बड़ी ननद का आठवी में थी तब से ही आना-जाना था परिवार में चाचा-चाची से बहुत बनती थी तो जब छोटे भाई को देखा…तो चाचाजी ने कहा कि नीतू बिन मां-बाप की बच्ची है आप अपने भाई से रिश्ता कर लो और उन्होनें शादी करा ही दी…!!
शादी के दो साल बाद चाचाजी की बेटी की शादी थी तो नीतू आई तो बेटा आठ महीने का था तो जीत उसे छोड़नें आये और शादी में दस दिन बाद फिर आयें शादी अच्छें से हो गई…सब बैठकर बात कर रहें थे तो दीदी ने चाचाजी से कहा कि…जीत पहले आया फिर शादी में आया तो अब वो तो नीतू को लेने तीसरी बार नही आ सकता…तो क्या करना है अंश (चाचाजी का बेटा) जायेगा छोड़ने तो रूक जायेगी…??
चाचाजी ने कहा…कितनें दिन हो गये आये…??
चौदह दिन..!!
हाथ जोड़कर बोलें…अच्छा तो बहुत है अब जाकर अपना घर संभालें….क्यूँकि अंश तो नहीं जा सकता है…!!!!
नीतू जीत के साथ वापस तो चली गयी पर उसे बुरा भी बहुत लगा जरूरी नहीं कि अपमान चिल्लाकर या गुस्सा करके किया जाये कई बार सीधे शब्द भी सीधा दिल पर लगतें हैं…!!!!
एक साल बाद फिर जब दीदी के यहाँ गयी तो ऐसे ही मिलनें गयी एक-दो दिन के लिये तो चाचीजी बहुत दु:खी हो रहें थे कि मीनू (चाचाजी की बेटी) को उसके ससुराल वाले बिल्कुल रूकनें नहीं देते है जब से शादी हुई है तरस गयें है बेटी के साथ रहने के लिये…नीतू बोली तो कुछ नहीं पर मन ही मन सोचा कि सही है…अपना ससुराल संभाल रही है…!!
इस बार उसे रूकने का बोला तो वो बोली की मैंने जीत के साथ ही वापस की टिकट कराई हुई हैं…फिर आऊँगी तो रूकूँगी…चलती हूँ..!!!!
कभी-कभी अपमान भी….
हाथ जोड़ कर किया जाता है…!!
वही अपमान होता है…
वही दिल को गहरईयों से…
छलनी कर जाता है…!!!!!!!
#अपमान
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)