मैडम
अभिवादन की औपचारिकता निभाए बग़ैर मैं आगे बढूँगा क्योंकि अभिवादन के सारे शब्द मिलकर भी आपके प्रति मेरी भावना को व्यक्त नहीं कर पाएँगे।
आज से पच्चीस साल पहले का वो दिन आज भी मेरी यादों में ऐसे ही ताज़ा है जैसे कल की ही बात हो। समय की पर्तों को उठाकर उस दिन की याद को आज भी रोज़ सहलाता हूँ। ये वो दिन था जिस दिन आपने मुझको मुझसे मिलवाया था।
वो दिन और दिन जैसा ही था। क्लास सिक्स्थ ‘ए’ में बच्चे शोर कर रहे थे। मैं सबसे अलग अपने आप में सिमटा सबसे पीछे की बेंच पर बैठा था। तभी क्लास का मॉनीटर चिल्लाया था। ” ओय नई मैडम आ रही हैं। चुपचाप बैठ जाओ।”
चेहरे पर दोस्ताना सहज भाव लिए आप सबसे अलग लगीं थीं पहली ही झलक में। आपने अपना परिचय दिया और फिर हर बच्चे से उसका नाम ,पापा का नाम और पापा का काम पूछने लगीं थीं आप। मेरा दिल बैठा जा रहा था। मुझ तक जब आप पहुँचीं तो लगा जुबान तालू से चिपक गई है। कुछ बोलते नहीं बन रहा था।
” माई नेम इज़. .इज़ संजय मैडम। माई फादर इज़ इज़ “
” इसके पापा फार्मर हैं मैडम। गाँव से आता है ये। मुझे पता है।” आगे वाली बेंच पर बैठा हरीश पूरा पीछे घूम गया था और मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था।
इस स्कूल में आने के कुछ दिनों बाद ही मुझे उस दिन पर गुस्सा आने लगा था जब कम्मो बुआ घर आई थी।
” छोरा बहुत हुसियार है भाभी। शहर के अंग्रेजी स्कूल में डाल दे। यहाँ गाँव के गँवारन के साथ कहीं नहीं पहुँचेगा।” अम्मा को समझाया उसने और अम्मा को बात जँच भी गई और मेरा इस स्कूल में दाखिला हो गया ।
बप्पा साइकिल में बिठाकर पाँच किलोमीटर दूर पक्की सड़क तक ले आता था जहाँ पर स्कूल की बस आती थी। शुरू शुरू में सब कितना अच्छा लगा था। देर तक बस की खिड़की से झाँक कर बप्पा को हाथ हिलाया करता था मैं। फिर धीरे -धीरे अपने कुछ अलग कुछ अजीब होने का एहसास होने लगा था मुझे।
“ये साँफा धोती वाले तेरे पापा हैं ?”
“तू भी घर में धोती पहनता है क्या?”
“अपने पापा के साथ बैलों के पीछे .हे हे करता हुआ तू भी हल चलाता है क्या?”
ऐसे ही कितने प्रश्न साथ के बच्चे हँसते हुए मुझसे करने लगे थे। बप्पा की तरफ उत्साह से हिलता हुआ हाथ अब चुपचाप गोदी में पड़ा रहने लगा था। बप्पा अब भी देर तक हाथ हिलाता रहता था।
उस दिन अगर आप नहीं आतीं तो बहुत कुछ बदल गया होता। मेरी हँसी उड़ाने वालों में हरीश सबसे आगे था। उस दिन मैंने ठान ली थी कि आज हरीश को पीट दूँगा। शिकायत घर जायेगी और मुझे स्कूल से निकाल देंगे और किस्सा ख़त्म। पर किसे पता था कहानी यूँ बदल जायगी।
“हाँ संजय साफ बोलो। माई नेम इज़ संजय। माय फादर इज़ अ फार्मर। ” मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए आपने हरीश की तरफ देखकर आँखें तरेर दी थीं। फिर अपनी सीट पर पहुँच कर आपने जो कहा था वो आज भी मेरे कानों में गूँजता है।
” एक बात तो मैं आप सब को बताना ही भूल गई थी कि मेरे पापा भी फार्मर हैं संजय के पापा की तरह। कितना अच्छा लगता है पापा के साथ खेतों में घूमना। हैं ना संजय! तो आज हम फार्मर पर ही बातें करेंगे। “
मुझे अपने कानों पर विशवास नहीं हो रहा था। मुझसे आँखें चुराता हुआ हरीश अब चुपचाप आगे देख रहा था।आपने दस वाक्य बोर्ड पर फार्मर के बारे में लिखे और हमें उन्हें पूरा करने को कहा। क्लास ख़त्म होने पर आपने मेरी तरफ देखा और कहा ” संजय सबकी कॉपियाँ लो और मेरे पास स्टाफ रूम में ले आओ। “
उस दिन मैं हवा पर सवार था। बस में पहले पहुँच कर भी रोज़ पीछे बैठने वाला मैं, आज सबसे आगे की सीट पर जम गया था।बस में चढ़ते हुए हरीश ने मुझे देखा और मुस्कुराते हुए पास बैठ गया ।
शायद अब तक आपको भी कुछ कुछ याद आ ही गया होगा। मुझको मेरी झिझक से बाहर लाने के लिये आपने कितना कुछ किया था मैडम। एनुअल फंक्शन में नृत्य नाटिका करवाई थी किसान के ऊपर जिसमे मेरा मुख्य किरदार था। हरीश भी था उसमे। फंक्शन में अम्मा बप्पा और दादू सबको बुलाया था।
बहुत ढेर सी यादें हैं आपके साथ की। अपनी झिझक झटक कर और खोया आत्मविश्वास फिर पाकर मेरी दुनिया बदल गई थी। बारवीं के बाद एग्रीकल्चर में स्नातक करने के बाद मुझे शहर में अच्छी नौकरियाँ मिलीं पर मैंने तो अपने गाँव लौटकर किसानी करने की शुरू से ही ठान रखी थी। ठान रखी थी कि अपनी पढाई का उपयोग अपने गाँव में ही करूँगा। वैसा ही फार्मर बनूँगा जिस पर बप्पा दादू गर्व करेंगे और सबसे ऊपर आप गर्व करोगी
आप के स्कूल छोड़कर जाने के बाद मै अम्मा के आगे बहुत रोया था। दसवीं में पढ़ने वाले बेटे को आँचल में मुहँ छिपाकर रोते हुए देखकर अम्मा का गला भी भर आया था।
” जब तू खूब सयाना बड़ा किसान बन जाएगा तब तेरी मैडम को बुलाना। वो जरूर आएगी देखना। ” अम्मा ने सर सहलाते हुए प्यार से समझाया था।
आज वो दिन आ गया है। मेरे गाँव के चौक में इस बार का झंडारोहण ख़ास है। आप के इस झेंपू को सरकार की तरफ से पुरस्कार मिलेगा खेती उपज बढ़ाने के लिए किये गए नए प्रयोगों के लिए। ये पुरस्कार मैं किसी नेता के हाथ से नहीं बल्कि आपके हाथ से लेना चाहता हूँ। आपको अपने आठ साल के बेटे से भी मिलवाना चाहता हूँ जो अपने आप को गर्व से फार्मर का बेटा कहता है।
और हाँ मैडम , आपके जाने के कुछ दिनों बाद मुझे पता पड़ा था कि आपके पापा फार्मर नहीं थे। आपके उस एक झूठ ने मुझे मेरे अंदर छिपे कितने बड़े सच से मिलवा दिया था , ये मै ही जानता हूँ। मेरे गाँव के बच्चों को उनसे मिलवाने,उन्हें कुछ सच से भी बड़े, झूठे किस्से सुनाने समझाने के लिये आपको आना है मैडम। क्या पता उनमें से किसके अन्दर कोई खुद से शर्मिन्दा संजय छिपा बैठा हो। आप आएँगी ना ? आप बस दिए हुए नंबर पर फोन कर दें ,मैं खुद आपको लेने आ जाऊँगा ।
आपके जवाब के इंतज़ार में आपका झेंपू
संजय
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प्रतिभा पाण्डे