आज कंचन के ससुर जी का श्राद्ध था , पिछले साल बीमारी के चलते उनका देहांत हो गया था,नरेश की जिद थी , वृद्धाश्रम में जाकर वहाँ सबको भोजन कराया जाए !
लेकिन घर पर तर्पण ,ब्राह्मण भोजन आदि के पक्ष में नही था ! लेकिन कंचन का मन नही मान रहा था !
वह तर्पण और ब्राह्मण भोजन भी करवाना चाहती थी,
लेकिन नरेश के लिए ये सब व्यर्थ का खर्च व पुरातनपंथी ढकोसला मात्र था !
वह अपनी बात पर अड़ा हुआ था !
कंचन को अपने ससुर जी की वह बात रह रह कर याद आ रही थी, जो वह हमेशा कहते थे ,
‘हमें रूढ़िवादी कुरीतियों , और ढकोसलों से हमेशा बचना चाहिए , लेकिन हमारे पूर्वजों की बनाई परम्पराओं का मान भी रखना जरूरी है ! जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए संस्कार और घर की परम्परा मात्र उपहास ही न हों ‘!
भगवान राम ने भी वन में अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध और तर्पण किया था ! माता सीता ने वनवास में भी ब्राह्मणों को श्रद्धा से भोजन कराया था । जटायु का तर्पण कर मुक्ति दी , तब ये परंपरा गलत कैसे हुई ?
कैसे फिर इन पवित्र परंपराओं का अनादर कर सकते हैं !!
कंचन ने बहुत सोच समझ कर एक निर्णय ले ही लिया ! उसने नरेश से कहा वो पंडित जी को बुलाए ,
पहले पिताजी का तर्पण और श्राद्ध कर , दो ब्राह्मणों को भोजन और यथा-शक्ति दक्षिणा देकर हम वृद्धाश्रम जाएंगे , वहाँ वृद्धजनों को भोजन करवा कर मंदिरों के आगे बैठे दरिद्र नारायण की भोजन , कम्बल आदि आवश्यकताओं की पूर्ति करने की भी यथासंभव पूरी कोशिश करेंगे !
श्राद्ध पक्ष साल में एक ही बार आता है, जिसमें अंतिम प्रयाण कर विदा हुए प्रियजनों को श्रद्धा-पूर्वक याद कर उनकी आत्मा की शांति के लिए हम अपनी श्रद्धांजलि देते हैं !
जब हम अपने किसी व्यक्तिगत खर्च में कोई कमी नही करते , तब ये तो , हमारी पितरों के प्रति आस्था की भावना है , इसीलिए हम हमारे पूर्वजों की परंपराओं का पालन भी करेंगे ।
नरेश के पास अब कोई जवाब नही था , कंचन की बात न मानने का !!
किरण केशरे