कर्तव्य क्षेत्र – लतिका श्रीवास्तव

वो अवाक खड़ी थी जैसे कोई बेजान मूर्ति हो…।

मैंने गुरु दीक्षा ले ली है आज….उन्होंने मुझसे कहा।

तो..! मेरा मन  जिज्ञासा जाहिर करने ही वाला था कि जवाब आ गया..”इसलिए आज ये मेरा अंतिम दिन है इस घर में ….गुरु जी के ही आश्रम में आश्रय ढूंढ लिया है मैंने…

अब मृत्यू पर्यंत समाज सेवा और गुरु की सेवा करना तपस्या ही मेरा अंतिम लक्ष्य है।”…और मुझे अवाक ही छोड़कर वो चले गए थे…।

समाज सेवा …गुरु सेवा…!

परिवार सेवा…! संतान सेवा…!

विवाह किया…!गृहस्थी बसाई…! बच्चों और पति के साथ एक दुनिया बसाई मैंने…!सिर्फ मैंने….!मृत्यु पर्यन्त पति की सेवा और बच्चों की सेवा का संकल्प लिया मैंने…!सिर्फ मैंने ….!

अपने घर को ही आश्रम बना लिया है मैंने…अपने बच्चों की सेवा और परवरिश करके समाज में अपने और अपने बच्चों के लिए थोड़ी सी जगह बनाने के लिए निरंतर संघर्षरत हूं मैं! सिर्फ मैं…!

मेरे गुरु तो ईश्वर हैं सिर्फ ईश्वर!…इस जीवन का मेरा सच्चा कर्तव्य  मेरे घर और बच्चों का मजबूत आधार बनाना है….मेरे गुरु ने यही गुरु मंत्र मुझे दिया है..!सिर्फ मुझे!

दुनिया जय जयकार कर रही है उनकी..!सिर्फ उनकी…!इतनी कम उम्र में पत्नी बच्चों का मोह त्याग कर संन्यासी हो गया…गर्व की बात है..!

महिमा मंडन यश गान हो रहा है…उनका!सिर्फ उनका!समाज को ऐसे ही त्यागी व्यक्ति की सख्त जरूरत है…!भोगी व्यक्ति की नहीं…!

फूल मालाएं  पहनाई जा रही हैं उनको ..!सिर्फ उनको…!महान बोला जा रहा है उनको …!सिर्फ उनको..!

वो अवाक है…….!

मैंने तो कोई त्याग ही नहीं किया..!भोग किया …! दुनिया मुझे दोषी ठहरा रही है …!उनका घर त्याग महान कार्य .!..मैं उन्हें घर में बांध नहीं सकी मेरा दोष…!बच्चों को त्यागा नहीं मैने….

अपने आंचल की छांव और कलेजे की असीम ममता से निर्बाध सींचती रही मैं….उनका मोह नहीं छोड़ पाई!!अपने कर्तव्यों का त्याग नहीं कर पाई मैं..!

सिर्फ मैं..!कर्तव्य निर्वहन के लिए ईश्वर ने मेरे गुरु ने जिसके भरोसे मुझे सौंपा था …उन्होंने अपना कर्तव्य क्षेत्र पृथक कर लिया..!

मैं कैसे कर्तव्य विमुख होती..!ईश्वर द्वारा उनके लिए निर्धारित कर्तव्यों का निर्वहन भी अब मेरा ही कर्तव्य है ..!

उनके कर्तव्यों का निर्वहन मृत्युपर्यंत करना ही मेरे लिए उनकी सेवा करना  है….इसीलिए इसी सेवा में इसी कर्म में रत हूं मैं..!सिर्फ मैं…!यही मेरी तपस्या है..!पर मैं संन्यासी नहीं हूं…।

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव 

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