हमारा समाज पितृसत्तात्मक समाज है,,जिसमें पुरुष की भूमिका अहम होती है,,उसके निर्णय सर्वमान्य होते हैं,,अत: घर चलाने की जिम्मेदारी भी उसी की होती है,,
निखिल की दिली ख्वाहिश थी कि उसका विवाह कामकाजी लड़की से हो,,ताकि मंहगाई के इस दौर में गृहस्थी का खर्च चलाना आसान हो जाये,,जब स्वाति का रिश्ता आया तो उसने खुशी-खुशी हाँ कर दी,,
कुछ दिन तो सब ठीक चलता रहा,,फिर खर्चों को ले कर तकरार होने लगी,,स्वाति बिल्कुल खर्च नहीं करना चाहती थी,,उसे लगता कि उसका पूरा पैसा सेफ रहे,,
उसने बचपन से यही देखा था कि घर का सारा खर्च उसके पापा और भाई ही चलाते थे,,मम्मी तो बस लिस्ट पकड़ा देतीं,,यही उम्मीद वह निखिल से करती,,
कल निधि उससे मिलने आई तो बातों-बातों में अपने मन की बात उसे बताई,,बस फिर क्या था पुरुष निंदा पुराण शुरू हो गया,,ऐसा विषय जिस पर महिलाएं नॉन स्टॉप घंटो बोल सकतीं हैं,,
उनकी स्वतंत्रता,,स्त्रियों पर काम का बोझ,,नारी अधिकार,,दमित शोषित नारी,,पुरुष अभिमान,,न जाने कितने विषय संचारी भाव के समान जुड़ते चले जाते हैं,,
पुरुष का जीवन कितना अच्छा है न,,सब काम अपनी मर्जी से करना,,घर के काम का कोई टेंशन नहीं,,हे प्रभु!अगले जन्म में मुझे पुरुष ही बनना,,फिर मैं आराम से बैठकर ऑर्डर चलाउंगी और निखिल मेरे लिये गर्मागर्म रोटियां बनायेंगे,,हाय,,कितना सुकून मिलेगा दिल को,,गिन-गिन कर सारे बदले लूंगी,,
बहुत उद्वेलित हो गई थी स्वाति,,उसने इस विषय पर अपनी माँ से बात करने का मन बनाया,,सारी बातें सुनकर उन्होंने कहा,,तुम गलत सोच रही हो स्वाति,,
पुरुष जीवन बहुत ही कठिन है,,स्त्री तो केवल ख्वाहिश और जरूरत बता देती है,,उसे किस तरह से पूरा करना है,,उसके लिए धन की व्यवस्था करना और साधन जुटाने का काम तो पुरुष का ही होता है,,
मकान,बच्चों की शिक्षा,शादी-विवाह के लिए वह कमरतोड़ मेहनत करता है,,उन्हें खुश रखने के लिए अपने अरमानों का गला घोंट देता है,,उसके बाद भी उसे हमेशा ही सबसे शिकायतें ही सुनने को मिलतीं हैं,,कोई भी संतुष्ट दिखाई नहीं देता,,
जिस शांति की तलाश में वो भागा-भागा घर आता है,,वहाँ प्यार भरी मुस्कान की जगह,,वो क्या नहीं लाया,,का ताना इन्तज़ार करता मिलता है,,बेचारा अपना दर्द साझा करे भी तो किस से,,क्योंकि बचपन से यही सिखाया गया है कि,,मर्द को दर्द नहीं होता,,
स्त्री का जीवन बहुत निश्चिंत है,,जो घर में होगा,बना देगी और न हुआ तो सुना देगी,,लाये थे क्या,जो बना देती,,बेचारा,,चुप,,
वर्किंग वुमन की बात छोड़ दें तो,,पति बच्चों के जाने के बाद आराम,टीवी,गप्पें,,कितनी प्यारी ज़िंदगी है न,,साथ में गृह सहायिका भी तो है,,
स्वाति की आँखें खुल गई थीं,,पुरुष जीवन का मर्म उसकी समझ में आ गया था,,
कमलेश राणा
ग्वालियर