शादी के बाद की पहली राखी !!कितना बेकरार दिल ! मन तो बस रमा रहता है भाइयों को राखी बांधने के लिए।
मैं भी बहुत बेकरार हूँ इस रक्षाबंधन के लिए।वैसे भी शादी के बाद शुरू -शुरू में पीहर और राखी का त्यौहार बहुत ही याद आता है।जैसे-तैसे अपने ससुराल में मैंने सब को मनाया कि मुझे पीहर जाना है भाई को राखी बाँधने के लिए।
सर्वसम्मति से (मुझे छोड़कर) यह तय हुआ कि पहले मैं ससुराल की राखी का धर्म निभाऊँगी और फिर उसके बाद जा सकती हूँ। जाना तो था ही इसलिए मान ली उनकी बात। ससुराल के शहर से पीहर का गांव ज्यादा दूर नहीं था। डेढ़ घंटे में मुझे पहुँच ही जाना था।अच्छी बात यह थी कि ससुराल में दोपहर में राखी बँध जाती है और पीहर में रात को। अतः खुशी-खुशी बस में बैठ गई।बस चली ही थी कि आसमान काले -काले बादलों से घिर गया।मैंने आसमान की ओर देखा और भगवान से कहा,‘अभी नहीं भगवान ! दो घंटे बाद बरसा देना।‘ और वाह! आसमान साफ़ हो गया।लेकिन यह क्या ? पौना घंटा भी नहीं बीता था कि फिर से बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमकार के साथ अंधेरा छा गया।छोटी-छोटी बूँदों ने बड़ी-बड़ी बूँदों का रूप ले लिया।बस के कांच को वाइपर साफ़ करते हुए उधर से इधर जाते ,परंतु इतनी देर में फिर से पानी से कांच भर जाता और सब धुंधला दिखाई देता।ड्राइवर बड़ी सावधानी से और धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था।
भाई का बार-बार फोन आ रहा था कि जीजी कहाँ तक पहुंचे ?क्या कहती? आँखों में आँसू,दिल में तूफ़ान और जुबां पर राम-राम अविरल चल रहा था।गांव के रास्ते में दो-तीन छोटी-छोटी पुलिया आती है। कहीं वे बारिश से भर नहीं गई हो ?? मन में एक अज्ञात डर बैठा जा रहा था। तभी फ़ोन की घंटी बजी तो डर हक़ीक़त में बदल गया।भाई बोल रहा था,‘ जीजी ,पुलिया पानी में डूब गई है ,बस नहीं आएगी ।मैं भी इधर से बस में बैठ रहा हूँ।पुलिया तक आता हूँ।‘ मैं मना करूँ तब तक फ़ोन कट गया। तभी बस ने ज़ोर से ब्रेक लगाया।सामने देखा तो पुलिया कहीं नहीं दिखाई दे रही थी।इधर से उधर पानी बस दौड़े जा रहा था। ‘ अरे मेरे भाई , मत आना। तू सलामत रहे ,राखी बाद में बाँध दूंगी।‘
पूरी बस में से आधी जगह मेरे जैसी बहनों से भरी थी।सभी निराश और दुखी लग रहे थे।मुझे तो रोना आ रहा था कि पहली बार ऐसा होगा कि मैं भाई की कलाई पर राखी नहीं बाँध पाऊँगी।मैंने आँखें बंद कर ली।अचानक से एक आवाज़ सुनाई दी ,‘जीजी…‘ मैंने आँखें खोली तो देखा ,मेरा भाई मेरे सामने पूरी तरह से तरबतर खड़ा हुआ था।मैं उसके गले लग गई ,‘ तू क्यों आया ?कैसे आया ?क्यों आया ?‘
‘ कैसे न आता जीजी ? चल जल्दी से राखी बाँध।‘ उस पार खड़ी गाड़ी से वापस जाना है।अभी पानी रुका है पर फिर बढ़ जाएगा। मैंने अपने सामान से राखी निकाली ,भाई की कलाई पर बाँधी ,मिठाई का डिब्बा निकाला और उसे मिठाई खिलाई। भाई ने वह डिब्बा पूरी बस में घुमा दिया और बोला,‘ बस जीजी, अब मैं जा रहा हूँ। तेरी बस भी तुझे वापस ले जाएगी।तेरे ससुराल में फ़ोन कर दिया है।पानी बहुत तेज़ है। तेरे साथ नहीं जा सकता।‘
पूरी बस तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी।शायद यह मेरे भाई के लिए थी।आज भी जब यह राखी याद आती है तो खुशी और हर्ष मिश्रित अश्रु निकल आते हैं।
स्वरचित
उषा गुप्ता
इंदौर