पश्चाताप – गार्गी राय

शर्मा जी , जो सरकारी नौकर होते हुए भी स्वाध्याय के द्वारा अच्छा-खासा  साहित्यिक समझ रखते थें । अध्ययन में रुचि रखने से काम में हमेशा ईमानदार रहें ….नतीजा हमेशा आर्थिक तंगी का शिकार होना पड़ा । हालाँकि  शर्मा जी ऊँचे पद पर कार्यरत थें ।

हमारे देश की विडंबना है की पैसे बेईमानो के पास होता है …ईमानदारी तो तंगी में ही गुज़रता है ।

उनकी पत्नी प्रभावती देवी …गाँव के विद्यालय से पाँचवी पास महिला थीं । रँग-रूप भी शर्मा जी के मुक़ाबले कमतर था । शर्मा जी ,आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे …उपर से विद्या की चमक …देखते ही बनता था । दोनो ने ही बच्चों को अच्छे संस्कार के साथ पाला था ।

प्रभावती देवी एक कर्तव्य-परायण महिला थीं उनका मधुर स्वभाव सबका मन मोह लेती थी। सभी वर्गों से समभाव रखतीं थीं …चाहें उनका सहायक ही क्यों ना हो ।

बनारस जैसे धार्मिक शहर में रहने पर ..घर में हमेशा मेहमानों का ताँता लगा ही रहता था । कोई गंगा-स्नान ,कोई चिकित्सक सुविधा तो कोई B.H.U में दाख़िला करवाने ,भीड़ लगी ही रहती थीं ।

कुछ अपवादों को छोड़ कर प्रभावती देवी ….सेवा-सुश्रुषा में ही लगी रहती थीं । अपना कमरा ,अपनी रज़ाई मेहमान को देकर ख़ुद दरवाज़े का पर्दा ओढ़ कर सोतीं थीं …बिना चेहरे पर शिकन लिए …सभी के भोजन उपरांत बचा-खूचा खाना ही दिनचर्या में शामिल था ।



शर्मा जी , सभी परचितों को घर का पत्ता बताने से गुरेज़ नहीं करते थें । ख़ामियाज़ा , उनकी पत्नी को उठाना पड़ता था ।

कहते है ना “ कंगाली में आटा गीला” …एक तो आर्थिक तंगी , ऊपर से रोज़ का आतिथ्य ।

 नौकरी के दौरान ही शर्मा जी बामपंथी विचारधारा से जुड़े और नौकरी छोड़ …होल-टाइमर बन गए । अब तो उनकी पत्नी और बच्चों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । बच्चों के पढ़ाई भी बाधित होने लगे । गाँव में खेती-बाडी होने से कुल मिला कर काम चल जा रहा था ।

प्रभावती देवी के पिता की मृत्यु हो गई थी जब वह एक साल की थीं …माँ ने ही पाला था इकलौती पुत्री को …मायके में खासी खेती-बाडी थी …चाहें तो पलायन कर सकती थीं । फिर भी उन्होंने अपने फ़र्ज़ को स्वीकारा ….बीच -बीच में शर्मा जी, ध्रुरु- तारा के समान आकार अपनी उपस्तिथि दर्ज करा जाते थें । उस समय घर का वातावरण कोई उत्सव से कम नही लगता था ।

शर्मा जी की अनुपस्तिथि में , उन्होंने विपरीत परिस्थितियों  में भी अपने भारतीय नारी होने का परिचय दिया …बच्चों की ढाल बनी रहीं ।कम पढ़े-लिखें होने के बावज़ूद उन्होंने बच्चों को ससंसकृत किया …आज सभी ख़ुशहाल हैं । रिटायरमेंट के बाद , शर्मा जी पत्र- पत्रिकाओं में लिखने लगे ….गोष्ठियों में उनका समय बीतने लगा ।

इधर प्रभावती देवी अक्सर बीमार रहने लगी ।शर्मा जी ने सेवा में कोई क़सर ना रखी। बेटे-बहु ,बेटी- दामाद की समर्पण देखते ही बनता था ।अंतिम समय में शर्मा जी के समर्पण से निहाल प्रभावती देवी जिजीविषा संग लिए चली गई ।

काल के गाल में समा गई सेवा की प्रतिमूर्ति …

आज पाँच साल हो गए प्रभावती जी को गए …बावजूद इसके शर्मा जी , पश्चाताप की अग्नि में आज भी जल रहें हैं ।

‘“काश मैं समर्पित पत्नी को सुखद समय दे पाता ..काश उसे छोटी-छोटी बातों पर ना झिड़कता । उसकी परेशानियों को आधा-आधा बाँट लेता “यही सोच-सोचकर उनका आँसू सूखता नहीं है ।

जीवन -चक्र को समझते हुए भी इन्हें विश्वास नहीं होता की वो अब अकेले रह गए …माँ-बाप के जाने का दुःख उतना नहीं था जितना पत्नी के जाने का …शर्मा जी कहते हैं क़ाश …..

गार्गी

 

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