सयानी बिटिया – सपना शिवाले सोलंकी

” मम्मी आज हम सब साथ खाना खाएंगे “

“अरे नहीं बेटे तुम तीनों बैठो मैं गर्मागर्म फुल्के उतार कर  देती जाऊँगी “

“बिल्कुल नहीं आज मैं आपकी कोई बात नहीं सुनुँगी “

विधि ने जोर देते हुए माँ से कहा।

“मैंने डाइनिंग टेबल पर बाकि का खाना रख दिया है सलाद कट करके भी रख दिया आपकी रोटियां हो जाये तो सब साथ ही खाएँगे “

“ये क्या ज़िद हुई बेटे “

” अरे मम्मी आप भी तो ज़िद कर रही हो “

” ठीक है चलों तुम पापा और भैया को बुलवा लो मैं आ रहीं हूँ “

डाइनिंग टेबल पर चारों बैठ गए ,विधि ने सबकी थाली में दो रोटी, एक कटोरी दाल व सब्जी परोसा तो पापा मुस्कुरा कर बोले,

“वाह क्या बात है आज तो विधि बिटिया खाना परोस रही है”

” हाँ पापा अब से मैं ही खाना परोसा करूँगी और हम सब साथ ही खाया करेंगें “

कहकर विधि ने दिन की बची दो रोटी के चार भाग किये और जैसे ही पापा की थाली में रखने लगी  माँ ने उसके हाथ से छिनकर अपनीं थाली में रख लिया। देख रहें है पापा व भैया आप , माँ रोज यही क़रतीं है। बची हुई रोटियाँ, सब्जी, चावल जो भी हो रोज खुद ही लेती है सबकों ताजा खाना परोसती हैं। सब्जी कम पड़ जाये तो अचार के मसाले से तो कभी चटनी से रोटी खा लेती है। ऐसा कब तक चलेगा ? एक साथ बैठकर खाने में सब हिसाब से खाना लेते हैं दूसरे का ध्यान भी रखतें है । सुनते ही पल भर के लिए सन्नाटा छा गया । भाई उठा और माँ की थाली से दिन की रोटी के टुकड़े उठाकर एक एक चारो थाली में डाल दिया…थैंक्स विधि तुमनें इस बात का अहसास कराया वरना तो इस ओर कभी ध्यान ही नहीं जाता। अब हम रोज साथ खाना खाएंगे और बचा हुआ खाना भी सब मिलकर खाएँगे। बेटे की बात सुनकर माँ की आँखों में आँसू झिलमिला उठे। पापा ने विधि की ओर मुस्कराते हुए कहा, हाँ मैं भी सहमत हूँ अपनीं सयानी बिटिया की बात से तो सब मुस्कुरा उठे।

– सपना शिवाले सोलंकी

 

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