रीमा आज बहुत खुश है। सुबह से ही तैयारियों में लगी हुई है। तरह तरह के पकवानों की खुशबू से पूरा रसोई घर महक रहा है, नए परदे, बेडशीट, पायदान और फूलदानों में रखे हुए ताजे फूल,…. पूजाघर से आती भीनी भीनी धूपबती की महक से पूरे घर का वातावरण बहुत खुशनुमा हो रहा है।…. क्योंकि आज कोई बहुत खास कई वर्षो बाद लंदन से अपने घर, अपने वतन वापस आ रहा है।
रीमा के दोनो बच्चे और पति “संदीप”जी भी बड़ी बेसब्री से इन विदेशी मेहमानों का इंतजार कर रहे है।…तभी रीमा सबसे तैयार होने के लिए कहती है और खुद भी आरती की थाली तैयार करने लगती है की तभी गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनाई देती है और वो जल्दी से आरती की थाली लेकर मुख्य द्वार पर आ जाती है, दोनो बच्चे और संदीप जी भी रीमा के साथ स्वागत के लिए आ जाते है।
गाड़ी से बुजुर्ग दंपति “अनुराधा जी और उनके पति अनुराग जी”उतरते है…सब लोग उनके स्वागत के लिए आगे बढ़कर चरण स्पर्श करते है और फिर उनको तिलक लगाकर,आरती करके सम्मान के साथ घर में लेकर आते है।
रीमा और संदीप दोनो का ही बचपन एक अनाथ आश्रम में बीता था। अनाथ आश्रम के संचालक अनुराधा जी और अनुराग जी ही थे, बहुत ही सज्जन और आश्रम के सभी बच्चों को प्यार करने वाले,…दोनो का एक ही पुत्र था “मानव”जोकि एक ऊंची पोस्ट पर लंदन की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था।
समय बीतने के साथ और बढ़ती उम्र को देखते हुए आश्रम का सारा जिम्मा रीमा और संदीप को सौंपकर, दोनो लंदन में अपने बेटे के पास जा बसे।…इधर एक साथ काम करने से रीमा और संदीप कब प्यार से शादी के बंधन में बंध गए पता ही नही चला। समय के साथ दो प्यारे प्यारे बच्चे भी उनकी जिंदगी में आ गए। आश्रम के काम के साथ दोनो की गृहस्थी बड़े ही सुचारू रूप से चल रही थी।
अनुराधा जी और अनुराग जी से भी दोनो फोन द्वारा लगातार संपर्क में रहते, वो दोनो भी साल में एक बार भारत आकर अपने आश्रम के जरूरी कामों को करके चले जाते।..इस कोरोना कल में जब 2 साल तक अनुराधा जी और अनुराग जी भारत नही आ पाए और फोन पर भी दोनों से कोई बात नही हो पाई,बेटे मानव को भी फोन किया पर उसके उचित उत्तर न देने पर, रीमा और संदीप को अब उनकी बहुत चिंता होने लगी।
फिर एक दिन लंदन से आए संदीप के एक मित्र से पता चला कि दोनो की हालत बहुत खराब है, बेटा मानव और विदेशी बहु दोनो ने उन्हें वहा “ओल्ड एज होम” में भेज दिया है। दोनो बीमार और बहुत कमजोर भी हो गए है।
ये सब पता चलते ही रीमा और संदीप ने अपने मित्र की सहायता से “ओल्ड एज होम” में संपर्क किया,फिर उनके बेटे से बात करके उनके अंत समय में सेवा करने का मौका मांगा।।।।।
मानव को तो मानो मुसीबत से छुटकारा पाने का मोका मिल गया हो, उसने तुरंत हां कर दी।अब महीने के महीने एक रकम जो वह “ओल्ड एज होम” देता था उससे भी छुटकारा मिला और बूढ़े मां बाप से भी।।।।।।
इधर सारी औपचारिकता पूरी करके आज दोनो अपने वतन अपने घर वापस आ गए है। बचपन से मां बाप के प्यार से वंचित रीमा और संदीप को मां बाप और बच्चो को दादा दादी मिल गए।
अच्छे कर्मों के फल भगवान हमे किसी न किसी रूप में जरूर देते है।कभी बेसहारा बच्चो को सहारा देने वाले अनुराग जी और अनुराधा जी को आज अपनी औलाद द्वारा बेसहारा छोड़ देने पर, उन्ही के आश्रम में पले बढ़े बच्चो ने सहारा दिया।।।।
स्वरचित काल्पनिक रचना
कविता भड़ाना