यही तो ज़िंदगी है – के कामेश्वरी

पूरी दुनिया कोरोना नामक बीमारी के दहशत से पीड़ित है । लोग घरों से बाहर निकलने के लिए डर रहे थे । एक दूसरे से मिलना क्या अपने घर के दरवाज़े भी नहीं खोल रहे थे । पूरे भारत में लॉकडाउन हो गया । सभी लोग घरों में बंदी हो गए पर कुछ लोग ऐसे भी थे

जो बीमारी पर ध्यान न देकर घर बैठे बोर हो रहे हैं इसलिए अपने ही दोस्तों के घर मिल जुलकर मौज मस्ती कर रहे थे। उनकी सोच यह थी कि ऐसा समय फिर नहीं मिलेगा । उनमें दीपक का परिवार भी था । दीपक एक बहुत बड़े गेटेड कम्यूनिटी के विला में रहता था ।

बहुत बड़े पोस्ट पर था ।

उसका दबदबा ऑफिस ही नहीं घर के आसपास भी चलता था । एक दिन घर पहुँच कर उसने अपनी पत्नी कीर्ति से कहा , इस वीकेंड में हम अपने घर पार्टी रखेंगे दोस्तों के कुछ परिवार आ रहे हैं तुम ख़ुद तैयार होकर बच्चों को भी अच्छे से तैयार कर देना और रसोइये को समझा देना कि खाने मैं क्या क्या बनाना है ।

कीर्ति ने कहा वह सब तो ठीक है परंतु आपके माँ का क्या करेंगे वे तो नीचे गेस्ट रूम में रहती हैं और बार बार बाहर झांक कर देखती रहती है कि कौन आया है क्या चल रहा है? बुढ़ापा आ गया है पर ताका झांकी नहीं गई । अरे! कीर्ति ऐसा कुछ नहीं होगा तुम तो मेरी माँ के पीछे पड़ी रहती हो ।

कीर्ति को ग़ुस्सा आया । उसने कहा कल की ही बात है मेरी कुछ सहेलियों को मैंने अपने घर बुलाया था । हम सब मज़े से बातें कर रहे थे तभी आपकी माँ कमरे से बाहर आ गई पानी पीने के बहाने सब आपस में खुसुर फ़ुसुर करने लगे ।

मीना ने तो हद ही कर दी थी माँ जी आप तो बहुत कमजोर दिख रही हैं ? खाना वाना समय पर खा रही हैं न ? खुद तो अपनी सास का ख़्याल नहीं रखती पर दूसरों के घरों में टाँग अड़ाती है ।किसी तरह मैंने बात को सँभाल लिया था कि उम्र हो गई है न इसलिए थोड़ी कमजोर दिख रही हैं । इसलिए मैं पहले से ही कहे देती हूँ कि हम आपकी माँ को ऊपर शिफ़्ट कर देते हैं वहाँ रहेंगी तो बार बार नीचे तो नहीं आएँगी है न ।

दीपक ने कहा ठीक है

चलो आज ही ऊपर भेज देते हैं । नौकरों की मदद से संध्या जी को ऊपर के कमरे में शिफ़्ट कर दिया गया । उसने पूछा भी कि क्या बात है बेटा ऊपर के कमरे में क्यों ? नीचे रहूँगी तो थोडी सी चहलपहल रहेगी मैं भी कमरे से बाहर आ जा सकती हूँ ।

ऊपर के कमरे से तो कुछ भी दिखाई नहीं देता है और मैं नीचे नहीं आ सकती हूँ तो नीचे ही रहने दो न । बेटे ने कहा कि माँ अभी हम सब घर में ही रह रहे हैं तो हमें और आपको भी तकलीफ़ होगी । वह कुछ और कहना चाह रही थी परंतु दोनों ने उनकी बात को अनसुना कर दिया था ।

संध्या जैसे ही ऊपर पहुँची दीपक और कीर्ति ने रातों रात अपना सामान नीचे के कमरे में जमा लिया । संध्या के कमरे में एक घंटी रख दिया कि ज़रूरत हो तो बजा देना पानी खाना सब ऊपर ही पहुँचा देंगे । दूसरे दिन पार्टी मनाने के लिए दीपक के दोस्त आए । पूरे घर में चहल पहल हो गई देर रात तक सब बातें करते हुए बैठे थे ।


सुबह घर में सब लोग देरी से उठे बेचारी संध्या घंटी बजा बजा कर थक गई । किसी ने भी पानी नहीं दिया और न ही चाय नाश्ता के लिए पूछा । ग्यारह बजे तक सबका सबेरा हुआ । सबने चाय नाश्ता किया और कल की बातों को याद करके हँस रहे थे तभी दीपक को घंटी की आवाज़ सुनाई दी उसने नौकर से कहा देखो माँजी बुला रही हैं । उन्हें क्या चाहिए पूछकर आओ  तब जाकर उस दिन संध्या को चाय नाश्ता मिला ।

अब यह रोज़ का सिलसिला हो गया क्योंकि लॉकडाउन के कारण सब घर में ही थे कभी कोई इनके घर आता था । कभी ये लोग दूसरों के घर पहुँच जाते थे । दीपक अपने परिवार के साथ रात को ही एक दोस्त के घर जाकर आया था

और दूसरे दिन सुबह दीपक को बुख़ार हो गया गले में दर्द शुरू हो गया डॉक्टर के पास जाकर कोरोना टेस्ट कराया गया तब पता चला कि कोरोना पॉज़िटिव है ।

न्यूनतम सुविधाओं वाले एक छोटे से कमरे में उसे आइसोलेशन के लिए रखा गया । मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे कोई बात नहीं करते थे और न ही कोई नज़दीक आते थे । खाना भी प्लेट में भरकर कमरे के अंदर सरका देते थे ।

कैसे गुजारे उसने वे चौदह दिन वही जानता था । दीपक चौदह दिन की जद्दोजहद के बाद अपनी करोना नेगेटिव की रिपोर्ट लेकर अस्पताल के काउंटर पर खड़ा था । सब लोग उसके लिए तालियाँ बजा रहे थे । जंग जीतकर कोरोनावायरस से लड़कर सही सलामत वह बाहर आ गया था ।

उसके चेहरे पर जीत की ख़ुशी दिखाई नहीं दे रही थी । रास्ते भर गाड़ी में उसे आइसोलेशन नामक वह ख़तरनाक मंजर ही याद आ रहा था । इतना बड़ा अफ़सर बड़ी गाड़ी लोगों के बधाई के फ़ोन कॉल यह सब उसे अब अच्छे नहीं लग रहे थे वह जल्द से जल्द घर पहुँचना चाह रहा था ।

घर पहुँचते ही स्वागत में खड़े पत्नी ,बच्चे और दोस्तों को वहीं छोड़कर वह सीधे उस कमरे में गया जहाँ उसकी माँ बंद थी । पिता की मृत्यु के बाद माँ ने बाहर का गेट भी नहीं देखा था अर्थात् आठ सालों से वह कमरे में क़ैद थी ।

आइसोलेशन में थी । उसके लिए भी मनोरंजन का कोई साधन नहीं था । कोई भी उससे बात नहीं करते थे । वह सीधे उनके पैरों में गिर गया और माँ से माफ़ी माँगने लगा और कहने लगा माँ आप आठ सालों से एकांतवास (आइसोलेशन) गुजार रही थी । मैं आपकी तकलीफ़ को समझ नहीं पाया था । आज से आप अकेले नहीं रहेंगी हमारे साथ ही रहेंगी ।

माँ भौंचक्की होकर देख रही थी कि जो बेटा पत्नी की बात को टाल नहीं सकता था । आज पत्नी के सामने ही उससे अपने साथ रहने की बात कह रहा था । इतना बड़ा हृदय परिवर्तन एकाएक कैसे हो गया ?

बेटे ने अपने आइसोलेशन के दिनों की सारी परिस्थितियाँ अपनी माँ को बताई और कहा आज मुझे अहसास हो रहा है माँ कि एकांतवास कितना दुखदाई होता है ।

बेटे की नेगेटिव रिपोर्ट उसके ज़िंदगी की पॉज़िटिव रिपोर्ट बन गई । यही तो ज़िंदगी है …..

के कामेश्वरी

 

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