ट्रैफिक सिग्नल पर ग्रीन लाईट की प्रतीक्षा मे गाड़ी मे बैठे बैठे राजन की सेंटर लाईन पर नज़र गई तो देखा एक छोटी सी करीब छह सात साल की बच्ची फ़ूलों की मालाऐं हाथ मे लिए हर गाड़ी के पास जाकर माला खरीदने की गुहार कर रही थी… लेकिन लोग इतनी जल्दी में होते हैं कि, कोई भी उससे माला नहीं खरीद रहा था… वह धूप में लाल हो गई थी…. माथे से पसीना टपक रहा था… राजन को इस तरह खुदको देखते हुए पाकर बड़ी उम्मीद से वह उसकी तरफ़ बड़ी ….पास आकर बोली….
“बाबूजी…. एक माला ले लीजिए…
“कितने मे दोगी…राजन ने पूछा।
“सिर्फ़ दस रुपये की एक बाबूजी…. उसने कहा।
“ये सब कितनी मालाएं हैं… राजन ने पूछा।
“आठ हैं बाबूजी… बच्ची उत्सुकता से बोली
“ठीक है…सब दे दो…राजन ने कहा।
इतने मे सिग्नल भी ग्रीन हो गया था।
“ये लो पैसे…”राजन ने मालाएं लेकर सौ का नोट उसे थमा दिया… और गाड़ी आगे बढा दी।
“बाबूजी…. ये तो ज़्यादा हैं…. बच्ची गाड़ी के पीछे भागते हुए बोली।
“रख लो…तुम्हारे काम आएंगे… राजन ने मुस्कुराते हुए कहा।
“नही बाबूजी…. मैं नही ले सकती… क्योंकि मैं भीख नही माँग रही थी बाबूजी… ये आप रख लीजिए और वह मालाएं भी…मैं और बना लूंगी…. बच्ची ने दौड़ते दौड़ते सौ का नोट गुड़ीमुड़ी करके गाड़ी में उछाल दिया….।
ट्रैफिक इतना था कि राजन रुक नही सकता था… वह दूर तक साईड मिरर मे उस बच्ची को देखता रहा… जो राजन को देखकर हाथ हिला रही थी।
बच्ची के चेहरे पर सूरज का ओज चमक रहा था।
*नम्रता सरन “सोना’*
भोपाल मध्यप्रदेश