अप्रकाशित
संजय के छोटे भाई की बेटी की शादी थी…उसने आते ही बोला…अरे वाह मधु शादी की शॉपिंग बहुत जोरो-शोरों से चल रही है…!!!!
जी हाँ होगी क्यूँ नहीं हम सब अलग ही दिखनें चाहिए और हो भी क्यूँ नहीं हमें पैसे की कमी थोड़ी है….पूरे टशन के साथ जायेंगे…!!!!
अच्छा तुम जो शादी में देना है वो सेट ले आयी…दिखाओं तो जरा…!!
मधु ने अपनी बहू को बोला…टीना वो सैट लाना…सैट देखकर संजय ने कहा कि ये इतना हल्का क्यूँ लायी हो भारी लाना था ना…??
उन्होंने भी हमारी बहू को शादी में इतने का ही चढ़ाया था तो हम भी उतना ही देंगें ना…!!
ये गलत बात है मधु उन्होंने अपनी हैसियत से बढ़कर ही दिया था तो हमें भी उस हिसाब से ही देना चाहियें….फिर बेटी को तो हमेशा अच्छा ही करना चाहिए…!!
मैं कुछ नहीं जानती संजय बस मैं तो इतना ही दूँगी…!!
तुम्हारी बातों से तो लगता है कि अगर वो नहीं देतें तो तुम सैट देती भी नहीं…??
हाँ तो आज तो यही रिवाज़ है एक हाथ दो एक हाथ लो…!!!!
मुझे तुम्हारी सोच पर शर्म आ रही है..उस दिन तो तुम बड़ी खुश होकर बता रही थी कि तुम्हारी मासी ने बेटे की शादी में तुम्हारी ममेरी बहन जो आर्थिक रूप से कमजोर है उससे लिफाफें में से सब रूपये वापस करके सिर्फ सौ रुपये रखें और वापस सबकों एक सा ही दिया था…तुम भी उनसे थोड़ी सीख ले लों….!!!!
वो अलग बात थी…अब बात खत्म करतें है…!!!!
ठीक है तो मैं साथ में देनें का लिफाफा पाँच हजार सौ की जगह ग्यारह हजार का बना लेता हूँ…!!!!
मैं बोल रही हूँ ना जो पहले सोचा है वही लिफाफा बनाईयें…चलियें मैं पैकिंग कर लेती हूँ…!!!!
शादी होटल में थी तो सीधा वही पहुँच गयें… बहुत अच्छा स्वागत किया था…विनय-नीलिमा (देवर-देवरानी) ने उन्हें बोला उनके लिये बड़े व सबसे अच्छें वाले कमरें रखें हैं….जब कमरें में गये तो मधु बहुत खुश हो गयी…कितना बढ़िया कमरा है मैंने तो सोचा ही नहीं था कि ऐसा होगा…संजय ऐसे करो तुम लिफाफें में ग्यारह हजार ही कर लो…संजय को हँसी आ गई वो बोला मधु… मैंने पहले ही उतने ही का बनाया है…तुम कहो तो इक्कीस हजार का कह दूँ…अब मधु ने चुप रहना ही जरूरी समझा व जल्दी तैयार होने लगी नीचे जाने के लियें…!!!!!
हाय रे….कोई ना समझें…
मन की भावनाओं के मोल को…!!!!
आज तो…समझतें हैं…
लिफाफों में बंद रिश्तों के तोल को.!!!!
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)