Moral stories in hindi : सासुमां के तेरहवीं के बाद एक -एक कर मेहमानों का जाना।
रह गये हम दोनों पति-पत्नी। बच्चे अपनी जगह पर चले गये।
आज अम्माजी का कमरा साफ कर रही हूं। अस्तव्यस्त अलमीरा में उनके पुराने कपड़े, यादगार वस्तुएं अटरम-पटरम भरा हुआ था। अचानक एक जीर्ण-शीर्ण नीला लिफाफा नीचे गिर पड़ा। बहुत स्नेहिल व्यक्तित्व था मेरी सासुमां का। मेरे उपर उनका विशेष स्नेह था।
मेरी आंखें भर आई। लिफाफे में एक पुराना पन्ना फड़फडा़ रहा था।
“क्या है? “मुझे कौतूहल हुआ। उसमें एक गुमनाम पत्र था ।स्याही फीकी पड़ गई थी। लिखावट कुछ जानी पहचानी सी।
,”मैं आगाह करती हूं लड़की बदचलन है। आपलोग शादी करके पछतायेंगे। गौरी चालू, झगड़ालू स्वभाव की है। आपका घर नरक बना देगी।
एक शुभचिन्तक “।
मेरा माथा ठनका। गौरी तो मेरा नाम है।
तो क्या इसी पत्र को आधार बनाकर मेरी विवाह की तिथि सालभर तक टाल दी गई थी। बिन मां की बच्ची मैं अपने नाम के अनुरूप सीधी सरल काम काज में निपुण.. सबको उचित सम्मान देने वाली।
धन्य थी मेरी सासुमां जिन्होंने कभी भी मुझसे इस गुमनाम खत की चर्चा नहीं की। मैं नतमस्तक हो उठी।
आखिर कौन था मेरा दुश्मन। मैं किंकर्तव्यविमूढ उस खत की लिखावट पहचानने की कोशिश करने लगी। आंखों में आंसू लिए पति के समक्ष खड़ी हुई, “यह चिट्ठी”
पति हंस पड़े.. स्निग्ध हंसी। “यह बैरंग खत तुम्हारे यहां से आई था। मां पिताजी पहले घबडा़ये लेकिन उनकी अनुभवी आँखो ने ताड़ लिया था दाल में कुछ काला है। उन्होंने छानबीन की और तुम्हें बहू बनाकर ले आये। इस खत की जानकारी सिर्फ उन्हें और मुझे थी। “
अचानक बिजली सी कौंधी.. यह लिखावट तो मेरी बड़ी भाभी की थी.. क्या वे मुझे अच्छे घर-वर से व्याहना नहीं चाह रही थी या मुफ्त की नौकरानी जाने का भय था।
चाहे जो कारण हो उस बंद लिफाफे के खत ने मेरी आँखों पर से परदा हटा दिया, “कैसे कैसे लोग! “
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना – डाॅ उर्मिला सिन्हा