कोपल हमेशा अपने रंगीन ख्वाबों की तामील में डूबी रहती। शादी के आठ महीने बाद भी, कपिल में अपने पसंदीदा बॉलीवुड अभिनेता की छवि तलाश रही है।
पतिदेव कपिल पता नही शर्माते थे, या उनके सब शौक पूरे हो चुके थे। इन सब बातों से वे अनछुए, अनभिज्ञ थे। काल्पनिकता और अव्यवहारिकता, उन्हें बिल्कुल नही भाती।
कोपल को शौक था कि कपिल, कभी उसे बेमतलब गले लगा ले। दो चार चुम्बन अनायास ही जड़ दे। कभी कानों के पास, होठों को छुआते हुए, शरीर में सुरसुरी जगा दे। और ये सब किसी प्रयोजन से ना हो। केवल प्रेमप्रदर्शन का मार्ग भर हो।
फोन पर प्रेमभरी लंबी बातचीत हो। कुछ आईलवयू के आदानप्रदान हों। उसके भी खानपान की सुध हो। कोपल के आसपास ना होने पर कपिल बेचैन हो उठें।
कमरे में चाय पीने के बीच कुछ अठखेलियाँ हों। एकदूसरे को देख कुछ इशारे हों। बिस्तर में पडेपडे कुछ अंतरंग चर्चा हो।
उस एक क्रिया से इतर केवल नयनों के मिलते ही प्रेम की परिणिति हो जाय। संभवतः उस तरह की निकटता से आत्म अभिव्यक्ति, संबंध में प्रगाढ़ता स्वतः हो जाय।
परंतु कोपल की शादी, नब्बे प्रतिशत आबादी की ही तरह थी। उपरोक्त कथित क्रियाओं का निष्पादन तभी होता जब, रात बिल्कुल काली अंधेरी होती। जिसमें भय, नीरसता, अनचाहे, अनजान कृत्यों के मिश्रितभावों की उथलपुथल मची होती।
पर क्या किया जाय?? सम्पूर्ण जीवन मातापिता का रचाया बसाया तो नही। उनके आशीर्वाद से परिपूर्ण नही। कि जो इच्छा की, मातापिता ने पूरी कर दी।
कर्म व भाग्य की भी तो अपनी विशेषता है। नियति व समय का खेल निराला है। पृष्ठभूमि में गीत के बोल कुछ यूँ सुनाई दे रहे हैं।
“कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता,
कभी ज़मी तो कभी आसमा नही मिलता।
तेरे जहान में ऐसा नही की प्यार ना हो,
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नही मिलता।।”
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला