“कपूत” – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

सर ,बाहर एक नव-युवक काफी देर से आश्रम के दरवाजे पर बैठा है। वह आपसे मिलना चाहता है । कहिये तो बुला दूँ उसे…..।

ऐसे कैसे किसी को भी ऑफिस के अंदर बुला लोगे तुम?

सर, मैं दस बार उसे कह चुका हूं पर वह जिद पर अड़ा है आपसे मिलने के लिए।

जाकर पूछो क्या काम है,  तुम्हें पता है न कि संडे को आश्रम का ऑफिस बंद रहता है और मैं डॉ से बुजुर्गों का स्वास्थ्य चेकअप करवाता हूँ।

जी ठीक है सर ,मैं पूछ कर आता हूं क्यों आया है? वृद्धाश्रम का सहायक रामचंद्र तत्काल उठकर बाहर चला गया। बाहर उसने देखा वह युवक अपना दोनों हाथ बांधे बेंच पर दीवार से अपना सिर टिकाये एकटक नीचे से ऊपर वृद्धाश्रम को निहार रहा था।

रामचंद्र ने आवाज ऊँची कर पूछा-” साहब ने पूछा है किससे मिलना है भाई?

मैं यहां के हेड से मिलना चाहता हूं बहुत जरूरी है कृपया मिलवा दो मुझे। यहां के हेड कौन हैं? क्या नाम है उनका?

हाँ, यहां  के हेड नवनीत सर हैं ,पर क्या बात है क्यों मिलना चाहते हो बताओ मुझे। वैसे साहब इतवार को किसी से नहीं मिलते।

युवक बोला-” देखो बहुत दूर से आया हूँ और फिर वापस भी जाना है देर हो जाएगी। प्लीज….  उसने अपने दोनों हाथ रामचंद्र के आगे जोड़ दिये ।

रामचंद्र के अनुरोध पर वृद्धाश्रम के हेड नवनीत सर उस नव युवक से मिलने के लिए तैयार हो गए ।

ऑफिस में टेबल के दूसरे तरफ वाली कुर्सी पर वह युवक सिर झुकाए बैठा था ।

नवनीत सर ने कहा -“हाँ , बोलिए क्या कहना है आपको?

यहां वृद्धाश्रम में आपको क्या काम है?

-”  जी वो… वो…मैंने सुना है चार दिन पहले एक वृद्ध

व्यक्ति को यहां लाया गया है। मैं उनसे मिलना चाहता हूं ।

सुनते ही नवनीत सर को जैसे किसी ने करेंट लगा दिया हो अचानक कुर्सी पर से उठकर खड़े हो गए। 

आंखें गुस्से से चौड़ी हो गई। दांत को दांत से पिसते हुए बोले-”  वाह रे कपूत! जल्दी उठो और दफा हो जाओ यहां से,धिक्कार है तुम जैसे औलाद पर…..कितने गिरे हुए हो और कितना गिरोगे ? पहले घर से निकाल दिया मरने के लिए। अब कहीं से सूचना मिल गया है कि   पिता यहां वृद्धाश्रम में लाए गए हैं  तो  थाह पता करने चले आए कि जिंदा है  या नहीं !  जाओ अभी यहां से जाओ वर्ना मैं पुलिस को बुला लूंगा। “



“सर , आप मुझे गलत समझ रहे हैं मुझे नहीं पता था कि पिताजी के साथ इतना बड़ा धोखा किया गया है।”

“ऐसा है कि मैं पिछले दस वर्षों से इस वृद्धाश्रम को चला रहा हूं और मैं अच्छी तरह से वाकिफ हूँ कि किस- किस तरह के इंसान यहां धोखा खाकर आते हैं, धूल किसी और की आंखों में झोंकना समझे। “

प्लीज सर , ऐसा नहीं है आप एक मौका तो दीजिये मुझे कुछ बोलने के लिए ….उसके बाद आप चाहें तो मुझे पुलिस के हवाले कर सकते हैं प्लीज…।

वह युवक हाथ जोड़े कुर्सी छोड़ खड़ा हो गया ।वह बार- -बार अपने आंखों से निकलते आंसू को रुमाल से पोछ रहा था ।

रामचंद्र को पता नहीं क्यों उसपर दया आ रही थी।उसकी अनुभवी आंखे युवक के आंसुओं में छिपी भावनाएं पढ़ने की क्षमता रखती थीं। रामचंद्र ने

डरते -डरते कहा-” साहब  मेरी बात मानिये थोड़ा सुन लीजिये इसकी भी।”

क्या सुने रामचंद्र, ये  लोग ढोंगी हैं। तुमने देखा था न कि किस हालत में ये लोग बेचारे बुजुर्ग को मरने के लिए फेंक गये थे वृद्धाश्रम के सामने ! तीन दिन तक होश नहीं है उन्हें कितनी मुश्किल से जान बची है उनकी।

वाह रे औलाद !

युवक की तरफ देखते हुए बोले-” अरे यार कितने निर्दयी होते जा रहे हो तुम नये जेनरेशन के लोग। आत्मा मर चुकी है तुम्हारी। माँ -बाप को भगवान का दर्जा दिया जाता है और तुम लोग यूज एंड थ्रो सिद्धांत अपनाते हो उनके लिए। कभी सोचा है जैसा बोवोगे वही एक दिन काटोगे। नहीं, नहीं मैं फिजूल का तुम्हें क्यों ज्ञान दे रहा हूं। जाओ यहां से आज का दिन मेरा खराब मत करो !

तुम सोच रहे होंगे कि तुम्हारे इस घड़ियाली आंसुओं का मेरे ऊपर कोई असर पड़ेगा तो यह तुम्हारी भूल है। मुझे समझ है तुम जैसे कृतघ्न औलाद और उनके द्वारा किए गए कारनामे का। यही तो देखता आ रहा हूँ इतने सालों में।

रामचंद्र ने देखा युवक अपने दोनों हाथों से मूंह झापे हिचकियाँ ले रहा था। उसने हाथ जोड़कर नवनीत सर के पैरों में गिरना चाहा। नवनीत सर ने उसका  हाथ पकड़ उसे रोक दिया और अपने कुर्सी पर बैठ गए ।

सर मेरी बात सुन लीजिये -” माँ पहले ही दुनिया छोड़  हमें अनाथ बना चुकी है कम से कम पिता को तो देख  लेने दीजिये एक बार। “

रामचंद्र ने जल्दी से जग में से पानी ग्लास में डालकर नवनीत सर को पीने के लिए दिया। फिर उसने उस युवक को भी पानी  पीने के लिए इशारे से  पूछा।

कुछ देर मौन रहने के बाद नवनीत सर ने युवक को बैठ जाने के लिए कहा ।

फिर मुड़कर बोले,बोलो क्या सफाई देना चाहते हो….

सर ,आठ साल पहले मुझे ही पिताजी ने मेरी सौतेली माँ के कहने पर घर से निकाल दिया था।



क्या? क्या कहा? 

जी  सर आपने सही सुना। मैं जब बारह साल का था तब मेरी माँ एक बीमारी से काल कवलित हो गई थी। घर में मैं मेरी छोटी बहन और पिताजी तीन लोग जैसे- तैसे अपनी दुनिया फिर से आबाद करने में लगे थे ।तभी कुछ रिश्तेदारों ने पिताजी को दूसरी शादी के लिए दबाव बना दिया। मैं बिल्कुल खिलाफ था पर पिताजी को पता नहीं क्या सुझाया गया था कि वह एक बच्चे की मां से शादी करने के लिए मान गए थे। कुछ दिन तो ठीक रहा लेकिन उसके बाद हम दोनों भाई -बहन नई माँ के आंखों में खटकने लगे। छोटी -छोटी बातों को लेकर घर में कलह होने लगा। मुझे कोई कुछ कहे मैं बर्दाश्त कर सकता था पर बहन के लिए मैं नई माँ से भी लड़ पड़ता था।  मेरी इसी गलती के कारण नई माँ ने साफ शब्दों में कह दिया कि यदि मैं घर से नहीं गया तो वह घर छोड़कर चली जाएगी।  उनके झूठे बहकावे में आकर पिताजी ने मुझे  अक्सर घर से निकल जाने का फरमान जारी करते रहते थे। 

जिस समय मुझे पिता की छाया की सबसे ज्यादा जरूरत थी उस समय मैं पिता के घर और उनके प्यार दोनों से बंचित हो गया। एक  छोटी सी गलती के लिए मुझे पिताजी ने घर से बाहर कर दरवाजा बंद कर लिया। मैं रातभर दरवाजे पर बैठा रहा कि शायद गुस्सा कम होने पर पिताजी मुझे अंदर बुला लेंगे लेकिन अपने ही बच्चे पर उन्हें जरा भी दया नहीं आयी। नींद खुली तो मैं पड़ोस की आंटी जिन्हें मैं चाचीजी कहता था उनके बिछावन पर सोया था मेरे पास बैठी वह रोये जा रही थी ।मुझ अनाथ पर उन्हें दया आ गई थी उन लोगों ने ही मुझे दूसरे शहर में नानी के घर पहुंचा दिया।

तब से मेरे  माँ -बाप  सब वही लोग हैं।  साल बीत गए पर पिताजी ने हमारी कोई खोज खबर नहीं ली। यूँ समझ लीजिए कि हम उनके लिए थे ही नहीं। बाद में मेरी बहन भी हमारे पास आ गई थी । बहन  की शादी में भी  पिताजी ने अपना आशीर्वाद देना मुनासिब नहीं समझा। बाद में पता चला कि नई माँ ने उनतक शादी की खबर पहुंचने ही नहीं दी। मैंने अपने नाना- नानी के सहयोग से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और अब एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर रहा हूँ।

    आज मुझे उन्हीं पड़ोसियों से पता चला कि नई माँ का बेटा जो कानूनन पिताजी का ही बेटा है उसने धोखे से  पिताजी का जमीन -जायदाद अपने नाम करवा चुका है और उनसे छुटकारा पाने के लिए नित नये साजिश करता रहता है ।सर मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ आप एक बार मुझे उनसे मिलवा दीजिये।

वह युवक आपबीती कहे जा रहा था और नवनीत सर मूर्ति बने एकटक उसे देखे जा रहे थे।

रामचंद्र के पुकारने पर उनकी तन्द्रा टूटी। वे कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे ।।उन्होंने इशारे से रामचंद्र को बुलाया और सामने बने कमरे की ओर युवक को ले जाने का इशारा किया।

रामचंद्र युवक को लेकर एक कमरे में गया। बेड पर लेटे बुजुर्ग को देखते ही वह युवक फुटकर रो पड़ा। हाथ  थामकर  – पिताजी….पिताजी पुकारने लगा। उसके आंख से  बहते  आंसुओं  को देख वहां आसपास  खड़े और भी बुजुर्ग थे जिनकी आंखें रो रही थी।

रामचंद्र ने आगे बढ़कर उसे ढांढस दिलाने की कोशिश की लेकिन वह बच्चों जैसे पिता से लिपट कर  रो रहा था।

नवनीत सर किंकर्तव्यविमूढ़ वहीं खड़े उस सच्चाई को देख रहे थे जिसे समझने में उन्हें उनकी आंखों ने धोखा दिया था।

#धोखा

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

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