मनिया! – सारिका चौरसिया

गरमागरम पुरियों की भीनी भीनी खुशबू से उसके मुंह मे पानी आ रहा था। इधर कड़ाही से पूरियां उतरती उधर वह दौड़ दौड़ सबकी प्लेटों में परोसने चली जाती। जब तक वह दूसरी खेप ले कर पहुंचती तब तक पहली ख़ेप की पूरियाँ प्लेटों से गायब दिखती।

भूख उसे भी लगी थी,उसने तो सुबह से कुछ भी नहीं खाया था,पर कौन मानेगा?

एक सुबह से जो सबके हाथों में दूध चाय नाश्ता खाना पहुँचाती रहती है रसोई की लगभग सभी जिम्मेदारियां अब उसके ही तो हाथों में रहती है।

फिर भला वह खुद कुछ नहीं खाती होगी??

सच ही तो है उसका अधिकतर समय रसोई में ही तो बीतता है। अभी रसोई बनवाने का काम अम्मा जी उससे नहीं लेने देती लेकिन आटा गूंधने से ले कर साग सब्जी काटने नाश्ता खाना लगाने तक सभी काम उसके जिम्मे हैं। सबको खिलाने पिलाने के बाद घर की साफ सफाई, कपड़े इत्यादि सभी काम अब उसे ही करना होता है। सुना है पहले कोई काम वाली बाई लगा रखी थी। पर जिस दिन से उसका गृहप्रवेश हुआ है इस घर में उसने कभी कामवाली बाई को देखा नहीं।

तब से सब दिशा निर्देश वही सम्भाल रही है। हां एक दिन अम्मा जी के पास किसी औरत को बैठे देखा था उसने, उसके लिये चाय पानी ले कर जब वह गयी थी तो कैसे तो उस औरत ने उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा था। और उसके पलटते ही अम्मा जी से कहा था किधर से ढूंढ कर लायी हो अम्मा जी बड़ी दुबली पतली है घर सम्भाल लेगी?? प्रश्न हवा में तैर गया था। औरतजात घर सम्भालना पेट से सीख कर आती है बिटिया अमीर की हो या गरीब की सब आ ही जाता है। गरीब के घर की बिटिया है।अम्मा जी ने धीरे से कहा था।



सबने खाना खा लिया था और टेबल पर प्लेटों में  ढेर सारा जूठा खाना पड़ा था, जिसे उसको ही साफ़ करना है।

मिठाई का आखिरी टुकड़ा मुंह मे घुलाते हुए अम्मा जी सोफ़े पर से ही चिल्लाई। जरा जल्दी सब निबटाया करो इतनी देर से जूठे बर्तन ही नहीं समेट पा रही, नज़र बस खाने पर ही लगी रहती है।इतना खाती हो फिर भी मरियल ही बनी रहती हो, कहते हुए अम्मा ने डिनर पार्टी की अगली पेशकश आइसक्रीम की तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया।

और अम्मा का समर्थन करते हुए खिलखिलाते बच्चे आइस्क्रीम की ज्यादा भरी कटोरियां चुनने में व्यस्त हो गए।

भूख अब बर्दाश्त के बाहर थी और कमजोरी सी महसूस हो रही थी।अचानक उसे कुछ चक्कर सा आया और उससे टकरा कर मोनू के हाथ से आइसक्रीम की कटोरी गिर पड़ी और अगले ही क्षण मोनू ने उसे धक्का सा दे दिया और गला फाड़ कर रोने लगा। मोनू को रोते देख चाची जी ने चाचा जी का मूड खराब हो गया। और वे अम्मा जी पर बड़बड़ाने लगी अम्मा जी इसने जानबूझ कर मेरे बेटे की आइसक्रीम गिरा दी, किसी को भी खुश होते नहीं देख सकती ये। अम्मा जी आप भी जाने किसको उठा लायी, सोच समझ कर निर्णय लेना था। कमी थोड़े ही है एक ढूंढो हजार मिलती।

आयी भी तो ये, अब सारी जिंदगी झेलो इसको..….

अम्मा जी ने भी सहमति देते हुए बिना कारण जाने उसे ही सौ बातें सुना दी।

इन्होंने ही तो हाँमी भरी तभी तो वह इस घर मे आयी कोई अपनी मर्जी से तो वह आयी नहीं।

अपमान की पीड़ा से नजरें झुकाए वह किसी तरह रसोई में चली जाती है।

उसने सबकी नजरें बचा स्लैब पर रखी पूरी हाथ में उठा ली और जैसे ही मुँह तक ले जाती है किसी के पद्चाप की आहट पर झट वापस रख देती है।



आज सबसे लाडले मोनू का जन्मदिन है और मोनू के दोस्तों के लिये घर मे पार्टी रखी गयी थी और अब हर कोने में जूठे प्लेट्स,कोल्ड्रिंक्स के ग्लास और

गिफ्ट के फटे रैपर फैले हुए थे। उन सब को समेटते रसोई के बर्तनों को माँजते किचन साफ़ करते उसे रात के ग्यारह बजे गए ।उसने रसोई में चारो तरफ नज़र दौड़ाई एक तरफ प्लेट में खाना लगा हुआ था तोड़ी हुई पूरियों के टुकड़े देख वह समझ गयी, बच्चों की छोड़ी हुई जूठन का सही इस्तमाल किया गया है। भूख की व्याकुलता से पीड़ित हो वह ज्यों प्लेट उठाती है अम्मा जी की कर्कश आवाज से हड़बड़ा जाती है, ओह्ह, अभी तो अम्मा जी के पैर भी दबाने थे, पास पहुंचते ही अम्मा ने उलाहने देते हुए पैर फैला दिए,, तुम्हारा वश चले तो तुम मेरी जान ही ले लो, बुढापे में समझोगी बूढ़े शरीर की तकलीफ़ हुंह।

पैर दबाते हुए वह सोचती है भूखा शरीर बुढापा देख पाएगा तब तो अम्मा जी। अम्मा जी तो अम्मा जी चाची जी भी कम नहीं माना कि अम्मा जी बूढ़ी है तो उनके पैरों में दर्द रहता होगा। पर चाची जी वे तो अभी जवान ही हैं और अब उसके सब काम सम्भाल लेंने के बाद से चाची जी को कोई ज्यादा काम भी नहीं रहता। बस एक बार खड़े हो कर सब बना दिया और अपने कमरे में गुम हो गयी । बाकी पीछे तो सबको खिलाना पिलाना देना लेना सब काम उसके जिम्मे। तब क्यों उन्हें भी उसको देखते साथ ही पैरों में दर्द होने लगता है। कभी कोई ये नहीं सोचता कि उसके भी कहीं दर्द होता होगा।उसको भी आराम की जरूरत लगती होगी।

थकान से त्रस्त जाने कब उसे झपकी सी आने लगी उसकी झपकी का आभास पा कर अधनिंदायी सी आराम फरमाती अम्मा जी ने जोर से अपने पैर झटके और बड़बड़ाते हुई बोली जा खा के मर,, जरा सा काम कह दो तो काया मरने लगती है तेरी।

तानों उलाहनों और फ़टकार से पेट भर चुकी वह रसोई में पहुंचती है ,ओह्ह प्लेट की पूरियाँ चूहे कुतर कुतर उदरस्थ कर रहे थे। उसे उन चूहों पर दया सी उमड़ आयी,, जा गणेश जी तुम्हारा ही पेट भरे। सोच कर नल से ही चुल्लू लगा पानी पी कर

वह रसोई की बत्तियां बन्द कर सोने का उपक्रम करने लगती है।

किन्तु भूख से कुलबुलाती अंतड़िया सोने से इनकार कर देती है।

कल भी घर की साफ सफाई करते करते बहुत देर हो गयी थी और ढंग का कुछ खा नहीं पाई थी।



और आज सुबह से तो हाथ बस चकरघिन्नी ही बने हुए हो जैसे। वह सोचने लगी,, इतने लोग हैं घर मे, लेकिन मजाल है कोई एक ग्लास पानी भी खुद से उठा ले। हर तरफ़ उसके नाम का शोर। और हर कोई चाहता कि उसकी पुकार वह पहले सुने।उसकी आँखों के कोरों से गरम गरम आंसुओ की बूंदे उसके गालों पे लुढ़कने लगी। कितना चाहती थी वह आगे पढ़ना, जब सब को किताबे पढ़ते देखती तो उसकी भी इक्छा बलवती हो जाती। कई बार उसने दबी जबान से कहा भी था, पर आँखे तरेर कर सब पूछते पढ़ कर तुम क्या करोगी। बस घर के काम अच्छे से करों ।ये ही ढंग से कर लो तो बहुत है।

जिस दिन से वह इस घर में आयी है,, आयी क्या लायी गयी है  तब से ले कर आज तक किसी ने भी प्यार से दो बोल नहीं बोले होंगे। हाँ कमी निकालने बोलो तो उसके हर काम में बडे से ले कर छोटा तक सौ कमियां जरूर निकाल देता है। ये भला मानों की हमनें तुम्हारे लिये हाँ कर दी। वरना जाने किसके घर जाती? कैसा जीवन होता??

वह सोचती जब तक माँ के पास थी माँ ने तो कितना प्यार दिया कभी कोई काम भी नहीं कराया। अब यहां अचानक से सब काम!! सीखते सिखते ही तो सीखूंगी। कल ही कि बात है रोटी जल गई थी मुझसे। कितनी बात सुननी पड़ी। माँ कहती थी बिटिया अभी पढ़ो, जब वक्त आएगा तब सब सीख जाओगी। पर नहीं जानती थी माँ भी की वक्त अचानक से ही आ जायेगा। आज माँ बहुत याद आ रही।

धीरे से उठती है नाईट बल्ब की धीमी धीमी रोशनी चारो तरह बिख़री है, दबे पांव वह रसोई तक पहुंचती है धीरे से रसोई की सिटकनी खोलती है। उसे अभयास हो गया है रसोई की हर व्यवस्था का। सेल्फ के ऊपर बनी अलमारियां टटोलती है सब बन्द हैं जिनमे सूखे नाश्ते भरे डब्बे सजे रहते हैं। अक्सर इनसे सजी ट्रे ले कर जाया करती है मेहमानों के लिये। पर कभी चखा नही कैसा स्वाद होता होगा इन डब्बो में बंद नाश्तों का। बन्द अलमारियों से हताश होती वह हताश होती है, फ्रिज भी चाभी से बन्द कर चाभी हटा दी जाती है क्योंकि बच्चे रात में आइसक्रीम कोल्ड्रिंक्स चट कर जाते हैं।और सुबह बीमार हो कर स्कूल की छुट्टी कर जाते हैं।

सेल्फ के नीचे बनी सूखे अनाजो की एक अलमारी खोलने की कोशिश करती है  हाल में ही अम्मा जी ने इसमें ही गुड़ का डब्बा भर कर रखवाया था उसी से। चलो एक डली गुड़ की ही खा कर सो जाय, भूखे पेट को किसी पल चैन नहीं। 



नाईट बल्ब की मद्धिम रोशनी में ठीक से न दिख पाने से हाथ से डब्बा छूट जाता है।तभी रसोई की बड़ी बत्ती जल उठती है।

गृहस्वामी और गृहस्वामिनी जिन्हें वह चाचा जी चाची जी कहती है ,दोनों जलती नज़रों से उसे घूरते खड़े है।

वह समझ जाती है अब आज एक ही चीज बड़ी सरलता से पेट भर मिलेगी वह है मार।

यह मनिया है, उम्र यही कोई बारह बरस।रमा और जुगराज की इकलौती बिटिया, पढ़ने के कुशाग्र मनिया स्कूल से जब लौटती तब अपनी मां के हाथों से ही निवाला खाती। चौकीदार गरीब पिता ने बड़े प्यार से अपनी लाडली का नाम मणि रखा था। मणि! माता पिता का अनमोल रत्न।

पिछले बरस माता पिता को कोरोना डस गया। तब दूर के रिश्तेदार, मनिया को यहां छोड़ गए थे अम्मा के पास।

और मनिया अब इस घर की बिना तनख्वाह चौबीस घण्टे सुलभ नौकरानी है, शायद अब पूरा जीवन इसी घर में ऐसे ही बिताना होगा,कोई दूसरा ठौर नहीं।।

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश।।

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