उज्जवला और सुधीर, दोनों पति-पत्नी के स्वभाव एक जैसा, एक सरिता सी सरल, तो सुधीर सागर सा शान्त, धैर्यवान।
उज्जवला सुधीर का एक 5 वर्षीय पुत्र दिपांशु था। उज्जवला सुधीर की सोच थी की एक पुत्र के साथ-साथ एक पुत्री से ही किसी भी का परिवार परिपूर्ण होता है। उनकी सोच यह भी थी कि कन्यादान महादान होता है। वे दूसरे गर्भ में पुत्री की कामना रखे थे। उज्जवला के नौंवा महिना लगते ही कुल पुरोहितजी से शुभ दिन, शुभ मुहुर्त तय करा कर गोद भराई का रस्म किया जा रहा था। सुधीर के पारिवारिक सदस्यों के साथ ही उज्जवला के मायके पक्ष के सभी रिश्तेदार हर्षोल्लास से शामिल हुए थे और उज्जवला के मायके पक्ष से सभी भाई-बहन आए हुए थे। उज्जवला बहुत प्रसन्न थी उसे आने वाले नन्हे सदस्य का बेसब्री से इंतजार था।
रस्म पूरा होते ही सभी रिश्तेदार आशीष और शुभकामनाओं से उज्जवला का आँचल भर कर बारी-बारी विदा होने लगे तभी उसकी छोटी बहन खूशबू, पल्लवी तथा भैया चन्द्र, सूर्य, भाभी प्रीति व उज्जवला के मौसी व मामा के सभी उपस्थित बच्चे भी विदा मांगने लगे।
इस तरह नौ महिने गर्भ में रहने के बाद उज्जवला सुधीर की मनोकामना पूरी हुई, भगवान ने उन्हें गोल-मटोल, सुंदर पुत्री संतान वरदान स्वरूप दिया।
नामकरण संस्कार में उज्जवला के जेठ-जेठानी, सासु माँ ने पुत्री का नाम सुहानी रखा। सुहानी मतलब, सुखद, सुहावना, सुखदायी, सुंदर, आनंददायक, जँचना, फबना होता है। उज्जवला के जेठ ने बच्ची की हथेली की रेखा देखकर कहा निश्चय ही यह बच्ची परिवार का नाम रौशन करेगी।
समय का पहिया सुन्दर गति से चलता रहा।
माता-पिता अपने बच्चों को एक अच्छे नागरिक बनाने के लिए स्वच्छ पारिवारिक वातावरण तथा बेहतर विद्यालय का चयन करते हैं।
अपने पुत्र के समान ही अपनी बच्ची सुहानी को शहर के अच्छे स्कूल में प्रवेश कराया, जहाँ सुहानी ने अपने माता-पिता के दिए सुसंस्कारों से शिक्षा ग्रहण करते हुए मेघावी बच्चों में अपनी गिनती करा ली।
कक्षा 10वीं बोर्ड का जब परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तब उसका नाम प्रावीण्य सूची में दर्ज था जिससे उस बच्ची सहित पूरे परिवार का नाम रौशन हुआ। अपनी बच्ची की इतनी बड़ी सफलता से उसके माता-पिता, परिवारजन फूलों नहीं समा रहे थे।
सुहानी अध्ययन के साथ-साथ स्कूल के अन्य गतिविधियों में भी अव्वल थी। उसने कत्थक नृत्य में पारंगत हासिल किया, स्वीमिंग प्रतियोगिता में भी कई मैडल अपने नाम कराए तथा समय-समय पर शहर में होने वाले चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
अपने सुव्यवहार, अपनी योग्यता के बूते वह स्कूल की चहेती छात्रा बनकर पूरे स्कूल की प्रेरणा बन गई।
कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा में फिर प्रावीण्य सूची में शामिल हुई और अब उज्जवला सुधीर सुहानी के माता-पिता के रूप में स्कूल में पहचाने जाने लगे।
उस बच्ची के सद् व्यवहार, सेवाभाव तथा प्रतिभा को देखते हुए उसने कुशल चिकित्सक बनने का निर्णय लिया और मेडिकल कॉलेज में दाखिला हेतु आयोजित परीक्षा की तैयारी में लग गई हमेशा की तरह अपना मिशन हासिल करने ।
।। इति।।
-गोमती सिंह
छत्तीसगढ़, मौलिक, अप्रकाशित।