आज अदीति और उनके पति जी सुधीर बेहद खुश हैं उनके इकलौते होनहार बेटे ‘ सौरव ‘ के विवाह का तीसरा दिन था । सारा घर नाते रिश्तेदारों से भरा हुआ है ।
अदीति ने आज सत्य नारायण भगवान् की पूजा रखवाई है जिसमें उसकी आस पड़ोस की कुछ सखी सहेलियाँ भी निमंत्रित हैं ।
उनकी सांवली सलोनी बहू चन्दा की मुंह दिखाई की रस्म भी आज ही होनी है ।
सुधीर जी अदीति को सजी संवरी नयी- नवेली सासु माँ के रूप मेंं सजी देख मन ही मन मुग्ध हो रहे हैं ।
सुबह से ही उसे विभिन्न प्रकार के कार्यों में व्यस्त देख लुत्फ उठाते हुए छेड़ रहे हैं ,
” क्यों भाई सासु जी हमारी भी कुछ मदद ले लें “
यह सुन अदिति उन पर एक मोहक मुस्कान डाल प्रसाद के दोनें बनाती
पूजा पर बैठे सौरव और रजनी की मनमोहिनी जोड़ी की मन ही मन नजरें उतार रही है।
पुनः अदिति ने एक नजर मेहमानों की भीड़ पर डाली जिनके ध्यानकर्षण की केन्द्र बिंदु उनकी प्यारी बहू का मध्यम वर्गीए परिवार एवं उसके पिता मास्टर साहब थे ।
वे जोर – शोर से नयी दुल्हन के घर से आए दहेज की चर्चा करने में व्यस्त हैं।
उन सबों में सबसे ज्यादा मुखर तो सुधीर जी की छोटी बहन पुष्पा हो रही है।
दरअसल पुष्पा भतीजे सौरव के लिए अपनी जिठानी की बहन की बिटिया सोनिया का रिश्ता ले कर आई थी ,
” वे लोग तुम्हारा घर भर देंगे भाभी किसी चीज की कमी नहीं रहेगी … ।
उत्तर में बहुत सोच विचार कर अदीति बोली थी ,
” ना बाबा ना गुस्सा तो उसकी नाक पर रहता है ,
कैसे निभा पाएगा मेरा सीधा सादा सौरव उसके संग ” ?
एक तो बड़ा घर , उंचे लोग उस पर से बिटिया भी नकचढ़ी ” ।
यह सुन उनकी ननद पुष्पा बोल उठी थी ठीक है आपकी मर्जी ,
” पर कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली ”
जबाब में अदीति कुछ ना बोल मुस्कुरा कर रह गई ।
आज उन्हीं पुष्पा जी ने सामने से मोर्चा संभाल रक्खा है।
प्रसाद वितरण के बाद हंस कर बोली ,
” अच्छा भाभी मुंह दिखाई की रस्म तो हो गई ,
अब जरा हमें वह सब भी तो दिखाओ जो बहू अपने घर से लाई है …वैसे क्या क्या लाई है वो ” ? ।
अब अदिति क्या जबाब दे ,
वह तो चन्दा को सिर्फ उसके स्वभाव और गुणों पर रीझ कर अपने घर लाई है।
उसके इस बुद्धिमता पूर्ण फैसले में सुधीर जी तथा बेटे सौरव की भी पूर्ण सहमति थी ।
उसने एक नजर अन्य मेहमानों पर डाली लगभग सब की आँखों में यही सवाल
तैरता देख मन ही मन कुछ सोचती हुई इत्मिनान से मुस्कुराई फिर बोली ,
” ओ हाँ पुष्पा जी बहू अपने घर से क्या क्या लाई ,
यह तो मैंने देखा नहीं हाँ इतना अवश्य जानती हूँ कि वो हमारी खातिर अपना बहुत कुछ पीछे छोड़ आई है …” ।
इति श्री सीमा वर्मा / स्वरचित