अटूट बंधन – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :बिट्टी रुक जा…अरे कहाॅ॑ भागी जा रही है, अपने बूढ़े बाप को छोड़कर…मुझे तो साथ लेती चल।

बिट्टी का साथ पकड़ने के लिए बाबूजी तेजी से चल रहे थे, बिट्टी के नजदीक पहुंचते ही गिर गए।

बिट्टी ने मुड़कर देखा कुछ लोग बाबूजी को उठा रहे थे।

‘बिट्टी मुझे कहाॅ॑ छोड़ कर चली जा रही थी, मुझे भी अपने साथ ले चल।’, बाबूजी ने रूंधे कंठ से कहा। 

‘वहाॅ॑ पर उपस्थित सभी लोग एक साथ कहने लगे,आप कैसी बेटी है?’ इस हालत मे अपने बाबूजी को छोड़कर आगे-आगे चली जा रही है। आपको तो इनका हाथ पकड़कर ले जाना चाहिए।

‘बिट्टी बाबूजी की हालत देखकर कुछ नही बोल पाई, उन्हें अपने साथ घर ले आई।’

बाबूजी आप यहां आराम से बैठिए। मै आपके लिए चाय बना कर लाती हूं।

बिट्टी ने बाबूजी को चाय दिया, बाबूजी बहुत खुश हो गए।

बाबूजी देखिएगा !अब आप अपनी बिट्टी के साथ रहेंगे तो जल्दी से स्वस्थ हो जाएंगे।

‘बिट्टी तू अपने बाबूजी को छोड़कर तो नही जाएगी ना। नही बाबूजी कभी भी नही,मै हमेशा आपके पास रहूंगी।’

एकदिन बिट्टी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा तो वह बाबूजी को पड़ोस के काका के पास छोड़कर चली गई थी। जो अभी हाल ही में अपने बेटा बहू से विलग होकर यहाॅ॑ अकेले रह रहे थे। बिट्टी काम निपटाकर जब वापस आई तो देखती है कि बाबूजी गहरी नींद मे सो रहे हैं,उठाने पर भी नही उठ रहे हैं। 

‘काका बताते हैं,बेटा हम दोनो बातें कर रहे थे तभी बाबूजी कहते हैं… मुझे नींद आ रही है, मै सोना चाहता हूं। मैंने कहा ठीक है ! आप आराम से सो जाइए।’

‘बाबूजी हमेशा के लिए चैन की नींद सो गए काका, कहते ही बिट्टी की आंखो से आंसू टपकने लगता हैं।’

‘अपने आप को संभालो बिट्टी, काका सांत्वना देते हैं।’

‘काका मेरा नाम बिट्टी नही है।, बिट्टी रूंधे स्वर मे कहती है।’



 ‘मेरा नाम सावित्री है। मै एक समाज सेविका हूं और ये मेरे बाबूजी नही है।’

‘काका आश्चर्य से कहते हैं क्या?, लेकिन बिटियाॅ॑ तुम तो इनको बाबूजी कहती थी और ये तुमको बिटियाॅ॑।’

‘हाॅ॑ मै इन्हे बाबूजी कहती थी। हमारे बीच खून का रिश्ता नही था फिर भी हम बाप बेटी के अटूट बंधन मे बंध गए थे।’

‘वो कैसे ? काका पूछते हैं।’

काका इनकी याददाश्त कमजोर हो गई थी फिर भी जब इन्हे कुछ कुछ याद आता था तो मुझे बताते रहते थे। ये रिटायर्ड सिविल इंजीनियर थे, इनके चार बच्चे है।तीन बेटे और एक बेटी। सबका अपना-अपना घर परिवार है।

जब तक इनकी पत्नी थी तब तक सब कुछ ठीक चल रहा था परंतु पत्नी के देहांत के बाद इनके बेटो ने चालबाजी से इनकी सारी संपत्ति अपने नाम करवा लिया।बेटी को हिस्से मे कुछ नही मिला तो बेटी ने भी इनसे कोई रिश्ता नही रखा। जिसका इनको गहरा सदमा लगा। इनके लड़के ही इनको सड़क पर भटकने के लिए छोड़ गए।

एकदिन उसी राह से मैं गुजर रही थी। इन्होने मुझे देखा और मुझे अपनी बेटी समझ कर मेरे साथ चलने की जिद्द करने लगे। उस समय मुझे जो सही लगा मैंने वही किया, मैं इन्हे अपने साथ ले आई। मैं अनाथ थी, तो मुझे भी पिता का साया पा कर अच्छा लगा।

‘काका ने आशीष देते हुए कहा, धन्य हो बिटियाॅ॑! तुम जैसी औलाद भगवान हर माॅ॑ बाप को दे। जो इनकी औलादें न कर सकी वो तुमने कर दिया।’ 

‘सदा सुखी रहो बिटियाॅ॑…सदा सुखी रहो।’

‘काका नम आंखो से सावित्री को आशीष देते रहे।’

#बंधन

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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