ट्रेन में भीड़ होने की वजह से बैठने की जगह भी नहीं मिल रही थी..भीड़ होती भी क्यूँ ना, लोग दिवाली मनाने के लिए अपने अपने पैतृक शहरों में जाने के लिए आतुर जो थे..मैंने देखा मेरा रिजर्वेशन जोकि वेटिंग में था, कन्फर्म ना होने की वजह से कैंसिल हो चुका था.. क्यूंकि ऑनलाइन रिजर्वेशन हो और वेटिंग क्लियर ना हो तो सब ख़त्म!!
मैंने सोचा, चलो टीटी सर से बात करती हूँ, कुछ ले देकर बात बन जाए मेरे को अचम्भा हुआ जब टी टी साहब ने मेरे पहले पहुंचे किसी सज्जन से कहा, “अपनी सीट भी दे चुका हूँ, अब क्या अपने घर से सीट मंगा कर दूँ क्या तुम्हें!”
अब घर तो जाना ही था, भई शादी से पहले की आखिरी दिवाली थी, पता ही था कि ससुराल पक्ष के लोग कितने भी खुले विचारों के क्यूँ ना हो, बहू को दिवाली मनाने के लिए उसके मायके कभी ना भेजेंगे!
थोड़ा हिचकते हुए, मै जनरल बोगी में अंदर गई.. इतने सारे कंधो ने मुझे धक्का दिया कि मै स्वतः ही अंदर आ गयी|
अपनी सुरक्षा के लिए मैंने अपना बैग आगे टांग लिया था और एक़ बर्थ का कोना पकड़ जैसे तैसे खड़ी रही.. मेरी तो नज़रे ऊपर करने की भी हिम्मत ना हुई.. कहीं से लोगों की बीड़ी की महक आती और कहीं से बच्चों की अनवरत रूप से रोने की आवाज़!
4 घंटे का सफर था, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे 40 घंटे बिताने हो, अच्छा एक़ बात है सफर अच्छा चल रहा हो तो समय का पता नहीं चलता और बुरा हो तो बस समय काटे नहीं कटता है!
आखिरी एक़ घंटे में किसी बुजुर्ग महिला को मुझ पर दया आयी, उन्होंने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और कहा,”बेटी, मेरा स्टेशन आने वाला है, तुम मेरी सीट लेलो.. “
मुझे उस महिला में साक्षात् भगवान का रूप नज़र आया..मैंने उनको ना जाने कितनी बार धन्यवाद किया, अब जाकर तो मुझे याद आया कि मै पानी की बोतल भी साथ लायी थी, वो दो घूट जीवनदायिनी से थे|
मेरा स्टेशन आने वाला था करीब 1 5मिनट पहले ही मै दरवाजे के पास आ गयी थी| ट्रेन जैसे जैसे प्लेटफॉर्म पर रुकने के लिए अपनी गति धीमी कर रही थी, वैसे ही घर पहुंचने की ख़ुशी में मेरे मन का सागर हिलोरे ले रहा था|
अंततः मेरा सफर पूरा हुआ और मै अपने शहर पहुंच चुकी थी| ये सफर यादगार था क्यूंकि पहली बार अकेले मैंने ऐसे जनरल बोगी में यात्रा की थी वो भी दिवाली से ठीक एक़ दिन पहले! आज भी उस यात्रा को याद करके मै सोचती हूँ कि सारे साधन जीवन में होने पर आपका कोई भी सफर हो बड़ा अच्छा बीतता है, वहीं बिना किसी सुख सुविधा के जीवन बिताना अपने आप में ही कितना चुनौती पूर्ण होता है|
दोस्तों, आप सभी को क्या लगता है अपने विचार कमेंट में व्यक्त कीजियेगा|
@स्वरचित
धन्यवाद
राशि रस्तोगी