कॉलेज की बार्षिक परीक्षा खत्म हो चुकी है। महीने के आखरी हफ्ते के शनिवार की सुबह। दिसम्बर की सर्दियों में ‘शेफाली’ अभी बिस्तर में ही है।
जब मोबाइल की घंटी बज उठी, शेफाली यह सोच कर कि,
“कंही कोई आवश्यक फोन ना हो ? “
बहुत मुश्किल से लिहाफ से सिर निकाल कर फोन उठाया।
“हैलो, हैलो… कौन आंटी ? ओ ! अच्छा,
हाँ, हाँ कहें , क्या बात है? “
उधर से ‘हर्षिता’ उसकी घनिष्ठ सहेली की मम्मी की आवाज सुन कर चौंक गई।
” क्या बात…है, आंटी… क्या हुआ इतनी सुबह आंटी सब खैरियत तो है ?”
” हां बेटा, सब खैरियत है, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है”।
आंटी की गहरी सोच में डूबी आवाज सुन
शेफाली चौंक कर सतर्क हो गयी,
” जी कंहे आंटी आप ठीक तो हैं ? “
” हाँ बेटा मैं तो ठीक हूँ पर हर्षिता? ” ठंडी सांस ली आंटी ने,
” उसे क्या हुआ है ? तुम्हें कुछ पता है ? हर बार कितने धूमधाम से वह अपने जन्मदिन मनाती है।”
” तुम्हे तो पता है उसे इस अवसर पर पार्टी, शोर-शराबा सब कितना पसंद है?”
” पर आज वह कुछ भी करने से मना कर रही है”
“क्या बात है? उसका किसी से झगड़ा हुआ है? “
” या… कोई और माजरा है बेटा देखो मुझसे कुछ भी मत छिपाना , सब साफ-साफ बताओ ?”
आंटी का इशारा किस माजरे की तरफ है। यह अच्छी तरह जानती है शेफाली।
बेतक्कलूफी से हँसती हुई शेफाली,
“है् …आंटी बस इत्ती जरा सी बात, उफ्फ ये मम्मियां भी ना !! “
” अच्छा मैं देखती हूँ बोल कर फोन रख दिया”
थोड़ी ही देर बाद वह तैयार हो हर्षी के घर के लिए निकल पड़ी।
रास्ते में ही उसने हर्षिता की मनपसंद पीले गुलाब का गुलदस्ता बंधवा लिया है।
जन्मदिन की सुबह-सुबह हर्षिता प्रिय सहेली को गुलदस्ते के साथ देख खुशी से चहक गई है।
“जन्मदिन मुबारक हो हर्षी, आज तू पूरी इक्कीस की हो गई है!”
फिर उसे गौर से देख कर बोली,
“क्या तू एक साल के दरम्यान वास्तव में बदल गई है या तुझे भी प्रेमरोग …? देख आज आंटी जी तेरी वजह से कितनी परेशान हैं “
हर्षिता की आंखों में हँसते-हँसते नमी आ गई।
“एक साल बहुत लम्बा होता है, शेफाली”
फिर कुछ मिनट रुक कर,
” अच्छा… तो तुझे मम्मी ने बुलाया है ना फोन कर के ?”
शेफाली मासूमियत से ,
” हाँ, अच्छा सुन पार्टी तो बनती है ना? चल या…र इस बार मेरी तरफ से जल्दी से तैयार हो जा” ।
“ओह नो… शेफाली नौट दिस टाईम ” फिर शायराने अन्दाज में हर्षिता बोली… ” चलो आज कुछ स्पेशल करते हैं”
” मसलन क्या… मन्दिर चलोगी दर्शन करने ? “
” हाँ वहाँ भी चलूंगी”
हर्षिता भावातिरेक में उसके गले से लिपट गई।
” लेकिन आज उससे भी पहले “रेडक्रॉस-सोसायटी” चलते हैं हमदोनों “
वहाँ रक्तदान करने का आयोजन किया गया है”
“और तू तो जानती है, ‘रक्तदान-महादान’ है। आज पहले वही करते हैं ना! “
सुन कर शेफाली भी खुश हो गई है।
हर्षिता की मम्मी की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे हैं। वे मन ही मन ईश्वर को प्रणाम कर रही हैं,
” आज मेरी बिटिया सच में सयानी हो गई है और एक मैं, न जाने क्या -क्या सोच रही हूँ “।
तब तक हर्षिता शेफाली को अपनी स्कूटी पर पीछे बैठा रेडक्रॉस सोसायटी की ओर ले जाने वाली सड़क की तरफ मुड़ चुकी है।
स्वरचित / सीमा वर्मा