आज जब उस शहर से गुजरना हुआ तो सहसा नज़र उस मकान पर चली ही गई जहाँ पर अब केवल बर्बादी के निशां बाकी रह गए थे।
वह कार जिसमें बैठे बिना ही रीमा और रमेश की बेइज्जती की गई थी आज जंग खा कर खटारा बन कर खण्डहर हुए गैराज में पड़ी थी।
उस जगह पर निगाह पड़ते ही करीब डेढ़ दशक पहले हुई घटना आँखों के आगे घूम गई।
बारात निकलने में अभी दो घण्टे बाकी थे।बाहर से आये कुछ खास रिश्तेदारों ने प्रसिद्ध शिवलिंग के दर्शन का मन बनाया।
बड़ी बुआजी ने घरातियों के सामने मन्दिर जाने हेतु उनकी कार की मांग रख दी जो पूरी भी हो गई लेकिन रीमा और रमेश तो भाई भाभी के साथ हो लिए।
दीदी के देवर को यह सोच कर ईर्ष्या हो रही थी
” हमारी कार ले कर जा रहे हैं ये लोग ।”
लौट कर आने के बाद देखा दीदी के देवर की छाती पर साँप लौट रहे थे और भरे समारोह में बिना सोचे समझे उसने रीमा और रमेश को दस बातें सुना दी।
“अरे रमेश जी पिकनिक मनाने आये हो या भांजे की शादी में शामिल होने ?”
उसकी तेज़ आवाज़ सुनकर सभी मेहमान उस ओर देखने लगे।अपमान का घूँट पी कर रीमा और रमेश चुपचाप शादी स्थल से बाहर आ गए।
कहा गया है न “मरी खाल की श्वांस सों लोह भस्म हो जाय”।
रीमा को याद आया पिछले साल दीदी का देवर कार , मकान सब छोड़ कर भगवान को प्यारा हो गया और घर के लोग कहीं और शिफ्ट हो गए
अटाला ,जंग लगी कार और खण्डहर मकान उस व्यक्ति के टुकड़े- टुकड़े घमण्ड की कहानी कह रहे थे।
#अहंकार
ज्योति अप्रतिम