हर वर्ष की तरह रागिनी ने इस बार भी रक्षाबंधन की तैयारी कर रखी थी… अपने भाई के लिए सुंदर सी राखी… भाभी के लिए कंगन और साड़ी.. नारियल… रुमाल…घेवर…फ़ैनी…और भी बहुत कुछ… जो भी उसे याद आया..एक एक चीज़ बड़े ही प्यार से संजोई थी…कि जब भाई राखी बंधवाने आए तो कोई कोर कसर बाकी न रह जाए।
सुबह से ही भाई की राह तक रही थी रागिनी…. अचानक फ़ोन की घंटी बजी।
“हेलो….”रागिनी के भाई का फ़ोन था।
“नवीन… तुम लोग अभी तक आए नही…”रागिनी ने इधर से पूछा।
“रागिनी… हम नहीं आ रहे….मीता के घर जा रहे हैं… उसे उसके भाई को भी राखी बांधना है….सो , तुम्हारे पास आना संभव नही हो सकेगा..” उधर से भाई ने जवाब दिया।
“ओह… अच्छा…. लेकिन…ठीक है नवीन….”रागिनी ने फ़ोन रख दिया…. उसकी आँखों से आँसू बह निकले।उसने हाथ में राखी को उठाया और फफककर रो पड़ी।
” आप मुझे राखी बाँध दीजिये…किसी की आवाज़ पर रागिनी ने चौंककर नज़रें उठाकर देखा ,तो सामने उसका देवर अपनी कलाई आगे करके खड़ा था।
“जतिन भैय्या आप….” रागिनी बोली।
“हाँ…भाभी… मैं भी तो आपका भाई ही हूँ ना….कोई बात नही, अगर आपके भाई साहब इस बार नही आ पा रहें हैं… आपकी भाभी को भी अपने भाई को राखी बाँधना होगी न…तो आप अपने इस भाई को राखी बाँध दो…और भाभी मैं आपको वचन देता हूँ कि एक भाई की तरह सदा आपकी रक्षा करूंगा और आपके प्रति अपना हर कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाऊंगा….जतिन ने रागिनी से कहा।
“जतिन भैय्या…… “रागिनी बच्चों की तरह रो पड़ी।
सिर पर रुमाल डालकर… माथे पर रोली तिलक और चावल लगा कर… हाथ में नारियल देकर…रागिनी, जतिन को राखी बाँध रही थी…. और रिश्तों की मीठी मीठी खुशबू सारा घर महक रहा था।
नम्रता सरन”सोना”
भोपाल मध्यप्रदेश