अपना कौन – मंजु मिश्रा

ये कहानी लगभग 1966 -67 की है।भीषण अकाल पड़ा था।लोग जिस अनाज को पशुओं को खिला देते थे,उसे साफ कर स्वयं खाने को मजबूर थे।दालों के बचे हुए महीन टुकड़ों की रोटी और चावल की कनकी को उबाल कर पीने को मजबूर थे लोग।

जिनके पास पिछले वर्ष का अन्न बचा था,उन्हें ही कुछ राहत थी।उत्तर प्रदेश भूख से कराह रहा था। किसी गांव में शगुन नाम की एक बहुत ही प्यारी गोरी चिट्टी बडी बडी आंखों वाली मासूम सी लड़की रहती थी।अपने बप्पा, अम्मा,काका और दिदिया

के साथ बहुत खुश थी।पर इस अकाल ने उसके जीवन को उथल पुथल से भर दिया।किसी ने उसकी मासूमियत का फायदा उठाया और उसकी आँखोंमें आंसू भर दिए।एक दिन किसी ने उसे आवाज दी अरे, शगुन सुन तो। हाँ भौजी कह कर वो पास जा पहुंची।

और बता आज खाना खाई।हाँ खाये।का खाया,अरे भौजी वही चूनी के रोटी और नमक।अरे,बताव भला जीका बाप इत्ता बड़ा सरकारी अफसर होय सो चूनी चोकर खाये, अपने बाप को चिट्ठी लिख तेको ले जाये।उहाँ तू मजे में रहेगी,इतना कह भौजी तो निकल ली

पर 16 साल के मासूम हृदय में सपने जगा गई।उसे कुछ हल्का सा याद था उसकी माँ सदा बीमार रहती उसके पिता आते तो ननिहाल के सभी उनकी सेवा में लग जाते पर वो कभी पिता को माँ के पास न देखती।माँ की टी बी की बीमारी थी।

उसे भी माँ से दूर रखा जाता माँ उसे देख रोती  रहती।और एक दिन माँ मर गई।सब आये दिदिया भी अपनी अम्मा के साथ आई वो उसे रोज सिखाती जब हम जाने लगे तुम खूब जोर शोर से रोना तो अम्मा तुम्हे ले चलेंगी फिर हम दोनों साथ रहेंगे

बहनों की तरह।और इस प्रकार वो अपनी मौसी और दिदिया के साथ आगई।चार साल की शगुन उन सब को अम्मा, बप्पा, काका बना बैठी।उसे याद ही न था कि उसके कोई और माता पिता हैं।और पिता तो अपनी विलासितापूर्ण जीवन मे व्यस्त उसे क्या याद करते।

पर आज उसे एक सपना मिला।घर जाकर उसने बप्पा के कागज पत्तर टटोले और पिता का पता पा लिया।एक पोस्ट कार्ड पर बस इतना लिखा – आदरणीय पिता जी प्रणाम।

यहां अकाल पड़ा है खाने पीने की बड़ी समस्या है तो आप मुझे ले जाएं ।आपकी बेटी शगुन।

अकेला मनुष्य जो सब जिम्मेदारियों से मुक्त हो उसके बहुत मित्र होते है और कर्ज में डूबे हुए के सलाहकार भी गजब के मिल जाते है।उन्हें सलाह मिली अपनी बेटी को ले आओ तुम्हे सहारा हो जाएगा।सुंदर होगी तो ब्याह देना उसी साहूकार के बेटे को कर्ज भी उतर जाएगा।उसे सलाह जंच गई।उसने बहुत ही तेवर में अपने साढ़ू को खत लिखा में शगुन को लेने आरहा हूँ।

इस खत से घर मे तूफान खड़ा हो गया।बप्पा बोले आज तक कभी खबर न ली अब अचानक लेने आ रहा है।ऐसे अय्याश इंसान के साथ हम अपनी बिटिया न भेजेंगे।जो अपनी पत्नी का नहीं था बेटी क्या होगा।शगुन सन्न कैसे कहे कि उसने क्या किया है।आखिर वो आ ही पहुंचा।

और शगुन का खत रख दिया सामने तुम मेरी बेटी को भूखा मार रहे हो मैं अब इसे यहां नहीं रहने दूंगा।खत देख पूरा घर सन्नाटे में अम्मा का रो रो कर बुरा हाल की बात क्या हो गई  जो इसने ऐसा किया।अब जो हम खुद खा रहे वही इसे खिला रहे।वो दुःखी हो -बोली ठीक है जा तू अपने बाप के साथ रह आराम से हम तेरे कोई नहीं रहे।पर बप्पा बीच मे आ गए।नहीं वो न जाएगी कहीं जो करते बने कर ले।


और वो धमकी दे कर चला गया कि वो तो अदालत से बेटी को ले कर रहेगा।उसने रिपोर्ट की की देवी प्रसाद तिवारी मेरी बेटी को भगा के ले गया है।ये अपमानजनक आरोप और बप्पा की गिरफ्तारी से सारा घर बिलख पड़ा।दौड़ धूप और कोर्ट कचहरी करते बयान का दिन आया।सारा मोहल्ला जमा हो गया।और शगुन पर तानों की बौछार नाक तो कटा ही दी अब सोच समझ कर बयान देना।

बीच मे अम्मा आ गई बचाव करने देखो उस से कुछ न कहो वो जो चाहे कह सकती है अपने पिता के साथ जाना चाहे तो चली जाए।हमारा जो हो सो हो।

अदालत के कटघरे में खड़ी शगुन कभी बप्पा को देख रही थी जो बिना किसी गलती के सिर झुका के खड़े थे और कभी अपने सगे बाप को जो बप्पा को देख कुटिलता से मुस्कुरा रहा था।उसका हृदय रो पड़ा, ये क्या किया हमने भगवान।

अचानक जज की आवाज बोलो बेटा क्या कहना है क्या ये आदमी तुम्हे भगा कर लाया और अब तुम अपने पिता के साथ जाना चाहती हो।

नही नही ये तो मेरे बप्पा हैं और इस आदमी को तो मैने पहली बार देखा जब ये मुझे लेने आया।मैं इसे नहीं जानती।मैं अपने बप्पा देवी प्रसाद के साथ जाऊंगी।

जज ने कहा फिर तुमने ये चिट्ठी क्यो लिखी।

बस जज साहब किसी ने मुझे भ्रमित कर दिया था।और में गलती कर बैठी।पर इस इंसान ने पिता होकर भी 12 साल तक मेरी कोई खबर नही ली तो काहे का पिता।और वो फूट फूट कर रो पड़ी।

जज ने अपना फैसला सुनाया देवी प्रसाद जी को बाइज्जत बरी किया जाता है।और असीम मिश्र को झूठा केस करने के जुर्म में गिरफ्तार करने का आदेश दिया जाता है।हथकड़ी खुलते ही उससे हुए घाव को देख शगुन पुनः बिलख पड़ी।उसके सिर पर हाथ फेरते बप्पा बोले- चल ये तो बाप बेटी के स्नेह की निशानी है और आश्चर्य वो मरते दम तक ठीक नही हुई।

स्वरचित

मौलिक

मंजु मिश्रा 

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