हरीराम मास्टर जी की आंखों के आगे अंधेरा छा गया…
पिछले तीन माह से बड़ी बेटी सुधा की शादी की तैयारियों में पूरा घर लगा था. ससुराल वाले ऊंचे तबके के थे. हमारा उनसे कोई मेल नहीं, लेकिन बेटी की ज़िद थी . रमेश लड़का अच्छा था. एक बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत था. सुधा भी उसी बैंक में लगी हुई थी. ससुराल वालों ने जब खुद आगे बढ़कर लड़की मांगी और कहा – ” हमें कुछ नहीं चाहिए..” तो मास्टरजी मान गए. बेटी की खुशी से बढ़कर एक बाप को और क्या चाहिए.
अध्यापक की नौकरी से जैसे तैसे घर चलता था, फिर भी दोनों बेटियों को पढ़ा लिखाकर नपने पैरों पर खड़ा करने का सपना पूरा किया. अब शादी में भी विवाह स्थल लड़के वालों की पसंद का ही था. काफी मंहगा था फिर भी किसी तरह मान लिया. कुछ जेवर कपड़ों के अलावा लड़के की पसंद की मोटरसाइकिल देने का भी प्रबंध किया. हर बाप अपनी हैसियत से अधिक ही करता है.
लेकिन कल जब सुधा के ससुर जी का फोन आया और कहा – ” मिलनी के समय दस बारह करीबी संबंधियों को एक एक सोने का सिक्का तो देना ही होगा… ” तो हरिराम जी का कलेजा मुंह को आ गया. इस समय किसी के आगे हाथ फैलाने की भी हिम्मत न थी. बेटी हाथों में मेंहदी लगाए बैठी थी. करीबी रिश्तेदारों का आना भी शुरु हो गया था. हे भगवान, ये कैसी विपदा…मास्टरजी रूलाई न रोक पाए. सुधा की मां ने गले और कानों के हल्के से जेवर उतार कर थमाए, पर उनसे क्या होता.
बाबूजी का उतरा चेहरा सुधा से छुप न सका. मां से पूछा तो वो सर झुका लीं. फिर रुलाई छूट गई. सुधा को सब बात बताई, पर अब सब इंतजाम हो गया है. इस छोटे से दो कमरों के मकान को गिरवी रखकर पैसों का जुगाड़ किया है. पर बाबूजी कर्जा कैसे चुकाएंगे. रिटायरमेंट को दो वर्ष ही तो बचे हैं. छोटी बहन भी तो है. सर पर छत न रही तो…
नहीं, नहीं, यह ठीक नहीं. सुधा ने रमेश को फोन लगाया. उसे भी इस डिमांड का पता था. लेकिन अपने पिता के सामने कुछ कहने की हिम्मत न थी.
सुधा को संसार जैसे टुटता सा लगा. उसने ससुरजी से ही बात करना ठीक समझा. और उन्हें दो टूक अपना फैसला सुनाया – ” यह विवाह संभव नहीं…”
पुनुश्च…
कहानी सुधा की समझदारी पर ही समाप्त नहीं हुई. हरिराम जी के विद्यालय में गत वर्ष नियुक्त हुआ नया अध्यापक संजय , जो विवाह के इंतजाम में हाथ बंटा रहा था, अचानक उठे विवाद और विपदा को भांप गया. उसने अपने माता पिता से बात की. दो घंटे में ही दोनों बेटे का रिश्ता लेकर आ गए. हरिराम जी को तो जैसे नारायण मिल गए. रात को उसी मंडप में विवाह संपन्न हुआ.
” बेटियों को पढ़ाओ, अपने निर्णय स्वयं लेने के काबिल बनाओ…”
– डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा