“नीना… जल्दी करो बेटा…. कोर्ट पहुंचना है…रास्ते में फूलमालाएं भी लेना है….अरुण से बात हो गई थी न तुम्हारी…. कह दिया था न कि समय से कोर्ट पहुंच जाऐ…”… गिरीश ने नीना से कहा।
नीना गिरीश की इकलौती बेटी थी।नीना की माँ का असमय देहांत हो जाने के बाद गिरीश ने ही नीना की परवरिश की थी।आज नीना की अरुण से कोर्ट मैरिज होनी थी… उसी सिलसिले में नीना और गिरीश कोर्ट जा रहे थे।गिरीश नीना के विदा होकर चले जाने का सोचकर बैचेन था…कहीं न कहीं मन ही मन मे एक उदासी थी….कैसे रह पाएगा वह उसके बिना… लेकिन बेटी को तो एक दिन जाना ही होता है… बस यही बात वह अपने आप को समझाए जा रहा था।
“हाँ जी पापा… अरुण से बात हो गई… वे समय से पहुंच जाऐंगे… पापा चलिऐ हम भी निकलते हैं”…नीना पिता से बोली।
“पापा….दो गवाहों की ज़रूरत होती है… मैंने उर्मिला आंटी को भी आने का बोला है….वे भी कोर्ट पहुंच रहीं हैं..” नीना ने गाड़ी में गिरीश से कहा।
उर्मिला जी गिरीश के साथ ही कॉलेज में लेक्चरर थीं और उनकी फैमिली फ्रेंड भी।
“अरे….तुमने मुझे बताया नही था… कि उर्मिला जी को भी तुमने बुला लिया है…” गिरीश ने चौंक कर कहा।
नीना ने कुछ नही कहा… बस चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई।
कोर्ट में रजिस्ट्रार के केबिन में अरुण, नीना, गिरीश और उर्मिला चारों खड़े थे….।
“ओके…. डॉक्यूमेंट्स साइन कीजिए… “रजिस्ट्रार ने काग़ज़ आगे बढाए।
“साइन करो बेटे….” गिरीश ने नीना और अरुण से कहा।
“पापा…साइन आप कीजिए…. हमारी शादी कल है….आज आपकी और उर्मिला आंटी की शादी है….पापा आंटी से हमारी बात हो चुकी है और आपके दिल की बात हम जानते हैं… ” नीना ने गिरीश से कहा।
“लेकिन बेटे….” गिरीश ने कुछ कहना चाहा।
“पापा…माँ के बाद मैं थी आपकी देखभाल के लिए तो माँ बेफिक्र थीं… अब मेरे जाने के बाद उर्मिला माँ होंगी आपके साथ तो मैं निश्चिंत रहूंगी… आपको अकेला कैसे छोड़ दूँ….”नीना ने गिरीश से कहा और कलम पकड़ा दी।
*नम्रता सरन “सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश