“ऐ मन्नो!तूने भाई की ससुराल वालों को अच्छी तरह बता दिया ना कि सास के वास्ते सोने की चीज जरूर आऐगी।और हां ये भी कहलवा दियो कि पतली फरचटी सी ना भेज दें कम से कम दो तोले की तो हो!”
अपने दामाद की सोने की चेन और तेरे लिए हीरे के ना तो सोने के टाॅप्स तो वे देंगे ही।
पवन की मां अपने बेटे के ब्याह में आने वाले रिवाजो और सामान की लिस्ट अपनी बेटी मन्नो से बनवा रहीं थी!
साड़ीयां पंद्रह से कम ना हों इक्कीस भले हो जावें!
तिलक में पचास डिब्बे जरूर हों वही परोसे की तरह बांट देंगे हमें मेहमानों की विदाई में अपनी तरफ से बनवाने की जरूरत ना पड़ेगी!
बरतन हल्के तो कतई ना देवें”
बाकी याद आता जाऐगा तो बताती जाऊंगी लिखती रहियो!
“पर अम्मा हमें भी तो भाभी और उसके भाई-भतीजे के लिए कुछ बनवाना पड़ेगा ना?”मन्नो ने अम्मा को याद दिलाया!
“अरी! हमारे घर ना है ये देने दिलाने का रिवाज! चुप कर! अभी तेरे बाऊजी को पता लग जाऐगा तो फौरन खजाना लुटाने को बैठ जाऐंगे” !अम्मा ने तुनक कर जवाब दिया!
मन्नो कहां चुप रहने वाली थी बोली”मेरे ब्याह में तुमने मेरी ससुराल से भैया के लिए साला जोड़ी का सूट पूरे पांच कपडों सहित कहकर मंगवाया था !भूल गई क्या?और मेरी बिदा और सारे रीति-रिवाजों पर मेरे सास ससुर ने भैया को कितना अच्छा नेग दिया था!आप ही कितना खुश हुई थी!
मेरी सास-ननद के लिए कोई सोने वोने की कोई चीज नहीं दी थी फिर भी बेचारों ने मुझे कभी कुछ नहीं सुनाया!
मन्नो को याद था जब कभी मन्नो की ससुराल कुछ फल मिठाई भेजने का होता अम्मा फौरन कह देतीं
अरे!वहां गिनती के चार लोग हैं बहुत ज्यादा क्या भेजनी बेकार सड़ के जाऐगी!
और मन्नो की सास जब भर भर पकवान मन्नो के साथ भेजतीं तो अम्मा फूली नहीं समाती!
अम्मा—” कल तेरी शन्नो बुआ आ जावेंगी एक बात का ध्यान रखियो पवन की ससुराल से जो सामान आवेगा उसपर उनकी नज़र ना पड़ जावे!
नहीं तो तेरे बाऊजी सारे का बंटवारा करके उनके साथ बांध देंगे!तेरी बुआ का बस चले तो भाई का पूरा घर बटोर के चल दे!उन्हें तो बस दिये जाओ दिये जाओ!
और हां!बहू का भाई बिदा कराने आवेगा तो 101रूपये से ज्यादा का लिफाफा बनाने की जरूरत ना है!लड़की वाले तो देवे हैं उनका लेने का क्या मतलब?
पवन का ब्याह खूब धूमधाम से हो गया !जैसा अम्मा ने चाहा था बहू दिशा के मां-बाप ने दिल खोलकर खर्चा किया!
अम्मा जी ने अपनी ननद-देवरानी जेठानी को बिना कुछ ज्यादा दिये निपटा दिया कि दिशा के पापा ने जो कुछ दिया अपनी बेटी को दिया साड़ी-वाड़ी कुछ आई नहीं जो वे बांटतीं !अपने भाई बहन को जरूर खूब दिल खोलकर दिया।
पगफेरे पर जाते वक्त दिशा ने पवन से अपने भाई भाभी के लिए गिफ्ट मंगा लिये तो दिशा के जाते समय अम्मा जी ने उसकी अटैची के साथ बैग देखकर पूछ ही लिया “दो दिन को जा रही हो एक अटैची ही काफी थी ना !बैग में क्या है?
दिशा के बताने पर कि उसके भाई भतीजों के लिए गिफ्ट हैं अम्म् जी तुरंत बोलीं”बहूजी!हमारे यहां बहू के घरवालों के लिए देने का रिवाज ना है आगे से ध्यान रखियो!”
उधर से भाई के साथ मत आईयो(बेकार विदा का टीका करना पड़ेगा अम्मा जी ने सोचा)
पवन तुझे लेने आ जावेगा (वे पवन को फिर कुछ बढ़िया सा नेग देकर बिदा करेंगे अम्मा जी ने हिसाब लगाया)
वाह री अम्मा जी और उनका कैलकुलेशन।
दोस्तों
आज भी कई परिवारों की सोच है कि लड़के वालों का सिर्फ लेने का हक है!उन्हें लड़की या उसके भाई बहन भतीजों को कुछ भी देने का रिवाज नहीं होता।जब आप लेने की इच्छा रखते हैं तो देने का मन भी होना चाहिए।अगर बहू के घरवालों का मान सम्मान देंगे तो बहू भी आपको और आपके घर वालों को दिल से अपनाऐगी।कभी-कभार इस लेन-देन के चक्कर में अच्छे से अच्छे रिश्तों में खटास आ जाती है!
लेखिका : कुमुद मोहन