दिव्या की प्रेग्नेंसी का सातवाँ माह लग चुका था।आठवें माह में ट्रेवलिंग करना रिस्क है,यही सोचकर उसकी माँ ने उसे सातवें माह के अंत में ही अपने पास बुलवा लिया था।वैसे तो कोई काॅम्प्लीकेशन नहीं था,सब कुछ नाॅर्मल था लेकिन यह उसकी पहली प्रेग्नेंसी थी,
इसलिए कभी नये मेहमान के केयरिंग को लेकर तो कभी अपने फिगर खराब होने के भय से अक्सर वह परेशान हो उठती थी।एक दिन किसी मैगज़ीन में उसने पढ़ लिया कि डिलीवरी के बाद शिशु को फीड कराने से मोटापा बढ़ जाता है जिसके कारण शरीर बेढ़ब दिखाई देने लगता है।फिर तो अपने स्लिम-ट्रिम फिगर को मेनटेन करने वाली दिव्या ने तय कर लिया कि वह बेबी को फीड नहीं करायेगी।
दिव्या की डिलीवरी का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा था, वैसे-वैसे उसकी माँ भी आने वाले बच्चे के आगमन की तैयारियाँ पूरे उत्साह से कर रही थीं।उन्होंने अपनी सास यानि कि दिव्या की दादी को भी बुलवा दिया था।ऐसे समय में किसी अनुभवी-बुज़ुर्ग का अतिआवश्यक होता है।
जच्चा और बच्चा के लिये दो अलग-अलग अनुभवी दाईयों को भी उन्होंने पहले से भी बुलवा लिया था।जब भी समय मिलता, दिव्या की दादी अपनी पोती को ज्ञान देने में ज़रा भी नहीं चूकती थीं।
निश्चित समय पर उसे लेबरपेन शुरु हुआ और नर्सिंग होम पहुँचते ही उसने एक सुन्दर-सी बच्ची को जन्म दिया।उस बच्ची ने आते ही उसके जीवन को अनगिनत रंगों से सजा दिया था।बेटी को लेकर वह जब घर आने लगी तब डाॅक्टर ने उसे कहा, ” दिव्या, बेबी को तुम अपना फीड कराना,
ज़रा भी कोताही न करना।” “जी डाॅक्टर, मैंने सब समझ लिया है।” कहकर वह घर आ गई।एक दिन तो उसने डाॅक्टर के दिये निर्देश का पालन किया लेकिन फिर उसे मैगजीन की फिगर वाली बात याद आ गई और उसने फीडिंग कराने में लापरवाही करनी शुरु कर दिया।बच्ची रोती तो कभी पानी पिला देती तो कभी कोई बहाना कर देती।बच्ची का रो-रोकर बुरा हाल हो रहा था।माँ-दादी ने पूछा कि ऐसा क्यों कर रही हो? तो टाल जाती।
उसका पति निखिल सब समझ गया।उसने तुरन्त एक नंबर मिलाया और दस मिनट के अंदर ही एक महिला डाॅक्टर अपनी दो सहकर्मियों के साथ दिव्या के मायके पहुँच गई।माँ और दादी उन्हें देखकर भौंचक रह गई।महिला डाॅक्टर अपना परिचय देते हुए बोली,
” एक अगस्त से सात अगस्त से ‘विश्व स्तनपान दिवस’ मनाया जाता है जिसके अंतर्गत हमारी टीम नये जन्मे बच्चों के घर जाकर स्तनपान के फायदे बताकर माँओं को जागरुक करते हैं।कृपया आप मुझे शिशु की माँ को बुला दीजिए।” डाॅक्टर की सुनकर दिव्या बेमन से बाहर आई।
डाॅक्टर ने उसे एक चार्ट दिखाया और बोली, “एक औरत के लिए जितना ज़रूरी माँ बनना होता है उतना ही जरुरी उसे अपने शिशु को स्तनपान कराना होता है।एक शिशु के विकास और सुरक्षा के लिए जितने पोषक तत्व, खनिज,विटामिन, प्रोटीन,वसा,एंटीबॉडी और रोग प्रतिरोधक कारक चाहिए, वो सभी माँ के दूध में मौजूद होते हैं।
साथ ही, यह सुपाच्य होता है तथा शिशु के शरीर के तापमान को सामान्य रखने में मदद करता है।स्तनपान एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो शिशु को निरोग रखने के साथ-साथ माँ और बच्चे के बीच भावनात्मक संबंध को भी मजबूत करता है।मोटापा बढ़ने अथवा शारीरिक संरचना संबंधी भ्रांतियों से दूर रहना चाहिए।
ब्रेस्ट फीडिंग से तो महिलाओं को ओवरी और ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना दूर होती है। ऊपरी दूध अथवा मिल्क बाॅटल से शिशु को इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।इसीलिए माँ के दूध को अमृत कहा गया है और दुनिया में जन्म लेने वाले हर शिशु का यह नैसर्गिक अधिकार है।क्या आप अपने शिशु को इस अधिकार से वंचित करना चाहेंगी?” कहकर डाॅक्टर दिव्या को देखने लगी।
दिव्या ने कहा, ” नहीं डाॅक्टर, हर्गिज़ नहीं, हाँ, थोड़ी देर के लिए मैं अवश्य भटक गई थी लेकिन सही समय आकर आपने मेरी आँखों पर पड़े परदे को हटा दिया है।” उसने डाॅक्टर और उनकी दोनों सहकर्मियों को ‘धन्यवाद’ कहा और अपनी बेटी को दूध पिलाने लगी।आज उसे मातृत्व सुख के एक सुखद अनुभव की प्राप्ति हो रही थी।
दादी को एक जिज्ञासा थी, उन्होंने डाॅक्टर से पूछा, ” आपको कैसे पता चला कि हमारे घर में एक शिशु है?” डाॅक्टर साहिबा निखिल की तरफ़ देखकर मुस्कुराई और बोली, “अम्मा जी, अस्पताल से हमारे पास नये जन्मे बच्चों की लिस्ट आ जाती है।” दादी भी कम नहीं थी,
निखिल की तरफ़ देखकर हँसते हुए बोली,” हाँ, एक लिस्ट देने वाला तो हमारे सामने ही खड़ा है।” सुनकर सभी हँस पड़े।तभी माँ भी सबके लिए चाय ले आईं।दिव्या के दूध न पिलाने के कारण घर में जो तनाव उत्पन्न हो गया था ,वो निखिल की समझदारी और डाॅक्टर साहिबा द्वारा दिये गये सुझावों से अब दूर हो गया था।इसीलिए तो कहा गया है –
” माँ का दूध है सर्वोत्तम आहार
मत छीनो शिशु से यह अधिकार “
——- विभा गुप्ता