यात्रा – कमलेश राणा

हैलो,, आप नीता बोल रही हैं

नहीं,,राँग नम्बर

मोबाइल में दुबारा रिंग आती है,, मुझे यही नम्बर दिया गया है,, नीता से बात करा दें प्लीज़

आपको बोला न,, यहाँ कोई नीता नहीं रहती,,

मोबाइल पर दूसरी तरफ एक और आवाज़ सुनाई देती है,,

किसका फोन है,,

पता नहीं, कोई महिला है,, कह रही है नीता से बात करनी है,,

ला इधर दे, मेरा फोन है,,

पर मां आपका नाम तो सीता है,,

लगता है कोई स्कूल की फ्रेंड है,, मेरा स्कूल का नाम नीता है,,

यह आगाज़ है उस बातचीत का,, जब45 साल बाद उसकी स्कूल फ्रेंड मोहिनी कहीं से उसका नम्बर हासिल कर उसे फोन करती है,,

सब आश्चर्य से मुँह फाड़े उसे देख रहे थे,, यह पहला मौका था उसके जीवन में जब पारिवारिक सदस्यों के अलावा किसी ने उसे फोन किया था,,

कौन,, आज सालों बाद किसी ने इस नाम से पुकारा मुझे,,

मैं मोहिनी बोल रही हूँ नीता,, पता है कब से तुझे फेसबुक पर ढूँढ़ रही हूँ,, बड़ी मुश्किल से नीरू दी से तेरा नम्बर मिला,, दी की तेरी दीदी से बात होती हैं,, उन्होंने बताया,,

खुशी से उसकी आवाज़ कांप रही थी,, पता है, कितना याद करती थी तुझे पर कभी बात हो पायेगी,, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था,, आज तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई सपना देख रही हूँ,,

अच्छा बता तू कहाँ है, कैसी है,, परिवार में कौन कौन हैं,, एक ही सांस में न जाने कितने सवाल पूछ लिये उसने,,

दोनों सखियों ने एक दूसरे के परिवार के बारे में बताया,, मोहिनी MA, B ed  करने के बाद एक स्कूल में टीचर थी और नीता की शादी एक रूढ़िवादी परिवार में हुई थी,, उसने भी MA किया था लेकिन वहाँ उसकी पढ़ाई लिखाई का कोई मूल्य नहीं था,,



हालांकि परिवार संपन्न था,, पति की दुकान अच्छी चलती थी,, उसने भी घर में ही एक दुकान खोल ली थी,, बच्चों की परवरिश और व्यापार के बीच वक्त ही नहीं था,, कुछ और करने या सोचने का,,

सच कहूँ मोहिनी तो मुझे कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई,, किसी नई टेक्नोलॉजी को जीवनमें अपनाने की,, मुझे तो फोन चलाना भी नहीं आता, यह तो बहू का फोन है,, पहले बंधन बहुत थे और वो बोझ भी लगते थे पर धीरे धीरे मैंने अपने को उनके अनुसार ढाल लिया,,

तुझे और भी आश्चर्य होगा यह जानकर कि मैं जीवन में घर से कभी अकेली कहीं गई ही नहीं,, पहले पतिदेव संग जाते थे फ़िर बच्चे बड़े हो गये तो वो लेकर जाने लगे, ,

आज तुझसे बात करके महसूस हो रहा है कि हमें वक्त के साथ आगे बढ़ना चाहिये,, शायद तुम साथ होती तो मैं भी कुछ और होती,, जीवन में मोटीवेशन बहुत जरूरी है,, मेरा तो कॉन्फिडेंस बिल्कुल खतम हो गया है,,

एक बार भोपाल से भतीजे ने कैब कर दी मेरे लिए,, किसी को फुर्सत नहीं थी मेरे साथ जाने की,, अकेली बैठने में बहुत डर लग रहा था,, सबसे पहले कैब को टच करके माथे से हाथ लगाया,, हे महारानी सही सलामत पहुँचा देना मेरे घर,,

जब ड्राइवर ने शीशा सेट किया तो उसमें मेरी छवि दिखने लगी,, हे भगवान!! ये मुझे क्यूँ देख रहा है बार बार,, कहीं इसकी नीयत में कोई खोट तो नहीं है,, पसीने छूट रहे थे मेरे,,

जब भी वो शीशे में देखता,, मैं नीचे झुक जाती,, हे राम जी,, बस आज बचा लो मुझे,, फिर कभी नहीं जाऊँगी अकेली,, फोन भी नहीं पास में,, बार बार सोचती,, आज तो नीता तू गई,,

ड्राइवर मेरी इन अजीबोगरीब हरकतों को देख रहा था,, बोला,, मैडम आपकी तबियत तो ठीक है न,, कोई परेशानी हो तो गाड़ी रोकूं,,

ना भाया,, तू तो बस चलता रह,,

जाने गाड़ी रोकने की क्यूँ कह रहा है यह,,

राम राम करके घर पहुँच पाई,, सबसे पहले दो गिलास पानी पिया, तब जान में जान आई फ़िर भगवान को धन्यवाद दिया सफल और सुरक्षित यात्रा के लिये,,

जब घरवालों को आपबीती सुनाई तो सब खूब हँसे,,

इधर फोन पर मैं भी हंस हंस के लोटपोट हुई जा रही थी,, उसके यात्रा वृतांत पर,,

कमलेश राणा

ग्वालियर

 

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