पुनर्वास – कमलेश राणा

टीवी में गाना चल रहा था,, अबके बरस भेज भैया को बाबुल,सावन में लीजो बुलाय रे,,

 

सावन का महीना हो और पीहर की याद न आये,,ऐसा हो ही नहीं सकता,,

 

रेणू बहुत कोशिश करती है अपने जज़्बातों पर काबू पाने की ,,पर जब बच्चे उससे उसके बचपन और नानी के घर के बारे में पूछते हैं तो वह मुंह में पल्लू ठूंसकर एकांत की तलाश करती है,,ताकि अपने दिल के दर्द को आँखों के रास्ते बहा सके,,

 

रेणू आज भी उस दिन को नहीं भूली है जब उसे अपना प्यारा घर,गाँव,स्कूल सब छोड़ कर नई जगह आशियाना बनाना पड़ा,,बहुत प्यार था उसे अपने मायके हरसूद से ,,

 

राजा हर्षवर्धन की नगरी हरसूद,,2004 में इंदिरा सागर बाँध परियोजना में यह शहर डूब में आ गया,,लोगों को मुआवजा देकर शहर खाली करवाया गया,,रेणू के परिवार वालों को भी घर छोड़ना पड़ा,,

 

पर मुआवजा तो केवल जमीन का ही हो सकता है न,,उन भावनाओं और यादों का क्या? जो वहां से जुड़ी हुई है,,

 

पुरखों की विरासत,,दुल्हन बनकर गृहप्रवेश,,बच्चों की किलकारियां,,पति-पत्नी का परवान चढ़ता प्रेम,,प्यार भरी नोकझोंक को तो अपने साथ समेट के नहीं ले जाया जा सकता न,,

 

एक जिंदा शहर दूसरों की प्यास बुझाने के लिए जमींदोज हो गया था,,जहाँ कल तक जीवन की रवानगी थी,,आज पानी ही पानी था और इस पानी के नीचे दफन थी लोगों की हँसी,अरमान,मधुर यादें,,

 

एक बहुत बड़ा खजाना उनसे छिन गया है,,आज पुनर्वास के लिए किये गये भुगतान से नये घर बना लिये गये हैं,,किन्हीं मामलों में पहले से अधिक सुविधा सम्पन्न भी हैं लेकिन जड़ों से दूर होने का दर्द वही महसूस कर सकता है जो इस पीड़ा से गुजरा हो,,

 

आज उसका दिल नहीं माना,,जन्मभूमि का मोह उसे खींच लाया,,उसके प्यारे बचपन के साक्षी हरसूद की ओर,,

 

तटबंध पर खड़ी हुई रेणू के दिल में यादों का तूफान हिलोरें ले रहा है और बार-बार आर्तनाद कर रहा है,,

 

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,,वो मेरे प्यारे पल छिन,,

 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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