आज फिर पापा मन भर कर कोस रहे थे।
शायद उन्हें पता नहीं था मैं सब सुन रही थी।
कोई चारा नहीं आँसू बहाने के अलावा।
उफ़्फ़ !कभी सोचा नहीं था जिंदगी इतनी जोर से बैंड बजाएगी।
पापा एक दम विरोध पर उतर आए हैं।एक भी मौका नहीं छोड़ते बेइज्जती करने का।
और अमेय! कहने को सगा भाई ।वो तो पूरी तरह दुश्मनी करने पर उतारू है।भूल गया वो सारे दिन जब मैं हर एक छोटी बड़ी मुसीबत अपने ऊपर लेकर इसे बचाया करती थी।
माँ बेचारी मुझे कब तक जिलाए रखेगी ?
वो दिल की मरीज़ ।अस्थमा अलग परेशान किये रहता है लेकिन शायद मेरे लिए ही आस बनाये बैठी है।
क्या करूँ? कहाँ जाऊँ ?
नौकरी कोरोना खा गया।छोटे मोटे बिज़नेस की बात करूँ तो पापा के अपशब्दों की बौछारें !
दोबारा शादी ! नहीं ।
कोई दुज वर है तो किसी के दो किशोर बच्चे हैं तो कोई सुबह शाम ,सरे आम दिन दहाड़े पीने वाला है।जप तप ,उपवास व्रत ,देवी देवता सब मना कर देख लिए।
लगता है मेरी ग़लती इन सब पर भारी है।
हाँ ,सच ही तो है !जब मेरे माता पिता मुझे पढ़ा लिखा कर कुछ बनाना चाहते थे मेरे सर पर रोमांस सवार था।
कितना अपना सा लगता था मुझे नीरज !उसके बिना जिंदगी असम्भव सी लगती थी।
और एक दिन माँ पिता के सपने चकनाचूर करते हुए हमने भाग कर कोर्ट में शादी कर ली।जिंदगी पास में बचे हुए पैसों पर और समय दोनों ही पंख लगा कर उड़ने लगे ।
प्यार की पींगे कम हुईं और एक उजड़ी सी जिंदगी शुरू हो गई। नीरज की माली हालत खराब थी और मेरी नौकरी जा चुकी थी।
माता पिता अपने घर के दरवाज़े बन्द कर चुके थे।
समझौते के अलावा कोई चारा नहीं था लेकिन फूटी किस्मत के अभी और कई टुकड़े होना बाकी थे।
नीरज एक वाहन दुर्घटना में मारा गया।
और फिर मैं फिर माँ के द्वार पर एक अभिशप्त जिंदगी के लिए मजबूर हूँ।
गलती ! नहीं, अपराध किया था मैंने प्यार कर के।सजा तो भुगतना ही होगी।
मुझे ,केवल मुझे।
ज्योति अप्रतिम