रेवती अपने कॉलेज में ग्रेजुएशन में टॉप किया था, इस खुशी में विश्वविद्यालय ने रेवती को गोल्ड मेडल देने का निर्णय लिया था उसी का आज कॉलेज में फंक्शन था लेकिन रेवती यह गोल्ड मेडल अपनी मां के हाथों लेना चाहती थी इसलिए उसने अपनी मां को एक दिन पहले ही बोल दिया था कि वह स्कूल से छुट्टी ले लेगी, रेवती की मां एक प्राइवेट स्कूल में इतिहास की शिक्षिका थी।
रेवती की माँ और रेवती कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहे थे, क्योंकि 2:00 बजे से फंक्शन शुरू होने वाला था।
स्टेज से जब रेवती का नाम अनाउंस हुआ गोल्ड मेडल के लिए तो रेवती खुशी से झूम उठी और उसने देखा कि रेवती की मां की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे। जब रेवती को स्टेज पर बुलाया गया तो रेवती ने मंच संचालक से धीरे से बोली, “अगर कॉलेज प्रशासन को ऐतराज ना हो तो मैं यह गोल्ड मेडल अपनी मां के हाथों लेना चाहती हूँ। क्योंकि अगर आज मुझे यह गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ है तो मेरी मां का मेहनत का नतीजा है।” मंच संचालक ने स्टेज पर बैठे एक व्यक्ति से बात किया और उन्होंने रेवती की मां का नाम अनाउंस कर दिया निर्मला देवी कृपया स्टेज पर आएं और अपनी बेटी रेवती को अपने हाथों से यह गोल्ड मेडल प्रदान करें।
गोल्ड मेडल लेने के बाद रेवती की मां और रेवती ऑटो से घर आ रहे थे रास्ते में रेवती ने मां से पूछा, “मां तुम क्यों रो रही थी, रेवती की मां ने कहा, “रेवती तुम अभी बहुत छोटी हो तुम नहीं समझ पाओगी इस बात को वह रोना नहीं था बल्कि वह गर्व के आँसू था आज मुझे अपने उस घर छोड़ने के निर्णय पर गर्व हो रहा था अगर वह घर मैं नहीं छोड़ती तो शायद आज तुम इस जगह पर नहीं होती। तुम्हारी जिंदगी भी मेरी तरह ही शायद नर्क बन जाती।
रेवती की मां का सोचना शायद गलत नहीं था। रेवती की मां की शादी एक बहुत बड़े उच्च खानदान में हुई थी, रेवती की मां ने बी. एड किया था। रेवती की मां को शुरू से ही टीचर बनने का शौक था और वह इस प्रोफेशन को अपनाना चाहती थी इसके पीछे रेवती की माँ की सोच सिर्फ पैसा कमाना नहीं था बल्कि अपने ज्ञान को दूसरों में बांटना भी था।
मैं रेवती के माँ घर के सामने ही रहती थी। मुझे आज भी वह दिन याद है जब रेवती की माँ निर्मला शादी करके अपने ससुराल में आई थी। अभी शादी के 1 सप्ताह भी नहीं बीते थे उस घर से मारने पीटने की आवाज आना शुरू हो गया था। निर्मला के घर से दर्द से कराहने की आवाज आ रही थी मेरे से रहा नहीं गया मैं अपने बालकनी में जाकर देखने की कोशिश करने लगी कि उस घर में हो क्या रहा ? मैंने अपने बालकनी के झाँका तो देखा नई बहू निर्मला को उसके पति रमेश के द्वारा थप्पड़ पर थप्पड़ लगाए जा रहे हैं। मैंने सुना अंदर से आवाज आ रही थी तुम्हारे मां-बाप इतने अमीर हैं यह ना कि अपनी बेटी को एक कार दहेज में दे दे, बस पकड़ा दिया एक फटफटिया 50 हजार का रुपये का। मैंने मन ही मन सोचा बेचारी निर्मला अभी 1 सप्ताह भी नहीं हुए आए हुये और यह शुरू हो गए कैसे लोग लालची होते हैं अगर तुम्हें इतना ही शौक है तो अपने पैसे से खरीदो चाहे कार खरीदना हो या बस, किसने रोक रखा है। यहां तो सब कुछ दहेज में ही चाहिए।
मैं यही सोच कर परेशान थी निर्मला के घर वालों ने कैसे अपनी बेटी को एक दरिंदे के घर में शादी कर दिया, थोड़ा सा तो पता करना चाहिए था आखिर अभी 1 साल पहले ही इसी घर में एक बहू की मृत्यु हुई है आखिर पता भी तो लगाना चाहिए था वह मृत्यु अपने आप से हुई थी या ससुराल वालों ने जानबूझकर उसे आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया था। बात यह था कि निर्मला के पति रमेश पहले से शादीशुदा था और निर्मला की दूसरी शादी थी 1 साल पहले ही उसकी पहली पत्नी ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी।
आखिर मैं कर ही क्या सकती थी जल्दी जल्दी मुझे भी काम निपटा कर बच्चे को स्कूल लेने जाना था मैं चली गई।
एक दिन मैं अपने बालकनी में कपड़े सुखा रही थी तो देखा रमेश तो सुबह वैसे ही ड्यूटी पर चले जाते थे क्योंकि वह बैंक में मैनेजर की नौकरी करते थे अब शाम को ही आते थे और रमेश की सास और ससुर भी मैंने देखा कि कहीं जा रहे थे मैं समझ गई कि निर्मला घर में अकेली होगी।
मैंने निर्मला के घर में मिक्सी लेने के बहाने पहुंच गई और दरवाजा खटखटाया। दरवाजा निर्मला ने खोला और मुझसे पूछा हां जी आप कौन? मैंने बताया अरे मैं तुम्हारे सामने ही रहती हूं पार्वती नाम है मैं शादी के दिन तुमसे मिली थी लेकिन तुमने इतना घूंघट कर रखा था कि तुमने किसी का चेहरा ही नहीं देखा था तुम्हारी सासू मां मेरी बहुत अच्छी दोस्त हैं हम तो रोजाना पार्क में हम दोनों साथ ही जाते हैं।
निर्मला ने कहा हां सासु मां आप के बारे में बताती रहती हैं कि आप बहुत खुले दिल वाली है और सब की बहुत मदद भी करती रहती हैं आपका एक एनजीओ भी चलता है और आप बहुत सारी महिलाओं को अपने एनजीओ में रोजगार दिया है। मैंने निर्मला से कहा सही कहा मैं हर उस औरत का सहारा बनना चाहती हूं जो किसी भी कारण से इस समाज द्वारा सताई गई हो।
निर्मला ने कहा मैं भी कितना बेवकूफ हूं दरवाजे पर ही आप से बातें कर रही हूं यह भी नहीं कह रही हूं कि घर मे आकर बैठने के लिए ।
मैं तो इसी ताक में थी कि निर्मला कब मुझे अंदर बैठने के लिए कहती है मिक्सी लेना तो मेरे लिए बहाना था। मैंने थोड़ी देर में कहा तुम्हारी सास नजर नहीं आ रही है कहां है वह निर्मला ने बताया कि वह लोग आज एक रिश्तेदार की शादी मे गए हैं अब वह कल सुबह ही आएंगे। मैं भी निश्चिंत हो गई चलो अब आराम से निर्मला से बातें कर सकती हूं।
निर्मला से मैंने बोला आ जाओ बैठो हम पड़ोसी हैं लेकिन एक दूसरे को जानते भी नहीं है चलो यह बताओ कौन-कौन है घर में तुम्हारे और कितनी पढ़ी लिखी हो तुम।
निर्मला ने बताया मेरा मायका तो बस यहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर ही है मेरे घर में सब कोई है एक छोटी बहन दो बड़े भाई जीनकी पहले से ही शादी हो चुकी है मेरे घर में सभी शिक्षित हैं मेरे दोनों भाई भी सरकारी नौकरी करते हैं और पापा भी बिजली विभाग में नौकरी करते थे अब वो रिटायर हो चुके हैं मैंने भी बी. एड किया हुआ है । और स्कूल में शिक्षक बनना चाहती हूं।
मैंने निर्मला से कहा, “निर्मला अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो एक बात कहूं। जब तुम्हारा परिवार इतना पढ़ा लिखा भी था और घर में भी पैसों की कमी नहीं थी तुम लोगों ने दहेज भी इतना सारा दिया है फिर ऐसे घर में शादी क्यों किया तुम्हारे पिताजी ने”
” ऐसे क्यों कह रही हैं आंटी आप, सब कुछ तो ठीक है छोटा सा परिवार है” एक लड़की को और क्या चाहिए होता है छोटा परिवार हो पति सही से कमाता हो बस इतने ही तो सपने होते हैं एक लड़की के”
“निर्मला चुप रहो तुम तुम्हें क्या लगता है कि मुझे पता नहीं है तुम्हारे साथ कैसा सुलूक करते हैं यह लोग मैं कोई विदेश में नहीं रहती हूं तुम्हारे पड़ोस में ही रहती हूं और तुम्हारे घर के रसोई मे तड़का भी लगता है उसकी आवाज भी मेरे घर जाती है। यह तो तुम लोगों को पता ही होगा कि रमेश पहले से शादीशुदा था और उसकी पत्नी ने आत्महत्या की तो कम से कम एक बार पता तो करना चाहिए था पत्नी ने आत्महत्या की थी या आत्महत्या करने पर मजबूर किया गया।
निर्मला ने कहा आंटी यह बात मुझे पता था लेकिन मेरी सासु मां मेरी बुआ की ननद है और बुआ ने बोला कि सब कुछ ठीक है तो पापा बुआ की बातों पर शक थोड़ी करेंगे कोई बुआ अपनी भतीजी की शादी ऐसे घर में थोड़ी करवाएगी। पापा ने बुआ ले के ऊपर पूरा विश्वास करके शादी कर दिया कुछ भी पूछा ही नहीं।
” यही तो गलती है हमारे समाज की हम दूसरे के ऊपर विश्वास करके अपनी लड़की को किसी के गले में बांध देते हैं एक बार तो जांच परख करनी चाहिए” आज तुम्हारे साथ जो हो रहा है अगर थोड़ी सी भी तुम्हारे घर वालों ने जांच पड़ताल की होती तो शायद तुम्हारी जिंदगी संवर जाती”
मैंने निर्मला को अपना फोन नंबर दिया और बोला यह लो मेरा फोन नंबर और अपने मोबाइल में सेव कर लो कुछ भी तुम्हें कोई दिक्कत हो या परेशानी हो तो मुझसे कॉल कर लेना।
निर्मला मेरी जाने के बाद सोचने लगी आखिर बुआ की मेरे से क्या दुश्मनी थी आखिर उन्होंने मेरे शादी ऐसे घर में क्यों करवाया कभी-कभी तो मन करता है सब कुछ अपनी मां पापा को बता दूँ कि आपने जिस फूल सी बिटिया को इतने लाड प्यार से पाला था वह बिटिया अब आपकी मुरझा गई है।
निर्मला में इतनी भी हिम्मत नहीं थी वह अपने पति का विरोध कर सकें। रोज रात में प्यार के नाम पर उसका पति जो उसके साथ वहशीपना करता था वह अलग और सास भी दिनभर ताने मारती रहती थी 2 साल हो गए अभी भी हमें पोते का सुख नहीं दे पाई हो पता नहीं पूरी जिंदगी दे भी पाओगी या नहीं। पति आए दिन शराब पीकर निर्मला को पीटता था उसकी जिंदगी बिल्कुल ही नर्क से भी बदतर हो गई थी।
जब भी उसे फुर्सत मिलती वह मुझसे कॉल करके अपनी बातें सारी बताती थी मैं उसको कितना भी हिम्मत देती थी लेकिन वह बस यही कह कर टाल देती थी कि आंटी मुझसे नहीं हो पाएगा मैं सोचती हूं विरोध करने का लेकिन मेरे पति के सामने आते ही इतना डर लगने लगता है कि मैं कुछ बोल ही नहीं पाती हूं।
तीसरे साल में आखिर निर्मला मां बनी गई थी पर मां तो बन गई थी, लेकिन एक बेटी की मां जो उसके लिए और भी दुखदाई था अब तो अपने सास की ताने पहले से भी ज्यादा सुनने लगी थी क्योंकि हमारे समाज में सब को पहले बेटा चाहिए होता है। पता नहीं कब बदलेगी इस समाज की सोच हम 20 वी सदी में चले गए हैं लेकिन आज भी हमारे सोच पुरातन पंथी ही है। पहले से और भी अकेली हो गई थी निर्मला कोई भी नहीं सुध लेने वाला था दोनों मां बेटी का।
समय का पहिया चलता रहा आज निर्मला की बेटी रेवती 10 साल की हो गई लेकिन निर्मला की जिंदगी में कोई भी सुधार नहीं हुआ था ऐसा लगता था निर्मला वक्त से पहले ही बूढ़ी हो चुकी है। कुछ भी हो निर्मला अपनी बेटी रेवती का जन्मदिन मनाना नहीं भूलती थी। उसके पति और सास इसलिए भी ताने मारते थे उसकी बेटी रेवती के बाद दोबारा उसने कई बार मां बनने का प्रयास किया लेकिन निर्मला मां नहीं बन पाई। कई बार तो यह भी चर्चा होने लगी थी। बाहर से एक लड़के को गोद ले लिया जाए।
1 दिन तो हद ही हो गया मैंने देखा उस घर से रेवती और रेवती की मां को जोर जोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी उस दिन और उसका पति बाहर से पीकर आया था और दोनों मां बेटी को बहुत पीट रहा था। सास और ससुर मूकदर्शक बनकर देख रहे थे सब कुछ। कोई भी बीच-बचाव नहीं कर रहा था।
आज पता नहीं मुझसे रहा नहीं गया इतने सालों से मैं देख रही थी लेकिन मैंने सोच लिया था अब नहीं मैंने 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर दिया और उसी समय घर के अंदर चली गई और मैंने निर्मला के पति रमेश का हाथ पकड़ लिया मैंने बोला रमेश मैंने पुलिस को कॉल कर दिया है और तुम शांत हो जाओ बहुत हो गया तुम्हारा। मैं 10 साल से देख रही हूं तुम्हारा इन सब मां बेटी पर जुल्म करते आ रहे हो पर अब नहीं, बहुत हो गया तुम्हारा।
रमेश ने कहा आंटी आपको हमारे घर के निजी मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं है आप अपने घर पर जाइए यह हमारा निजी मामला है। मैंने कहा जब घर की बातें बाहर जाने लगे तो वह मामला निजी नहीं रहता है बल्कि समाज का हो जाता है। तुम्हारे इस बर्ताव से तुमने कभी सोचा है कि हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा आसपास जो लोग रहते हैं वह क्या सोचते हैं तुम्हारे बारे में तुम्हें इससे क्या मतलब है मैं तो इस भोली-भाली निर्मला को कहते कहते थक गई लेकिन इसके दिमाग में बात जाए तब तो।
थोड़ी देर के बाद मैंने निर्मला और उसकी बेटी रेवती को हाथ पकड़ कर अपने घर ले कर चली गई जैसे ही मैं लेकर जा रही थी रमेश बोल रहा था आंटी तुम इन दोनों को लेकर जा रही हो ना लेकर जाओ लेकिन अब इस घर में वापस नहीं लौटेंगे अपने घर पर ही रखना। यह सब सुनकर निर्मला जाने से मना कर दिया मेरे घर। मैंने बोला तुम चुपचाप चलो मैं कुछ नहीं सुनना चाहती हूं आज पता नहीं मेरे अंदर भी क्या हो गया था। निर्मला की बेटी ने अपनी मां से कहा माँ चलो आंटी के साथ।
निर्मला और रेवती दोनों को लेकर मैं अपने घर आ गई पहले तो इन दोनों को पानी पिलाया और कुछ देर के बाद मैंने कहा देखो निर्मला मैं तुम्हें 10 सालों से समझाने की कोशिश कर रही हूं लेकिन तुम्हें यह बात समझ नहीं आ रहा है मैं तो कहती हूं तुम यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दो।
एक बात बताऊं मैं यह बात कहना नहीं चाहती थी लेकिन मैंने रमेश को एक दूसरी औरत के साथ घूमते हुए कई बार बाजार में देखा है कई बार सोचा था यह बात बता दूं लेकिन फिर मैं सोचती थी कि तुम इतनी परेशानी में तो पहले से ही रहती हो यह लोग तुम पर इतने सितम करते हैं अगर यह बात बता दूं तो और भी परेशान हो जाओगी यही सोचकर मैं चुप हो जाती थी।
निर्मला ने कहा यह बात आपको बताने की जरूरत नहीं है बल्कि मुझे पहले से ही पता है इस बात को लेकर कई बार लड़ाई हो चुकी है वह कहते हैं कि वह भी इसी घर में रहेगी मैंने साफ साफ कर दिया है जिस दिन वो आ जाएगी मैं आत्महत्या कर लूंगी।
मैंने कहा अच्छा तुम्हें यह बात पता है और फिर भी तुम चुप चाप रहती हो। निर्मला ने कहा इसके अलावा मैं क्या सकती हूं बताओ 10 साल की बेटी को लेकर कहां जाऊंगी आपको तो पता ही है या दुनिया कितनी जालिम है एक औरत घर से बाहर निकल जाए जो लोग कैसी निगाहों से देखते हैं और फिर 10 साल की बेटी का क्या करूंगी मैं कहां जाऊंगी अपने मायके जाकर अपने मां बाप के नाम खराब नहीं करना चाहती हो यही सोच कर इतने सालों से बरदाश्त किए जा रही थी।
मैंने निर्मला से कहा, “अब तुम्हें उस घर में नहीं जाना है अपने मन में गांठ बांध लो। “
“लेकिन मैं अपनी बेटी रेवती को लेकर कहां जाऊंगी कैसी पालूंगी उसको अब तो ससुराल में भी नहीं जा सकती है वहां से भी भाग कर आ गई हूं कौन सहारा देगा मुझे”
मैंने कहा जब मैंने तुम्हें उस घर से निकाल कर लाई हूं तो कुछ सोच कर ही लाई हूँ। मैं सहारा दूंगी तुम्हें एक-दो दिन तुम हमारे घर पर रहो इसी शहर में मेरा एक और मकान है मैंने किराए पर दे रखा है अभी मैं उसको खाली करा देती हूं और वहीं पर मां बेटी रहना और अपने एनजीओ के द्वारा मैं तुम्हें नौकरी का भी व्यवस्था करवा दूंगी मेरे कई सारे स्कूलों में जान पहचान है किसी न किसी स्कूल में तो मैं तुम्हें शिक्षक की नौकरी दिला ही सकती हूं।
देखो निर्मला इस जिंदगी को तुम अब तक अपनी किस्मत मान कर ही रही थी उसे अब अब बदलना पड़ेगा तुम इतनी पढ़ी-लिखी हो तुम अपने बच्चे को खुद पाल सकती हो तुम्हें अपना एक अलग राह चुनना पड़ेगा। वहां से निकलने के बाद निर्मला को इस बात का एहसास हो गया था सही मायने में उसे अपनी जिंदगी को कबाड़ बना लिया था। वह अब स्वतंत्र रूप से जी रही है जहां वह अपने हर सपने को पूरा कर सकती है।
कुछ दिनों के बाद निर्मला के मां पिता जी को यह बात पता चल गया था कि निर्मला अब अपने ससुराल में नहीं रहती है सारी घटनाओं के जानने के बाद निर्मला के माता पिता ने भी निर्मला का ही साथ दिया और जितना हो सके उन्होंने निर्मला का सपोर्ट किया सबसे अच्छी बात यह रही उन्होंने एक बार भी निर्मला को अपने ससुराल वापस लौटने के लिए नहीं कहा बस इतना ही कहा कि बेटी तुम कितनी पत्थर दिल हो इतने सालों से इतना सहती आ रही थी और हमें तुमने एक बार भी नहीं बताया।
निर्मला अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थी।
निर्मला और उसकी बेटी रेवती के घर पहुंचने से पहले निर्मला के माता-पिता भी आए हुए थे रेवती अपने नाना नानी को अपना गोल्ड मेडल दिया और सबको घर के अंदर ले गई।
दोस्तों इस कहानी से तो बातें निकल कर आती है एक तो अगर आप अपनी बेटी की शादी कर रहे हैं तो कम से कम जांच परख तो कर ले लाल वालों के बारे में कहीं आपको पछताना न पड़े क्योंकि आप अगर जांच परख करके शादी करेगी तो कुछ तो आपको पता चलेगा ही। दूसरी बात यह है कि एक लड़की को भी अपने फैसले खुद लेने का अधिकार होना चाहिए और वह अपनी जिंदगी को इस बात मान कर नहीं जीना चाहिए बल्कि फैसले लेना सीखना चाहिए क्योंकि जितना आप दबे कि यह समाज आपको उतना ही दब आएगा अपना निर्णय लेना सीखिए या बहुत जरूरी है क्योंकि आपके बारे में आपसे बेहतर आपके लिए कोई नहीं सोच सकता है।