बाजार से घर लौटते ही माँ ने राधा को एक लिफाफा दिया जो थोड़ी देर पहले ही डाक से प्राप्त हुआ था। लिफाफा खोलकर पढ़ते ही वह खुशी से उछल पड़ी और माँ के सीने से लग गई।
“माँ, मेरी नौकरी लग गई। तुम्हें याद है पिछले महीने मैंने जो इंटरव्यू दिया था, उसमें मुझे सेलेक्ट कर लिया गया।”
“हे भगवान, तेरा लाख-लाख शुक्र है”- खुशी प्रकट करती हुई माँ ने कहा।
“और माँ सबसे बड़ी बात है कि इसी शहर में मेरी पोस्टिंग हुई है”- लिफाफे को चूमती हुई राधा बोली- “माँ, अब हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे।”
“हाँ बेटी, भगवान के घर देर है, अँधेर नहीं। तुम्हारी मेहनत और लगन का फल मिला है”- कहते हुए माँ कमरे में दीवार पर टंगी हुई राधा के पिताजी की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी।
“आप तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझे सौंपकर चले गए। मुझमें इतनी शक्ति कहां थी कि मैं आपके सपनों को पूरा कर पाती। बस आपकी अदृश्य शक्ति का ही भरोसा था जो मैं अकेली विषम परिस्थितियों से जूझती रही। आपने हर पल हमारी रक्षा की, हमारा हौसला बढ़ाया”- आँखों में छलक आए आँसू की बूंदों को साड़ी के पल्लू से पोंछती हुई बोली।
राधा भी भावुक हो गई और अपने पिताजी की तस्वीर के सामने खड़ी होकर कहने लगी- “पापा, आपका साया ईश्वर ने जब हमसे छीन लिया तब माँ बहुत टूट चुकी थी। लेकिन मेरी खातिर माँ परेशानियों का जहर पीती रही।
पापा, आप हमारे बीच न होते हुए भी सदैव अपनी उपस्थिति का अहसास कराते रहे। आज आपकी बेटी अपने भविष्य को संवारने के लिए आगे बढ़ रही है। मुझे शक्ति दीजिए कि मैं अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कुशलतापूर्वक कर सकूं।”
और दूसरे ही दिन राधा ने खुशी-खुशी नौकरी ज्वायन कर ली। धीरे-धीरे राधा के जीवन में खुशियां पुनः वापस आने लगी।
राधा को नौकरी करते हुए लगभग एक वर्ष बीत गया। इस बीच माँ ने कई बार राधा को शादी कर लेने के लिए मनाने की कोशिश की।
पर हर बार राधा यह कहकर टाल देती थी कि यदि वह चली गई तो घर की देखभाल कौन करेगा। और सचमुच राधा को ऐसे लड़के की तलाश थी जो शादी के बाद माँ का भी ध्यान रखे।
कुछ दिनों से राधा महसूस कर रही थी उसका सहकर्मी कृष्ण उसके बहुत करीब आने लगा है। वह सुंदर, सुशील और बुद्धिमान भी था।
माँ-बाप भगवान को प्यारे हो चुके थे। और इकलौती संतान होने के कारण उसका इस दुनिया में अपना कोई नहीं था।
बातों ही बातों में उसने अपने मन की बात कृष्ण से कह दी। कृष्ण ने खुश होते हुए कहा- “राधा, यह तो मेरा सौभाग्य होगा कि मुझे माँ का वंचित प्यार पुनः प्राप्त हो जाएगा।” उस दिन से राधा स्वयं को ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगी।
एक दिन दफ्तर से लौटते हुए रात हो गयी तो राधा काफी घबराई हुई थी। दुर्भाग्यवश कृष्ण भी दफ्तर के काम से दूसरे शहर टूर पर गया हुआ था।
वह जल्द से जल्द अपने घर पहुंच जाना चाहती थी। बाहर निकलतेे ही उसने इधर-उधर देखा। मात्र एक टैक्सी सड़क पर दिखी।
वह शीघ्रता से टैक्सी में बैठ गई और उसने सेक्टर 54 चलने के लिए कहा। टैक्सी में बैठते ही राधा ने देखा कि ड्राइवर हट्टा-कट्टा नौजवान था। उसे डर भी लगा कि कहीं रास्ते में ड्राइवर ने ही…..
एकबारगी तो उसने सोचा कि वह इस टैक्सी को छोड़कर दूसरी टैक्सी ले ले। पर रात का वक्त था फिर दूसरी टैक्सी के चक्कर में और देेर हो जाती।
इसलिए दूसरी टैक्सी का विचार उसने त्याग दिया। वह ड्राइवर के सामने कमजोर नहीं होना चाह रही थी।
ड्राइवर सावधानी पूर्वक गाड़ी चला रहा था। राधा की निगाहें उसकी गतिविधियों पर ही टिकी थी। कुछ ही समय में हाइवे आने वाला था। सुनसान इलाका होने के कारण वहाँ पहले भी आपराधिक वारदातें हो चुकी थी। इसलिए राधा और भी सतर्क हो गयी।
हाइवे पर पहुँचते ही वही हुआ जिसका डर सता रहा था। दो बाइक पर सवार चार युवकों ने टैक्सी रुकवानी चाही। राधा का दिल धक् से रह गया।
कुछ दूर तक तो बदमाश पीछा करते रहे और बार-बार ड्राइवर को भद्दी गालियां देते हुए टैक्सी रोकने की धमकी देते रहे।
लेकिन ड्राइवर ने किसी तरह कटते-कटाते हुए गाड़ी को आगे निकाल लिया। शिकार हाथ से निकलता देख बाइक सवार बदमाशों ने गोली चला दी, जो ड्राइवर की बाँह छीलती हुई निकल गई। ड्राइवर घायल हो चुका था, लेकिन उसने हिम्मत से काम लिया।
एक हाथ से गाड़ी चलाते हुए उसने सुनसान रास्ता पार कर लिया और आबादी वाले क्षेत्र में गाड़ी को ले आया। ड्राइवर का दाहिना हाथ जख्मी हो गया था, खून लगातार निकल रहा था। बदमाशों का खतरा टल चुका था। सामने ही क्लिनिक का बोर्ड देखकर राधा ने जोर से कहा- ‘भैया गाड़ी रोको।’
ड्राइवर ने फौरन ब्रेक लगाया। दरवाजा खोलकर वह बाहर निकली और ड्राइवर को भी बाहर आने का इशारा किया। ज
ख्मी बांह को दूसरे हाथ से दबाते हुए ड्राइवर बाहर आया। तब तक राधा अपना दुपट्टा फाड़ चुकी थी। उसने दुपट्टे के टुकड़े से उसके घाव को साफ किया और दुपट्टे को लपेट कर जख्म पर बांध दिया। भावावेश में राधा के मुँह से बस यही निकला- “घबराओ मत भैया…सब ठीक हो जाएगा !”
घाव पर लगी पट्टी को सहलाते हुए ड्राइवर बोला- “इसी पवित्र बंधन के कारण आज मुझमें इतनी शक्ति आई कि मैं अपनी बहन की लाज बचा सका। ईश्वर सभी भाई को यह शक्ति प्रदान करे।”
“चलो, सामने क्लिनिक है। दवा ले लो”- राधा बोली।
“आप परेशान न हों। रात का समय है, आइए मैं आपको घर तक छोड़ दूं। लौटते हुए मैं मरहम-पट्टी करा लूंगा।”
“जब तुम्हारे जैसा भाई साथ हो, फिर चिंता कैसी”- राधा ने इत्मीनान से कहा और वह उसे साथ लेकर सीधे क्लिनिक में घुस गई।
अब उसे कोई डर नहीं था….
#बंधन
-विनोद प्रसाद,
सरस्वती विहार, अम्बेडकर पथ, पो.- बी.भी. काॅलेज, पटना