कुछ महीनों बाद ही वे सेवानिवृत्त होने वाले थे..मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। और उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई थी..वह उनकी दूसरी पत्नी थी। उसकी बड़ी बेटी माया जो मात्र दस वर्ष की थी..जब वह इस घर में विदा होकर आई थी..रवि माया का छोटा भाई था।

“मम्मी! क्या सोच रही हो?”रमादेवी की बड़ी बेटी माया कमरे के अंदर आते हुए बोली।”कुछ नहीं बेटी!तेरे पापा की याद आ रही है”कहकर रमादेवी सिसकने लगी।”मम्मी! रोना बंद करो..पापा की जीवन बीमा पालिसी के लिए जांच टीम आई है” माया रमादेवी को समझाते हुए बोली।”बेटी! तूं ही बता दें..जो पूछते है वो लोग?”रमादेवी माया से बोली।

“नहीं मम्मी! नामिनी में तुम्हारा नाम डाला था..पापा ने..इसलिए तुम्हें ही जवाब देना है?” कहते हुए माया रमादेवी को साथ लेकर ड्राइंग रूम की ओर निकल पड़ी।

सात महीने बीत चुके थे। रमादेवी को बीमा के तीस लाख  रुपए और रेलवे से फंड आदि के लगभग पच्चीस लाख रुपए मिले थे। जो उन्होंने अपने बैंक खाते में जमा करा दिया था।”मम्मी! रेल विभाग से लेटर आया है..

मुझे तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए जाना पड़ेगा?”रवि रमादेवी की तरफ देखते हुए चिंतित होते हुए बोला।”परेशान क्यूं हो बेटा! तुम जाओ..तेरे पापा आज नहीं है..मगर उनकी यही इच्छा थी कि तूं एक दिन लोकों पायलट बने..अब उनके न रहने पर तुम्हें यह मौका खुद ही मिल रहा है.. इसलिए तुम मेरी चिंता छोड़कर अपने पापा की इच्छा पूरी करों?

“कहकर रमादेवी खामोश हो गई।”मगर मम्मी! तुम अकेले कैसे रहोगी?” रवि परेशान होते हुए बोला।”मैं अकेले कहा हूं बेटा! तुम्हारी दीदी और जीजा जी है ना..जब तक तूं वापस नहीं आएगा तब तक मैं तेरी दीदी को यहां रोक लूंगी..तुम जाने की तैयारी करो?”रमादेवी रवि को समझाते हुए बोली।”ठीक है मम्मी! जैसी आपकी इच्छा?” कहकर रवि सफर की तैयारी करने लगा।

रवि के जाने के दो दिन बाद रमा को बैंक जाना था। बेटी और दामाद घर पर रूके हुए थे।”माया बेटी! चलों मेरे साथ बैंक से कुछ रूपए निकालने है?”रमादेवी माया से बोली।”अरे मम्मी! आप बैंक के चक्कर क्यूं काटती है..

आपने चेक नहीं ली क्या बैंक से..बड़ा आसान होता है..बस आप साइन करती है ना..कर के मुझे दे दीजिए जितना पैसा आपको चाहिए होगा मैं लाकर दे दूंगा आपको..आप क्यूं परेशान होती है?” माया का पति राकेश  रमादेवी से बोला। “ठीक ही तो कह रहे है मम्मी! आप क्यूं परेशान होती है..हम लोगों के रहते हुए”माया रमादेवी से बोली।” है बेटा! चेक भी है.. मैं तो बस साइन कर लेती हूं किसी तरह..रवि ही सब कुछ करता है..वही जानता है सब?”रमादेवी राकेश से बोली।



“कोई बात नहीं मम्मी! जब तक रवि नहीं आता आप मुझे चेक साइन करके दे दिया करे..जब आपको पैसे की जरूरत हो?” राकेश रमादेवी से  विनम्रता से बोला।” मम्मी! रवि नहीं है तो क्या..आपकी बेटी तो है ना आपके पास..आप बिल्कुल भी परेशान मत हो?”कहकर माया रमादेवी से लिपट गई।

तीन महीने बाद रवि घर वापस लौट रहा था। उसे उसकी मम्मी ने फोन पर बताया था कि किस तरह उसकी गैरमौजूदगी में जीजा और दीदी ने उसकी मम्मी का ख्याल रखा था। उसके मन में अपनी दीदी और जीजा के लिए आदर भाव उत्पन्न हो रहा था। घर के बाहर उसकी मम्मी उसकी राह देख रही थी। वह बहुत खुश थी। “

“मम्मी! मैं आ गया..लोकों पायलट बनकर” कहते हुए रवि रमादेवी की बाहों से लिपट गया।”मम्मी! अब रवि आ गया है..आज शाम को हम लोग अपने घर जाएंगे?”माया रमादेवी और रवि की ओर देखते हुए बोली।”अरे दीदी! कुछ दिन और रुक जाओ अपने भैया को अपनी प्यारी दीदी और जीजा की सेवा का मौका मुझे नहीं दोगी क्या?

“रवि माया के चरण स्पर्श करते हुए बोला।”रवि भैया बहुत काम है घर पर..अब तुम वापस आ गए हों..इसलिए मुझे जाना होगा..जब मेरी जरूरत होगी बुला लेना मैं कोई दूर तो नहीं जा रही हूं भैया?”माया रवि को समझाते हुए बोली।”ठीक है दीदी!जैसा आप सही समझे?”रवि माया और राकेश का अभिनंदन करते हुए बोला। कुछ देर बाद माया और राकेश रमादेवी से विदाई लेकर जा चुके थे।

 

रमादेवी के चेहरे पर खुशी साफ नजर आ रही थी। “रवि बेटा! मैंने भगवान से प्रार्थना की थी..जब तुम सकुशल ट्रेनिंग पूरी करके आओगे तब अखंड रामायण का पाठ और भंडारे का आयोजन करने की..बेटा! तुम पंडित जी से बात करके दिन और तारीख तय कर लो?”रमादेवी रवि को दुलारते हुए बोली। “ठीक है मम्मी!अभी पंडित जी से बात कर लेता हूं?”रवि उत्सुकता से बोला। और बाहर निकल गया।

“मम्मी! मम्मी! तीन महीने में पन्द्रह से ज्यादा चेक बुक का क्या काम पड़ गया?”रवि हैरान होते हुए रमादेवी से बोला।”अरे बेटा! मैं बेटी दामाद का पैसा कैसे खर्च होने देती..इसलिए मैं तुम्हारे जीजा को चेक पर साइन करके दे देती थी?”रमादेवी रवि को दुलारते हुए बोली। रवि हैरान था वह बिना कुछ बोले रमादेवी का मोबाइल लेकर देख रहा था।

उसे बड़ी हैरानी हो रही थी कि किसी भी लेन देन का मैसेज मोबाइल से नदारद था। उसके मन में शंका के भाव उत्पन्न हो रहें थे।मगर वह अपनी माॅ॑ को परेशान नहीं करना चाहता था। इसलिए उस समय वह कुछ नहीं बोला। रवि के मन में उथल-पुथल मची हुई थी। वह सुबह रमादेवी को बिना बताए मम्मी की पासबुक लेकर बैंक की ओर चल पड़ा।



“मम्मी! हमारे साथ बहुत बड़ा विश्वासघात हुआं है..माया दीदी और जीजा ने मिलकर हमारी भावनाओं को ठगकर हमें धोखा दिया है?” रमादेवी से कहते हुए रवि की आंखों से आंसू टपकने लगे।”अरे बेटा! तूं रो क्यूं रहा है?”रमादेवी घबराते हुए बोली।”मम्मी!माया दीदी और जीजा ने तुम्हारे खाते से तीस लाख रुपए निकालकर तुम्हारी ममता को छलकर तुम्हें धोखा दिया है?” कहकर रवि खामोश हो गया।

“क्या माया और दामाद जी ने मुझे धोखा देकर तीस लाख रुपए निकाल लिए?”रमादेवी तड़प उठी। उसका मन उसे झकझोर रहा था..क्या यह वही छोटी सी माया थी,जिसे उसने माॅ॑ का प्यार दिया सगी माॅ॑ से ज्यादा..पाल पोस कर बड़ा किया रवि के पापा से किया वादा ईमानदारी से पूरा किया.. कोई यह भी नहीं जान पाया कि माया रमादेवी की सौतेली बेटी है। रमादेवी गहरे अंधकार में डूब चुकी थी।

“मम्मी! मैं दीदी से बात करता हूं?”रवि गुस्साते हुए रमादेवी से बोला।”नहीं बेटा! तुम कुछ नहीं कहोगे..तुम अपनी दीदी जीजा को रामायण में आने का निमंत्रण दे दो..और कुछ मत कहना..आखिर वह तुम्हारी बड़ी बहन है..

तुम्हारे पापा के पैसों में उसका भी हक बनता है?”रमादेवी रवि को समझाते हुए बोली। रवि रमादेवी की बात सुनकर शांत हो गया वह अपनी प्यारी माॅ॑ की किसी भी बात का उलंघन भूलवश भी नहीं कर सकता था।

दो दिन बाद माया और राकेश रामायण में शामिल होने के लिए रवि के घर पहुंच चुके थे।

रवि अपनी दीदी और जीजा को देखकर भी कुछ नहीं बोला।”आओ माया बेटी! कैसी हो कोई भूल हो गई थी मुझसे क्या?” रमादेवी माया और राकेश की तरफ देखते हुए बोली।”ठीक हूं मम्मी! तुम ऐसा क्यों कह रही हो?

“माया झुंझलाते हुए बोली।”मेरे पालन पोषण में कौन सी कमी रह गई थी बेटी!जो तुमने अपनी माॅ॑ को धोखा दिया?” कहते हुए रमादेवी की आंखें भर आईं।”मम्मी! हमने कोई धोखा नहीं किया है..पापा के पैसों में मेरा भी हक था..मैंने अपना हिस्सा ले लिया है..इसमें कौन सी गलत बात है?”माया व्यंगात्मक लहजे में बोली।

“माया बेटी! तुम्हें अपनी मम्मी और छोटे भाई पर विश्वास ही नहीं रहा..तुम्हें पैसे चाहिए थे..तो मुझसे कहती..इस तरह धोखा फरेब करने की क्या जरूरत थी?” रमादेवी अपने चेहरे पर ग्लानि का भाव दर्शाते हुए बोली।”मम्मी! तुम राई का पहाड़ मत बनाओ..ऐसा होता तो तुम मुझसे कुछ नहीं कहती.. मैंने अपने हिस्से का पैसा लिया है..

यह कोई धोखाधड़ी चोरी नहीं है?”माया चिल्लाते हुए बोली।”ठीक है बेटी! तुमने अपना हिस्सा ले लिया है ना..और कुछ कमी रह गई है..तो वह भी ले लो..मैंने कभी तुम्हे अपनी सौतेली बेटी नहीं समझा रवि से ज्यादा प्यार दुलार दिया तुमको..

मगर आज तुमने यह जरूर साबित कर दिया कि मैं तुम्हारी सौतेली माॅ॑ हूं?”कहकर रमादेवी फूट-फूट कर रोने लगी। रवि चुपचाप खड़ा माया और राकेश की तरफ घृणित दृष्टि से देख रहा था। माया और राकेश चुपचाप घर से बाहर निकल गए।

 

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित

लखनऊ

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