रिश्ते सिर्फ प्यार के भूखे होते हैं-मुकेश कुमार

रेशमी के पति आर्मी में नौकरी करते थे कुछ दिन पहले रिटायर हुए थे रेशमी और रेशमी के पति ने फैसला किया कि वह अब दिल्ली जाकर रहेंगे और उसके पति कहीं सिक्योरिटी गार्ड की प्राइवेट नौकरी भी कर लेंगे और बच्चों की पढ़ाई वह दिल्ली शहर में ही कराएंगे।  ऐसा सोचकर उन्होंने दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में एक फ्लैट किराए पर ले लिया.

रेशमी रोज सुबह-सुबह अपने पति के साथ पार्क में वॉक करने जाती थी।  वह  एक हंसमुख स्वभाव और मिलनसार प्रकृति की महिला थी वह जहां भी जाती थी जल्दी ही लोगों के साथ घुलमिल जाती थी और उसे दिल्ली में भी अपने सोसाइटी में जान पहचान बनाने में अधिक देर नहीं लगी।  उसकी  सबसे बड़ी खासियत यही थी कि वह सबकी सहायता करती थी जितना उससे बन पाए। उसके पास हर प्रॉब्लम के ताले की चाबी थी इस वजह से किसी को भी कोई प्रॉब्लम होता था सब रेशमी के पास आते थे। धीरे-धीरे वह अपने सोसायटी की मोटिवेशनल काउंसलर हो गई थी उसे अच्छा भी लगता था किसी को चेहरे पर मुस्कान लाना।  उसके  मां-बाबूजी भी नहीं थे और ना ही ससुराल पक्ष में सास-ससुर इस वजह से वह सोसायटी के जितने भी वृद्ध पुरुष और महिला थे सबसे बड़ा प्यार से रहती थी। सबके चेहरों में अपने मां-बाउजी और सास-ससुर का चेहरा देखती थी।

एक दिन रेशमी जब पार्क से टहल  कर वापस अपने फ्लैट वापस जा रही थी तो उन्होंने देखा कि दूसरी मंजिल पर एक 60-65 वर्ष की वृद्ध महिला बैठी हुई है और वह दर्द से कराह रही है। उसने उस महिला से पूछा, “आंटी  क्या हो गया है आपको?” वृद्ध महिला ने बताया वह सेकंड फ्लोर पर रहती है उसका पैर फिसल गया था और अभी उठने की हिम्मत नहीं हो रही है। रेशमी बोली, “इसमें घबराने वाली क्या बात है आंटी आ जाओ मैं आपको आपके फ्लैट तक पहुंचा देती हूं।”  उसने वृद्ध महिला का  हाथ पकड़ कर उनके फ्लैट के अंदर ले जाकर सोफे पर बैठा दिया। रेशमी ने देखा की आंटी को पैर में चोट आई है और हल्का कट भी गया है जिससे थोड़ा-थोड़ा खून निकल रहा है वो बोली  आप रुको मैं अभी मरहम पट्टी कर  देती हूँ वह दौड़ कर अपने फ्लैट में गई और वहां से रुई और डिटोल लेकर आई।

बड़ा प्यार से वृद्ध महिला को रेशमी ने पट्टी कर दी।  तभी उस महिला के पति मोहन लाल जी दरवाजे से अंदर आये और बोले अरे कबीर की अम्मा कहां हो जल्दी से चाय बनाओ।  यह बोलते हुए जैसे ही वह अंदर आए तो देखा कि वह सोफे पर बैठी हुई हैं और उनको चोट लगी  हुई है उन्होंने पूछा यह कैसे हो गया तो फिर सारा वाकया रेशमी ने मोहनलाल जी को बताया।

इतने में वृद्ध महिला उठकर चाय बनाने के लिए किचन में जाने लगी। रेशमी बोली, ” रहने दो, मैं अंकल को चाय बनाकर पीला देती हूं।”  वृद्ध महिला बोली तुम्हें थोड़ी पता होगा रसोई मे कौन सामान कहां रखा है।

रेशमी बोली कोई नहीं अम्मा मैं अपने घर से बनाकर ले आती हूं।  थोड़ी देर बाद रेशमी चाय बना कर अंकल और आंटी के घर आई और अपना चाय भी साथ लेकर आई थी।  रेशमी ने पूछा, “अंकल-आंटी मुझे यहां रहते हुए 1 महीना से भी ज्यादा हो गया पहली बार मैंने आप लोगों को देखा है।”  यही सवाल मोहनलाल जी ने भी पूछा कि हां बेटी यही तो हम भी पूछना चाहते हैं कि हमने भी तुम्हें पहली बारी इस सोसाइटी में देखा है।

रेशमी ने बताया कि वह एक महीना पहले ही यहां पर शिफ्ट हुई है उसके बाद रेशमी ने पूछा, “क्या अंकल आंटी आप लोग अकेले रहते हैं आपके बेटे और बहू कहां रहते हैं।? मोहनलाल जी ने कहा,” बेटा और बहू अमेरिका में रहते हैं बेटा सॉफ्टवेयर इंजीनियर है कई बार बेटा बोलता है हमें अमेरिका ले जाने के लिए लेकिन तुम ही बताओ बेटी, हम वहां जाकर क्या करेंगे हमारा वहां मन कहां लगने वाला है, इसलिए हम  बोल देते हैं हम यही ठीक हैं।”

तभी वह वृद्ध महिला बीच में ही टपक पड़ी और मोहनलाल जी से कहा, “क्यों झूठ पर झूठ बोलते रहते हो बचपन से ही अपने बेटे की साइड लेते रहे हो इसीलिए तो तुम्हारा अभी तक यह हाल है आज तक एक बार भी उसने बोला अमेरिका चलने के लिए झूठ मुठ के सबके सामने कहते रहते हो कि हमारा बेटा वहां जाने के लिए बुलाता रहता है।  भगवान करे ऐसा बेटा और बहू किसी को ना दे वृद्ध महिला बिल्कुल भावुक हो गई थी और रोने लगी रेशमी को उन्होने बताया कि शादी करने के बाद सिर्फ 2 दिन वह ससुराल में रही थी और उसके बाद ही बेटे को लेकर अमेरिका चली गई और उसके बाद बेटा तो कभी-कभी 2-3 साल में आ भी जाता है लेकिन बहु आज तक नहीं आई हमने तो अपने पोते पोतियो की शक्ल तक नहीं देखी है।  तुम्हारे अंकल ही फेसबुक पर उनके प्रोफाइल में खोलकर दिखाते रहते हैं।

रेशमी बस यही सोच रही थी कि इस दुनिया में हर कोई किसी न किसी कमी से जूझता है मेरे पास मां-बाप और सास-ससुर नहीं है तो मैं यह सोचती हूं कि काश मेरे सास-ससुर होते और मैं उनकी सेवा कर पाती और इनके बेटे -बहू हैं तो वह अपने मां को और बहू अपने सास-ससुर को कुछ समझती नहीं है कैसी दुनिया के अंदाज भी निराली है।



अब तो अगले दिन से रोजाना रेशमी पार्क से आती और तीन कप चाय बना कर नीचे मोहनलाल जी के फ्लैट में आ जाती और तीनों लोग मिलकर चाय पीते थे और बातें करते रहते थे।  रेशमी को बड़ा सुख मिलता था मोहनलाल जी और उनकी पत्नी के साथ।

एक दिन जब चाय पीने के बाद रेशमी वापस लौट रही थी तो मोहन लाल जी और उनकी पत्नी आपस में बातें कर रहे थे, “काश हमारी बहू भी ऐसी होती।”

कुछ दिनो बाद  रेशमी की  शादी का सालगिरह था और वह सुबह जब चाय पीने आई थी मोहनलाल जी और आंटी को आने के लिए भी निमंत्रण दिया । आज आंटी शाम को आप लोग खाना नहीं बनाएंगे हमारे यहां खाना खाएंगे।  मोहनलाल जी की पत्नी ने बोला बेटी तुम्हें तो पता ही है कि हम लोग इतना तेल मसाला का खाना नहीं खाते हैं और तुम्हारे यहां फंक्शन है तो सब कुछ वैसे ही खाना बनेगा हां हम तुम्हारे फंक्शन में शामिल जरूर होंगे लेकिन खाना नहीं खाएंगे डॉक्टर ने ज्यादा मसालेदार खाना खाने से मना किया है।  । रेशमी ने कहा आप लोग चिंता मत कीजिए मैं आप लोगों के लिए अलग से खाना बना दूंगी।

थोड़ी देर में रेशमी जाने लगी लेकिन दरवाजे से जाकर फिर वापस लौटी और उसने मोहनलाल जी की पत्नी के पास दुबारा से बैठ गई और बोली आंटी अगर आप बुरा ना माने तो क्या आज से मैं आपको मां बुला सकती हूं और अंकल को पापा।

मोहनलाल जी और उनकी पत्नी ने खुशी-खुशी इस बात की इजाजत दे दी। हां  बुला सकती हो, हमें क्या ऐतराज होगी हमें तो बहुत खुशी हुई चलो हमारी कोई बेटी नहीं थी तो हमने बहू से आस लगा रखा था हम अपनी बेटी की सपने अपने बहु से पूरे करेंगे लेकिन वह तो नसीब में नहीं है भगवान ने शायद यही हमारी किस्मत में लिख रखा था एक लड़की उन्हें मिलेगी जो बेटी का सुख देगी और तुम हमें वह सारे सुख दे रही हो जो एक बेटी अपने मां-बाप को देती है।

उस दिन के बाद तो रेशमी और मोहनलाल जी के परिवार  का रिश्ता बहुत गहरा हो गया अब तो रेशमी के बच्चे भी इनको नाना नानी पुकारने लगे रेशमी के पति भी कई बार नीचे आकर छुट्टी के दिन  मोहनलाल जी के घर पर आकर बैठ जाते थे।

धीरे धीरे एक अंजाना सा रिश्ता कब अपनेपन में तब्दील हो गया किसी को पता ही नहीं चला।  अब तो रोजाना शाम का खाना रेशमी बनाकर अंकल आंटी को दे  जाती थी। अपने मधुर स्वभाव के बदौलत कुछ ही महीनों में मोहनलाल जी के परिवार से ऐसे अपनापन का नाता जोड़ लिया था उन लोगों को भी बार-बार रेशमी से मिलने का मन करता था उनके कान हमेशा मां और बाबूजी सुनने के लिए आतुर रहते थे इन लोगों ने भी रेशमी को अपना बेटी ही मान लिया था और अपनी सगी बेटी जैसा प्यार देने लगे थे।

मोहनलाल जी की पत्नी ने कई सारे नए पकवान की रेसिपी रेशमी को बनाना सिखाया।   रेशमी को आचार बिल्कुल ही नहीं बनाने आता था वह भी मोहनलाल जी की पत्नी ने सिखा दिया था।  अब तो कहीं बाहर शॉपिंग भी जाते थे तो रेशमी इन दोनों लोगों को भी अपने साथ ही ले जाती थी।



रेशमी का अपनी सोसाइटी में अच्छा खासा नाम अपने सेवा भाव के कारण हो गया था.। इस साल सोसायटी के अध्यक्ष पद पर भी रेशमी को ही चुना गया।  रेशमी अपनी सोसाइटी के किसी भी प्रॉब्लम को चुटकियों में हल कर देती थी।

एक  दिन सुबह जब चाय लेकर रेशमी मोहनलाल जी के घर आई हुई थी तो मोहनलाल जी ने खुशी खुशी रेशमी को बताया कि बेटी कल शाम को हमारी बहू का फोन आया था और इस बार सचमुच में आया था वह हमें अमेरिका के लिए बुला रहे हैं बेटा से भी बात हुई थी पूछ लो तुम अपनी मां से मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। रेशमी बोली अरे यह तो बहुत अच्छी बात है चलो देर आए दुरुस्त आए कम से कम आपकी बहू ने आपको याद तो किया।

लेकिन मोहनलाल जी के पत्नी के चेहरे पर कोई भी खुशी के भाव नहीं थे बल्कि उसने इतना ही कहा आज तक तो याद नहीं किया 5 साल से भी ज्यादा हो गए उन्हें अचानक से हमारी याद कैसे आ गई और वह भी एक बार में ही अमेरिका बुलाने लगे मुझे तो कोई जरूर दाल मे काला लगता है और तुम्हें जाना है तो जाओ मैं तो कभी नहीं अमेरिका जाऊंगी।  मोहनलाल जी ने कहा बेटी अब तूम ही समझाओ इसको कोई अपने बेटे बहू से भी नाराज होता है क्या? इतने प्यार से बुला रहे हैं जाने में क्या है हर कोई यही तो सोचता है अपने बुढ़ापे में अपने बेटे और बहू के घर में रहेंगे नाती पोतों के साथ खेलेंगे। अब यह मौका आ रहा है तो यह इंकार कर रही हैं।

रेशमी ने भी बोला हां माँ, पापा ठीक कह रहे हैं।  अगर आपके बेटे बहू इतनी प्यार से बुला रहे हैं तो आप चले जाइए अगर आपको अच्छा नहीं लगेगा तो फिर से दोबारा आ जाइएगा मैं तो यहां पर हूं ही।  रेशमी ने पूछा कब आ रहे हैं आपको लेने।

मोहनलाल जी ने बताया परसों सुबह आ जाएंगे और उसके 1 सप्ताह बाद का जाने का टिकट है।  रेशमी थोड़ी देर के बाद वहां से चली गई लेकिन उसे इतना तकलीफ जब उसके अपने सगे मां बाप भी मरे थे तो नहीं हुआ था जितना उसे अब हो रहा था ऐसा लग रहा था वह फिर से अकेली हो जाएगी उसके मां बाप का प्यार छिन जाएगा लेकिन वह कर भी क्या सकती है वह मना भी तो नहीं कर सकती है आखिर वह भी तो अपने बेटे बहू के लिए कितना तरसते हैं।

मोहनलाल जी के बेटे और बहू एक दिन बाद आ चुके थे और दोपहर में रेशमी भी उनसे मिलने आई रेशमी का परिचय मोहनलाल जी ने अपने बेटे और बहू से कराया।  लेकिन मोहनलाल की बहू और बेटे, रेशमी से अजीब तरीके से ही व्यवहार किया जो रेशमी को पसंद नहीं आया रेशमी थोड़ी देर बाद ही वहां से चली गई और वह ठान लिया कि अब इस घर में नहीं आएगी जब तक उनके बेटे बहू रहेंगे उसे यह एहसास हो गया था इनके बेटे बहू को उसका आना पसंद नहीं था।

रेशमी को जाने के बाद मोहनलाल जी की बहू ने कहा मम्मी पापा आप लोग भी बहुत भोले भाले हैं अनजान लोगों से इतनी भी दोस्ती और रिश्ता नहीं निभाया जाता है हां कभी-कभार बात कर लिया ठीक है आपको क्या पता बड़े शहरों में क्या से क्या हो जाते हैं।  तभी मोहनलाल जी की पत्नी ने कहा बहु तुम्हें क्या पता रेशमी के बारे में हमारी बेटी जैसी है जैसी क्या बेटी ही है। वह हमारी कितनी सेवा करती है मैं क्या बताऊं।



शाम होते ही मोहनलाल जी का बेटा कबीर एक पेपर लेकर आया और अपने पापा से बोला  इस पर साइन कर दीजिए। मोहनलाल जी बोले क्या है यह ? तो बेटा ने बताया पापा हमने या फ्लैट बेच दिया है अब इस प्लेट का क्या करेंगे अब आप लोगों को भी तो अमेरिका में ही रहना है और फिर हम इस फ्लैट  को रख कर क्या करेंगे 6-7 हजार रुपए किराया आएगा उससे क्या हो जाएगा। लेकिन यह बात मोहन जी को पसंद नहीं आया उन्होंने बोला बेटा हमारे जीते जी तो कम से कम इसे मत बेचो हमारे मरने के बाद जो मर्जी कर लेना।

लेकिन कबीर  कहां मानने वाला था उन्होंने जिद करके साइन करवा ही लिया।

शाम को मोहनलाल जी और उनकी पत्नी जब पार्क में टहलने गए थे तो रेशमी पार्क मे  मिली मोहनलाल जी ने रेशमी को बताया कि तुम आजकल  क्यों नहीं आती हो। आपकी बहू को हमारा वहां आना अच्छा नहीं लगा इसलिए मैंने सोचा कि वह जब नहीं रहेगी तभी आऊंगी।

मोहनलाल जी की पत्नी ने बताया रेशमी बेटी अब तो हम यहां से हमेशा हमेशा के लिए जा रहे हैं बेटा ने फ्लैट की बेच दिया।  पता नहीं क्यों  मुझे सब कुछ ठीक नहीं लग रहा है अचानक से इतने सालों बाद अमेरिका ले जाने के लिए आए और हमने कहा कि अभी मत बेचो फ्लैट  को लेकिन माना  नहीं बेच दिया। क्या कर सकते हैं? रेशमी ने प्यार से समझाया कोई नहीं मां जी इसमें इतना चिंता करने वाली कोई बात नहीं है अब वह सोच रहे होंगे कि अब इंडिया में रहना नहीं है तो इस फ्लैट  का क्या करना है और फिर आप लोगों को भी इससे क्या मतलब जहां बेटे बहू रहेंगे वही तो आप लोग भी रहेंगे। कुछ देर के बाद पार्क से सब घर वापस लौट गए।

अगले दिन सुबह ही मोहनलाल जी के बेटे और बहू मोहनलाल जी को लेकर   एयरपोर्ट के लिए निकल चुके थे रेशमी ने अपने बालकनी से ही हाथ हिलाकर मोहनलाल जी और उनकी पत्नी को बाय कहा।

एयरपोर्ट पहुंचकर मोहनलाल जी के बेटे ने  अपने मां बाप को वेटिंग एरिया में बैठने के लिए कहा और और उसकी पत्नी और बच्चे दूसरी तरफ चले गए ऐसे करते करते 3  घंटे से भी ज्यादा बीत गए वह लोग अपने मां-बाप बाबू जी के पास नहीं आए मोहन लाल जी कुछ देर के बाद वहां पर खड़े गार्ड से पूछा कि हमें अमेरिका जाना है और हमारा बेटा 3  घंटा हो गया अभी तक आया नहीं। गार्ड ने बताया अंकल जी अमेरिका जाने वाली फ्लाइट तो कब की जा चुकी है। मोहनलाल जी ने आश्चर्य से कहा क्या? मोहनलाल जी को  लगा कि किसी दूसरे फ्लाइट में हमारा टिकट होगा तो हमारा बेटा आता ही होगा ऐसे करके अब 8 घंटे से भी ज्यादा बीत चुके थे लेकिन उनका बेटा नहीं आया।

मोहनलाल जी अब समझ चुके थे कि उनका बेटा उनको  छोड़कर अमेरिका चला गया है अब उनको समझ नहीं आ रहा था जो अपनी पत्नी से आकर क्या कहें क्योंकि दिल्ली में जो उनका  रहने का ठिकाना था वह भी अब बिक चुका था जाए तो कहां जाए।



मोहन लाल जी ने दिल पर पत्थर रखकर अपनी पत्नी से यह सारी बात बता दी मोहनलाल जी की पत्नी ने बहुत ही हिम्मत किया और उसने कहा यह तो होना ही था मुझे तो पहले से ही पता था कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है वरना यह अचानक से इतना कैसे बदल गए कि हमें अमेरिका ले जाने लगेंगे चलो एक आखिरी आस थी अपने बेटे और बहू से वह भी टूट गई।  मोहनलाल जी  बोले  अब आखिर हम कहां जाएंगे मोहनलाल जी की पत्नी ने कहा कहां जाएंगे चलो अपनी सोसाइटी के पास ही जाएंगे उसके बाद जो भी होगा देखा जाएगा।

मोहनलाल जी अपनी पत्नी के साथ अपने सोसायटी के गेट पर पहुंचे और गेट पर पहुंचते ही गार्ड ने बोला, “अरे अंकल आंटी आप लोग! आप लोग तो अमेरिका जाने वाले थे।  मोहनलाल जी ने बताया हां बेटा जाने वाले तो थे लेकिन मन नहीं किया जाने का तो हम वापस आ गए।  गार्ड को भी यह बात पता था कि उन्होंने अपना फ्लैट बेच दिया है तो उसने बोला अंकल आंटी आपने तो अपना फ्लैट बेच दिया ना फिर आप लोग यहां पर कहां रहेंगे।

मोहनलाल जी कुछ नहीं  बोले गार्ड भी सब कुछ समझ गया था उसने अपने केबिन में दोनों लोगों को बैठाया और पानी पीने को दिया।  कुछ देर के बाद मोहनलाल जी ने गार्ड को बोला रेशमी बिटिया के पास फोन लगाना और उनको बताना कि हम लोग सोसायटी के मेन गेट पर बैठे हुए हैं।

गार्ड ने  रेशमी को फोन कर कर सब कुछ बताया।  रेशमी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, वह दौड़ी-दौड़ी   मेन गेट पर पहुंची और वहां पर मोहनलाल जी और उनकी पत्नी को देखा तो वह स्तब्ध रह गई और उनसे पूछा उन्होंने सब कुछ बता दिया था रेशमी से लिपट कर रोने लगे थे रेशमी ने बोला मां बाबूजी आप लोग चिंता मत कीजिए बेटा और बहू ने छोड़ दिया तो क्या हो गया आपकी बेटी अभी तो जिंदा है अब आप लोग कहीं नहीं जाएंगे आप लोग हमारे साथ रहेंगे।

रेशमी ने फोन करके अपने पति से सारा वाकया बताया उसके पति ने बोला ठीक है इनको अपने घर ही रख लो और उस दिन के बाद से मोहनलाल जी और उनकी पत्नी रेशमी के घर उसके मां बाबूजी बनकर रहने लगे।

दोस्तों दुनिया में कई बार ऐसा समय आता है जब हमारे अपने हमको छोड़कर चले जाते हैं हमें समझ नहीं आता है हम इस दुनिया में कैसे रहे और किसके साथ रहे तभी कोई ना कोई हमें सहारा बनकर आता है और वह रिश्ता हमें अपने खून के रिश्ते से भी बढ़ा नजर आने लगता है।   दोस्तों लोग समझते हैं कि रिश्ते निभाने के लिए पैसा होना जरूरी है लेकिन मेरा मानना यह है कि रिश्ते पैसे के नहीं सिर्फ प्यार के भूखे होते हैं जहां प्यार मिलता है इंसान वहां चला आता है।

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