लाल मेरा! – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

टेबल पर रखे लैपटॉप को तौलिये से पोछते हुए उसने पत्नी से पुछा- “माँ का फोन आया था क्या?”

“नहीं अभी तक तो नहीं।

पर क्यूँ?”माँ की याद आ रही है?

“नहीं मैं सोच रहा था कि इधर मैं काम में इतना व्यस्त था कि फोन करने का ध्यान नहीं रहा।

पत्नी ने कहा-“तो क्या हुआ ! उनके पास बात करने का कोई टॉपिक रहता ही क्या है। बस एक ही प्रश्न बार बार पूछना रहता है कब आओगे? कब आओगे?

“एक और प्रश्न जो तुम भूल रही हो।”

“कौन सा?


“तूझे छूकर कब देखूँगी मेरे लाल!”

इतना कहकर दोनों जोड़ से हँस पड़े……

अभी वह अपना शर्ट पहन ही रहा था कि फोन की घंटी बज उठी।

, “लो आ गया माँ का प्रश्न,सॉरी फोन।”

मुस्कुराती हुई पत्नी बोली, वह पत्नी से बोला- “चलो

अच्छा हुआ पहले ही बात हो जायेगी। फिर काम में लग जाता तो बात नहीं हो पाती।”

“हलो!”


“हाँ माँ कैसी हो तुम? बहुत दिन बाद फोन किया?”

“मैं ठीक हूँ बेटा …।

तू बता सब कुशल है ना। कितने दिन हो गये तू भी तो फोन नहीं करता। तेरी बहुत याद आती है बेटा। तेरे बगैर घर, घर नहीं लगता। कब आयेगा मेरे पास?

“कब तुझे छूकर देखूँगी मैं?”

“अरे माँ ! फिर वही बात। किस दुनियां में हो तुम। साईंस इतना आगे बढ़ गया और तुम अभी तक वही की वही हो!क्या फायदा हुआ फोन दिलाने का तुमको। कभी भी  कॉल कर सकती हो। 

“सिर्फ आवाज नहीं सुनना।”

और तुझे दूर से नहीं, मैं छूकर देखूँगी। तू कब आएगा दो साल हो गया तुझे गए हुए!

इन बूढ़ी आँखों का क्या भरोसा कब देखना बंद कर दे।” “माँ तुम बेकार की बातें क्यूँ करती हो। कितनी मुश्किल से मुझे प्रमोशन मिला है तब जाकर यहाँ तक पहुँचा हूँ मैं।

तुम्हें मुझे देखने से मतलब है ना तो फोन में देख लेना।

तुम फोन रखो । मैं काका के फोन पर विडियो कॉल करता हूँ।  मुझे जी भर देख लेना।”

उसने फोन काटते हुए पत्नी से कहा – देखो, तुम काका को विडियो कॉल लगाओ तबतक मैं तैयार हो जाता हूँ।


पत्नी ने कहा- “लो फोन लगा दिया काका से  बात कर लो।”

बालों में कंघी करते हुए वह बोल रहा था,

“यह माँ भी न समझती ही नहीं है। एक ही रट लगा रखा है छूकर देखना है, छूकर देखना है। देखने से मतलब है चाहे जैसे देख लो!”

 स्क्रीन पर काका सामने दिख रहे थे।  उसने हाथ जोड़ते हुए कहा-“हां काका कैसे हैं आप ? “

“ठीक हूँ बेटा।”

बहुत दिन बाद काका की याद आई। तेरी माँ बहुत याद करती है तुम्हें।” काका से कुशल मंगल पूछने के बाद बोला – “काका माँ को दिखाईये।” सामने माँ दिख रही थी। “माँ आप कैसी हैं? लिजिये देखिये मुझे।

अरे ! माँ कुछ बोलो भी बस रोती ही रहोगी। अब देख लो ना मैं तेरे सामने हूँ । माँ आखें पोछ्ती हुई बोली – “तू कहां दिख रहा मुझे। तभी तो छूकर देखना चाहती हूँ मेरे लाल!”

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

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