टिमटिमाती आंखें – रानी गुप्ता 

दादी एक बात बताओ आप ये हर समय मुझमें  क्या देखती रहती हो?गौरी अपना गुस्सा दबाते हुए दादी से हंसते हुए पूछ ही लिया….पता है आपको मुझे अच्छा नही लगता कि कोई मुझ पर चैबीसो घंटे नजर रखे ,जबकि मैं कुछ गलत नही करती।

अरे बिटिया नाराज न हो अपनी दादी से हम तुम्हाये ऊपर नजर  

नाही रख रहे, न ही नजर लगाय रहे तुम पर,बस हम तो या सोचत रहते हैं कि तुम कितनी किस्मत वाली हो की आज के जमाने में पैदा भई हो,जहां पूरी आजादी से तुम रहती हो,गाड़ी भी चलाय लेती हो अपनी मर्जी से कहूँ भी आय जाय लेती हो।पैसा कमाय रही हो तो अपनी सारी जरूरतैं खुदही पूरी कर लेती हो..15 दिन के बाद  तुम्हारी शादी है तुमको तो अपना दूल्हा भी चुनन की आजादी मिल गई ,खूब खुश रहना अपने दूल्हा के साथ।

हमाये जमाने मा तो कोई ने हमाय पैदा होने की ख़ुशी न मनाई,जैसे तैसे कर के अम्मा ने हमको बड़ा कियो , काय से हमाय बापू को बिटिया पसन्द न हती सो वो अपने लड़कन को बहुत प्यार करत हते और हमको कभऊं न किये….बस जल्दी से हमाओ ब्याह कर दिए और हमसे छूट्टी पाय ली।

दादी की बातें सुन कर गौरी को अपने बर्ताव पर बहुत अफ़सोस हो रहा था और उसमें उत्सुकता बढ़ गई अपने और दादी के स्त्री जीवन के बीच का अंतर जानने का।

अच्छा दादी शादी के बाद तो आपका जीवन बहुत बदल गया होगा दादू के साथ ?

हां बिटिया बदला तो सही पर इत्ता काम का बोझ अचानक से आया की हमने जितना कभी न कियो….बड़ा परिवार था तो काम भी बहुत सारा करना पड़ता था, ऊपर से हमाई सास हमेशा तुमाहै दादू के कान भरती रहती थी तो दादू कभी कभी हमपे हाथ भी उठा देते थे । सर से घूंघट कर हटाये बिना सब काम करने होते …..

घर में दो गाय हती तो उनकी भी देखभाल का काम जल्दी  सुबह उठ के करना, घर की झाड़ू बुहारी करना , खाना बनाना और कभी अगर तबियत न सही हो तो उसे भी कामचोरी कहा जाता था।कभी कभी ही मइके जाने देते थे, किसी की शादी हो या कहीं मेला लगा हो तभी घर के बाहर जाय पाते थे। हमको गाने का बहुत शौक था पर कभी कभी ही मौका लगता था गाने को कायसे हमाए सास ससुर को गाना बजाना करना बाजारू काम लगता था।

पूरा दिन सबकी सेवा में कैसे खत्म हो जाता पता ही न चलता फिर रात होने पे तुम्हाये दादू नोच खसोट में लग जाते सच्ची में कभी कभी तो मर जाने का मन करता था, पर जो चार  चार बच्चे  हमने जने थे उनको देख कर रूक जाते। तीन बुआ और तुम्हाये पापा …..सबका ब्याह शादी करने में ही हमाई उमर हो गई बस हमने एक बात सोच ली थी की अपनी बहू को हम ये सब न झेलने देंगे

यही कारन तुम्हाये पापा को खूब पढ़ने दियो और फिर वो शहर आ के बस गये और तुम्हयी मम्मी इस घर की बहू बन के आय गई फिर तुम जब पैदा भई तो हमने कोई को अफ़सोस न करने दिया और खूब खुशियां मनाई जितनी की तुम्हारे भाई के होने पर मनाई थी।सास ससुर तो स्वर्ग सिधार गये फिर समय के साथ साथ काफी कुछ बदला तुम्हाये दादू भी।थोड़ा बहुत वो हमारी बात सुनने लगे हते बस वही थोड़ा अच्छा समय था….. उनके न रहने के बाद तुम लोग हमें शहर ले आये।


अब तो गाँव भी बहुत सुधर गये हैं सब सुविधाएं मुहैया हैं हमाये समय में न बिजली थी,न पानी घर के अंदर आता था ,सिलबट्टा और चकिया में सब पीसन होता था उस समय मिक्सी तो थी न, और पानी भी भरना होता था ।

जब तुमको देखत हैं तो वापस से मन करता है कि हमें भी तुम्हांये जैसी शिक्षा मिलती अपनी बात कहन का मौका मिलता तो शायद हमारा जीवन भी सुधर जाता।

दादी सच में पहले जीवन कितना मुश्किल था, पर दादी कोई न अभी मेरी शादी में न तुम खूब गाना बजाना करना और अपने सारे अरमान पूरे करना।

हां बिटिया वो तो हम करिहै पर हमाई एक इच्छा है कि हम फिर से बिटिया बन के जनम लें और खुल कर अपना जीवन जिए, खूब अच्छा संगीत सीखें और कछु नाम बनाएं।

अरे अम्मा तुम तो वैसे ही मिसाल हो सबके लिए और गाँव में सब तुम्हारा नाम लेते हैं कि कैसे तुमने अपनी बहू का हर समय साथ दिया है चाहे कैसी भी परिस्थिति हो…दादी के बेटे ने अंदर आते हुए कहा पीछे से बहू ने भी हां मिलाई….हां अम्मा आपने तो हमसब के लिए कितना किया है।

अच्छा अम्मा तुम एक अच्छा सा गाना तैयार कर लो गौरी के संगीत में सबसे पहला गाना आपको ही गाना है… बहू मुस्कराते हुए बड़े अधिकार से बोली।

दादी के धूमिल पड़े सपनों को जैसे फिर से रोशनी मिल गई और उनकी टिमटिमाती आँखे ख़ुशी से भर आई।

कुछ पल हम अगर बड़े बूढ़ों से बात  कर लें तो उनके लिए वही पुरे दिन खुश रहने की वजह बन जाती है,उनको भी लगता है कि उनका जीवन व्यर्थ नहीं है।

लेखिका : रानी गुप्ता 

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