अमीरी – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

महंगे महंगे कपड़े पहन लेने से कोई धनवान नहीं बनता कहते हुए रीना ने अपनी बेटी सन्नो को गले से लगा लिया।मेरी बच्ची ऐसा क्यों सोचती है।नहीं नहीं ऐसा मत सोच गर ऐसा सोचेगी तो यूं कुछ नहीं कर पाएगी और तुझे तो अभी बहुत आगे जाना है ना, गर ऐसे सोचेगी तो मेरी सारी मेहनत पे पानी फिर जाएगा।

और मैं नहीं चाहती कि जैसे मैं हूं तू भी बन।

चल उठ हाथ मुंह धो,मैं तेरे लिए खाना लगाती हूं।कहती हुई उसने खुद को उससे अलग किया और रसोई में जाते जाते उसे बाथरूम की तरफ इशारा करके मुंह हाथ धोने को कह गई।

पर ये क्या रसोई का हर बर्तन खाली , ना पतीली में दाल है न भगोने में चावल , तवा खोने में खड़ा मुंह चिढ़ा रहा तो कढ़ाई औंधे मुंह पड़ी है।

बदरंग से डोंगे में बस दो रोटी पड़ी है ,जिसमें चिटियों ने भी कब्जा जमा रखा है।

धीरे से उसने कहीं वो देख न ले नज़र बचाकर उसे साफ की और मालिक के घर से लाए पन्नी में अचार को पन्नी से निकाल एक टुकड़ा थाली में रख उसके पास ले गई।और बोली लो अभी यहीं है खाकर पानी पी लो ,फिर शाम को कुछ ताजा बना देंगे।

अब आप सोच रहें होंगे इतनी गरीबी……..

नहीं नहीं ऐसा नहीं था जब ये ब्याह कर शिव बाबू के साथ आई थी तो लड़का खाता कमाता था ,पर अचानक हुए हादसे में इन मां बेटी को छोड़कर भगवान को प्यारा हो गए।

फिर तो आप सभी जानते हैं कि क्या होता है।

जीते जी तो कोई साथ देता नहीं फिर पति के न रहने पर कौन साथ देता है।

तुम्हारा और तुम्हारे बच्चे का पेट कौन पालेगा,आखिर कार सबके अपने अपने खर्चे है ,फिर तुम ठहरी निरक्षर ये भी तो नहीं कि कुछ करो,तो ऊपर का ही ख़र्चा उठा लो।

वो भी हम ही लोगों को उठाना पड़ेगा। भाई अपनी व्यवस्था करके अलग बनाओ खाओ।

कहकर उसे उसी के मिले सामान के साथ अलग कर दिया।

अब सास तो थी नहीं इस पर ससुर थे वो कुछ नहीं बोले चुपचाप सुन के  रहे गए, बाद में कुछ पैसा पोती के नाम ये कहकर जमा करवा दिया कि इसकी पढ़ाई में काम आएगा।



और बहू को छोटा सा रोजगार खुलवा दिया। हां रोजगार “कागज की थैली बनाने का” इससे खर्चा भी चलता रहा और पोती की पढ़ाई भी।

पर कुछ दिनों बाद उनका भी इंतकाल हो गया।अब मां बेटी अकेली बची।

पर इसने हिम्मत नहीं हारी और ससुर के खुलवाए रोजगार में कभी नफा तो कभी नुकसान पर उसे करती रही।

और  जब न चलता तो एक पैसे वाले घर में झाडू पोंछे का काम कर लेती।

इस बीच सन्नो कब जवान हो गई पता न चला।

सुडौल नयन नक्श छरहरी काया जैसे फुर्सत में भगवान ने उसे गढ़ा हो।

सबका मन मोहने लगी थी।

मोहती भी क्यों न वो जितनी सुंदर थी उतनी ही सुशील और सौम्य भी जो ।

भला ऐसे में कौन न उस पर लट्टू हो जाता।

भगवान की दया से पढ़ने में भी अच्छी थी।

कितनी भी तकलीफ़ होती पर ये उसकी पढ़ाई में कोई कटौती न करती।

जो मांगती ये तुरंत पूरा करती।

पर कहते हैं ना कि बढ़ती उम्र के साथ उसका मन बहकने लगा।ना ……..ना………।

आप ग़लत दिशा में ना जाइए किसी के प्रेम में नहीं बल्कि

पहनावे ओढावे में,रहने सहन ,खान पान में।

वो भी अन्य सहेलियां की तरह अच्छे कपड़े,खाने और घर की ख्वाहिश करने लगी।

अपने घर  ,  अच्छे कपड़े ,लजीज पकवानों की।

क्योंकि उसने अब तक खुद को सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में झोंका न कुछ सोचा न देखा।

हां अब जरूर लगने लगा कि घर ऐसा होना चाहिए।

हां हां गलत नहीं है उसका सोचना हर कोई यही सोचता है।

पर टाइम गलत है। सोचने का अरे भाई  अब तो वो ऐसी स्थिति में है कि कुछ सालों में नौकरी मिल  ही जाएगा।

मां ने आखिर पेट काट काट कर पढ़ाया जो है और इसने भी बहुत मेहनत की है।

वो निवाला उसकी तरह बढ़ा ही रही थी कि मालकिन का फोन आ गया।सुनो – सन्नो की अम्मा आज कुछ मेहमान आ रहे , ज़रा जल्दी आ जाओ और हां अपनी बेटी को भी ले आना।

तो ये बोली हां भाभी जी जरूर!

कहती हुई फोन काट उससे बोली देख मैं ना कहती थी शाम को तुझे अच्छा खाना खिलाऊंगी देख भाभी जी का फोन आ गया ।

उनके घर शाम को कोई आने वाला है और तुझे भी बुलाया है।

इस पर भला मैं क्यों जाऊं मैं नहीं जाऊंगी तुम चली जाना।

तो ये बोली।नहीं नहीं तुम भी चलो अब उनकी बात को टाल तो नहीं सकते ना। चलना।वरना वो गुस्सा हो जाएंगी।

खैर शाम को दोनों मां बेटी पहुंची देखा तो तैयारियां चल रही थी।

पूछने पर पता चला रिचा को देखने वाले आने वाले हैं।

खैर जो भी है ठीक ही है वो दोनों मां बेटी भी काम में लग गई।

कुछ देर में मेहमानों से घर भर गया।

रिचा को भी लाया गया।अब मॉडन फैमिली के है तो वो जिंस टाप में आई।


चाय नाश्ता हुआ उसके बाद लड़का लड़की बाहर लान में चले गए।और बड़े लोग आपस में बात करने लगे।

इधर बात फाइनल होने ही वाली थी कि दोनों आकर अपनी अपनी जगह बैठ गए।

और बैठते ही लड़के ने कहा – मां मुझे समझने का थोड़ा वक्त दो कहते हुए उठा और बाहर चला गया।

पांच मिनट के लिए तो आया ही था। अधिकारी जो था उसके पास वक्त कहां कि समय दे किसी को।

और एक ही नज़र में पसंद आने वाली सन्नो का घर पता लगा दूसरे दिन उसके घर में पहुंच गया।

और उसकी मां से  बोला क्या आप मुझसे इसकी शादी करेंगी।मुझे ये बहुत पसंद है।

जिसे सुन लो अवाक रह गई।कि वो मालकिन को क्या जवाब देगी।

फिर भी दूसरे ही क्षण “अपना बीता पल याद करके कि हम जब बेसहारा लाचार थे तो मेरी किसने सुनी आखिर पूरी जिंदगी मैंने किल्लत में गुजार दी।कम से कम मेरी बेटी तो चैन से रहे फिर उसका मन भी तो बढ़ती उम्र के साथ यही सब खोजने लगा है।” अपने को व्यवस्थित करते हुए बोली ।

बेटा थोड़ा वक्त दो आखिर उससे भी तो पूछ ले।

इस पर उसने कहा मां ठीक है पर पहले तुम्हारे सपने को पूरा करना चाहती हूं ।

इसे पूरा करने के बाद।

जो कि इसने शर्त मान ली।

और बोला मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करुंगा।

कहा और चला गया।

फिर पलट कर तब आया जब सन्नों ने नौकरी कर अपने सपनों को पूरा कर लिया।

और

मां से बोला- मां अमीर वो नही जिसके पास धन दौलत एशो आराम सुख सुविधा हो।

दौलतमंद वो होता है जिसके पास संस्कार हो,सौम्य और शालीन हो।

मैंने इतना बड़ा रिश्ता सिर्फ़ इसी लिए ठुकराया कि वहां जब कुछ था।

पर संस्कार और सभ्यता नही थी।

जो कि हमें आपकी बेटी में मिला। जिसे सुन रीना ने बेटी कि तरफ देखा मानों कह रही हो।देख लो

आज के आधुनिक युग में भी लोग उसी को पसंद करते हैं जो संस्कारी और सभ्य हो।

इसलिए अमीरी पैसे नहीं संस्कारों की होनी चाहिए।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

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