” उनका घर बिजनेस सब चला गया , उसमें घाटा हो गया तो इसमें मेरी बेटी का क्या दोष जो लोग उस पर दोषारोपण कर रहे हैं । ये सब उनकी सोची समझी चाल है उन्होंने शादी करने के लिए झूठ बोला अब दोष मेरी बेटी को दिया जा रहा है ” मंजुला देवी तड़पते हुए बोली ।
पास ही खड़ी बहू रमा की आंखों में आंसू झिलमिला उठे और मन से आह सी निकली ” हर बात का दोष मेरी किस्मत पर मढ़ने वाली मांजी आज वही सब जब बेटी पर बीत रही है तो कैसे तड़प उठी सच ही कहा गया जाके पैर ना फटी वेवाईं वो क्या जाने पीर पराई । उठते बैठते हर छोटी से छोटी घटना का दोष उसे दे दिया जाता ” जिस दिन से शादी होकर रमा घर में आई तबसे कुछ अच्छा हुआ ही नहीं घर में ……
हर लड़की की तरह रमा ने भी बड़े अरमानों के साथ ससुराल की चौखट पर कदम रखा था । शादी में बारिश हो गई तो दोष दुल्हन का ,बारात में गड़बड़ी हुई तो दोष रमा की किस्मत का , रास्ते में बस खराब हो गई तो दोष नई बहू का ,घर पहुंचकर रिश्तेदारों के बीच तू तू मैं मैं हो गई तो नई बहू के कदम शुभ नहीं है । ये सब सुनते सुनते रमा को समझ आ गया कि उसका ससुराल भी ऐसा ही है जहां हर गलती हर कमी का दोष उसे और उसकी किस्मत को दिया जाएगा । उसे सुनकर बहुत बुरा लगता लेकिन कुछ बोल नहीं पाती ।
एक दिन सुबह उठी तो पता चला कि रात में बारिश बहुत तेज हुई थी जिस वजह से रात में कमरे में कहीं भी सीलन आ गई तो सासूमां अपना सर पकड़कर रो रही थी और कह रही थी कि ” जबसे हम अपने बेटे की शादी किए हैं पता नहीं क्या हो गया हमारे घर में , कुछ अच्छा हो ही नहीं रहा ,मेरा अच्छा भला नया बना हुआ घर ,बहू के आते ही वो भी दरार दे गया “
रमा चुपचाप अपने काम में लग गई और सोचने लगी ” घर में कुछ अच्छा होता है तो सासूमां उसका क्रेडिट अपना लें लेती कि उनकी किस्मत तो हमेशा से बहुत अच्छी थी वो तो अपने घर की लक्ष्मी हैं उनकी वजह से घर में लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है और घर में कुछ भी ग़लत हुआ तो वो बहू के कदम शुभ नहीं हैं इस वजह से हुआ ।
बेटे का काम-धंधा पहले से नहीं चलता था । शादी करते समय तो लड़की के माता-पिता से झूठ बोल दिया जब बहू घर आ गई तो उसका भी पूरा दोष बहू के सर पर मढ़ दिया कि बहू के आते ही बेटे का काम धंधा फेल हो गया । एक दिन खुद रमा ने ससुर जी को सासूमां से कहते सुना कि उनका बेटा अपने बिजनेस पर पहले से ध्यान नहीं देता था इसलिए उसका बिजनेस ठप हो गया ” लेकिन सासूमां को तो जैसे रमा की किस्मत को दोष देने का बहाना चाहिए रहता था । अब तो हर समय में भी सुनाती रहती कि तुम्हारा पति कुछ करता नहीं है तो तुम्हारा खर्च तो हम उठा रहे हैं तो तुम्हें तो बोलने का कोई अधिकार ही नहीं है और जरा भी चूं चपड़ की तो हाथ पकड़कर बाहर कर देंगे ” ।
इसी बीच रमा की ननद वैदेही का ब्याह एक रईस घराने में तय हो गया अब तो सासूमां को रमा को दिन रात सुनाने का एक बहुत अच्छा बहाना मिल गया और वो अहंकार में भरकर रमा को सुनाती ” मेरी बेटी की तो किस्मत दोनों तरफ से अच्छी है ससुराल मायके दोनों तरफ से ,जबसे शादी तय हुई है सब अच्छा अच्छा हो रहा है । धूमधाम से वैदेही ब्याहकर ससुराल चली गई । हर तरह से सुखी संपन्न ससुराल वैसे ही परिवार के सदस्य बहुत अच्छे ,सब वैदेही का बहुत ध्यान रखते लेकिन कहते हैं समय बदलते देर नहीं लगती । धीरे धीरे उनका बिजनेस घाटे में चला गया । सब महलों से सड़क पर आ गए । घर में तो सब पढ़े-लिखे थे तो वहां तो कोई वैदेही को दोष नहीं देता लेकिन बाहर वालों की जबान कोई नहीं पकड़ सकता सब दबी जबान से कहते ” पहले तो सब था बहू के कदम पड़ते ही ये सब हो गया ,सब चला गया ” ये शब्द जब सासूमां के कानों में पड़ते तो अपनी बेटी के लिए वोतड़प उठती लेकिन उस समय बहू के दर्द का अहसास तक नहीं होता कि उनकी बातों से हमेशा रमा को कितनी तकलीफ़ होती थी ।
वैदेही जब इस बार मायके आई तो अपनी मां से बोली ” मां ! आप हमेशा हर छोटी से छोटी बात का दोष भाभी की किस्मत को देती थी अब देखो घर वाले तो नहीं लेकिन बाहरवाले इन सब बातों का जिम्मेदार मुझे ही ठहराते हैं और मुझे बहुत तकलीफ़ होती है । मुझे याद आता है उस समय भाभी की भीगी आंखों का दर्द ,उस समय वोकुछ कह नहीं पाती थी लेकिन उनकी आंखें बहुत कुछ कह जाती थीं । आपने कभी घर में किसी अच्छे काम का जिम्मेदार उन्हें नहीं माना बस जरा भी कुछ ग़लत होता तो वो उनकी वजह से हुआ है शायद इसीलिए कहा जाता है भगवान के घर देर है अंधेर नहीं , भगवान ने आपको अहसास दिलाने के लिए ही मेरे साथ ये खेल खेला ताकि आपका अहंकार चूर चूर हो सके “…
बेटी की बातें सुनकर मां से कुछ बोलते नहीं बना बस बहुत बनी बैठी रही कि कभी ये नहीं सोचा था जो कांटों भरा पौधा वो रोप रही हैं उसके कांटे कभी उन्हें भी चुभ सकते हैं ” ।
रमा भगवान के न्याय के सामने नतमस्तक थी । सासूमां को तो शायद अहसास हुआ या नहीं लेकिन उनकी बेटी भली-भांति समझ गई थी कि कल बीते समय में मां ने जो अहंकार वश किसी और की बेटी के साथ किया वहीं पलटकर उनकी बेटी के साथ हो रहा है । अहंकार तो रावण का नहीं रही फिर हम लोग तो मामूली इंसान हैं और भगवान के हाथों की कठपुतली हैं वो जैसे नचाता है हमें वैसे ही नाचना पड़ता है
जल्दी ही मिलती हूं आपसे अपने नए ब्लाग के साथ तब तक के लिए राम राम
#अहंकार
कृति मेहरोत्रा